शिक्षक की गौरवमयी भूमिका के पुनर्अविष्कार का अवसर देता है यह दिन
समाज में एक शिक्षक की भूमिका गौरवमयी और अप्रतिम होती है और इस भूमिका के पुनर्अविष्कार का अवसर देता है शिक्षक दिवस का यह राष्ट्रव्यापी आयोजन। देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन देश के दूसरे राष्ट्रपति, महान दार्शनिक और शिक्षाविद् डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस के रुप में इसे मनाया जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में डॉ. राधाकृष्णन ने जो अमूल्य योगदान दिया वह निश्चय ही अविस्मरणीय रहेगा। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।यद्यपि वे एक जाने-माने विद्वान, शिक्षक, वक्ता, प्रशासक, राजनयिक, देशभक्त और शिक्षा शास्त्री थे, तथापि अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में अनेक उच्च पदों पर काम करते हुए भी शिक्षा के क्षेत्र में सतत योगदान करते रहे। उनकी मान्यता थी कि यदि सही तरीके से शिक्षा दी जाए तो समाज की अनेक बुराइयों को मिटाया जा सकता है। शिक्षा और शिक्षक के ऐसे भाष्यकार के जन्मदिवस को हम शिक्षक दिवस के रुप में मनाते हैं यह एक गौरव का विषय है। उनकी शिक्षा को लेकर सोच अत्यंत सुस्पष्ट थी। वे कहते थे शिक्षा का लक्ष्य है ज्ञान के प्रति समर्पण की भावना और निरंतर सीखते रहने की प्रवृत्ति, वह एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति को ज्ञान और कौशल दोनों प्रदान करती है तथा इनका जीवन में उपयोग करने का मार्ग प्रशस्त करती है।करुणा, प्रेम और श्रेष्ठ परम्पराओं का विकास भी शिक्षा के उद्देश्य हैं। वे कहते थे कि जब तक शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होता और शिक्षा को एक मिशन नहीं मानता तब तक अच्छी शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती।
शिक्षक दिवस पर देश शिक्षकों के अवदान के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हैं
देश में शिक्षक दिवस के आयोजन का लक्ष्य शिक्षकों के अमूल्य और अविस्मरणीय अवदान के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करना और समाज में उनकी महत्ता प्रतिपादित करना है. इस दिन केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा-"शिक्षक सम्मान समारोह" का भव्य और गरिमामय आयोजन होता है। सरकारी आयोजन से इतर समाजसेवी संस्थाएं भी अपने स्तर पर शिक्षक सम्मान समारोह का आयोजन करती हैं. शिक्षा और शिक्षक पर केन्द्रित व्याख्यानमाला का आयोजन भी इस दिन होता है। गत वर्ष भी कोरोना संक्रमण के बीच
वेबीनार के माध्यम से शिक्षक दिवस का आयोजन हुआ। शिक्षक दिवस के सार्वजनिक समारोह के साथ ही सोश्यल मीडिया पर भी उपयोगकर्ता अपने शिक्षकों को बधाई देते हैं और उनका सम्मान करते हैं। इस दिन शिक्षकों को बधाई पत्र ( ग्रीटिंग्स) देने और कोई गरिमामय उपहार देने की भी परम्परा है। शिक्षक दिवस पर शिक्षा के क्षेत्र में आ रहे बदलाव पर भी व्यापक विचार विमर्श होता है। पिछले दो वर्ष से पूरे देश में शिक्षक दिवस पर भारत सरकार द्वारा घोषित- "राष्ट्रीय शिक्षा नीति" पर वेबीनार और विडियो
कांन्फ्रेसिंग के माध्यम से व्यापक चर्चा भी हो रही है. मीडिया शिक्षा से जुड़े मुद्दों के अलावा राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय सम्मान पाने वाले शिक्षकों से बातचीत का प्रसारण करेंगे। कुछ सरकारें शिक्षकों के लिये कुछ लाभदायी घोषणाएँ भी कर सकती हैं। इस साल कर्नाटक के बाद मध्यप्रदेश देश का दूसरा राज्य है जहाँ नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू हुई है अतः इस शिक्षक दिवस पर मुख्य रुप से शिक्षा और शिक्षकों पर बात होगी।
डॉ.राधाकृष्णन को अपने शिक्षक होने पर सर्वाधिक गर्व था
भारत के एक विलक्षण राजनेता, आदर्श शिक्षक और देश के राष्ट्रपति डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस मनाने का महत्वपूर्ण निर्णय वर्ष 1962 में उनके राष्ट्रपति बनने के बाद लिया गया था। एक बार उनके कुछ विद्यार्थियों और मित्रों ने उनसे उनके जन्मदिन को समारोहपूर्वक मनाने की बात कही। इसके जवाब में उन्होंने कहा था कि- "मेरा जन्मदिन अलग से मनाने के बजाय अगर उस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो मुझे अत्यंत गर्व महसूस होगा क्योंकि मुझे सबसे ज्यादा गौरव की अनुभूति अपने शिक्षक होने पर है। "उनकी इसी इच्छा को सम्मान देने के लिये ही देश प्रतिवर्ष सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पाँच सितम्बर को देश में शिक्षक दिवस के रुप में मनाता है। संयुक्त राष्ट्र की शैक्षिक गतिविधियों से जुड़ी इकाई- यूनेस्को" ने वर्ष 1994 से प्रतिवर्ष पाँच अक्टूबर को- "अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस" मनाने का निर्णय लिया था। शिक्षकों के प्रति सहयोग को बढ़ावा देने और भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शिक्षकों के महत्व के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से इसकी शुरुआत की गई थी. मगर भारत में पाँच सितम्बर को ही राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षक दिवस मनाते हैं। विश्व के विभिन्न देश अलग-अलग तारीख़ों में शिक्षक दिवस को मानते हैं। कुछ देशों में इस दिन अवकाश रहता है तो कहीं-कहीं यह कामकाजी दिन ही रहता है.
दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक से राष्ट्रपति तक की उपलब्धियाँ जुड़ी है राधाकृष्णन के साथ
राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरूतनी ग्राम में, जो तत्कालीन मद्रास से लगभग 64 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, 5 सितम्बर 1888 को हुआ था. राधाकृष्णन का बाल्यकाल तिरूतनी एवं तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों पर ही व्यतीत हुआ. उन्होंने प्रथम आठ वर्ष तिरूतनी में ही गुजारे. यद्यपि उनके पिता पुराने विचारों के थे और उनमें धार्मिक भावनाएँ भी थीं, इसके बावजूद उन्होंने राधाकृष्णन को क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरूपति में वर्ष 1896-1900 के मध्य विद्याध्ययन के लिये भेजा, फिर अगले 4 वर्ष (1900 से 1904) की उनकी शिक्षा वेल्लूर में हुई. इसके बाद उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास में शिक्षा प्राप्त की. वह बचपन से ही मेधावी थे. उन्होंने बचपन में ही स्वामी विवेकानन्द और अन्य महान विचारकों के विचारों का अध्ययन किया. उन्होंने वर्ष 1902 में मैट्रिक स्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की और उन्हें छात्रवृत्ति भी प्राप्त हुई. इसके बाद उन्होंने वर्ष 1904 में कला संकाय परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की. उन्हें मनोविज्ञान, इतिहास और गणित विषय में विशेष योग्यता की टिप्पणी भी उच्च प्राप्तांकों के कारण मिली. इसके अलावा क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास ने उन्हें छात्रवृत्ति भी दी. दर्शनशास्त्र में एमए करने के पश्चात् 1918 में वे मैसूर महाविद्यालय में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हुए बाद में उसी कॉलेज में वे प्राध्यापक भी रहे. डॉ राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया. आज़ाद भारत की संविधान सभा के राधाकृष्णन एकमात्र गैर राजनैतिक सदस्य थे. बाद में आपको सोवियत संघ में विशिष्ट राजदूत बनाया गया. वर्ष 1952 में सोवियत संघ से आने के बाद डॉ राधाकृष्णन देश के पहले उपराष्ट्रपति बने और वर्ष 1962 में वे भारत के राष्ट्रपति चुने गए. उन दिनों राष्ट्रपति का वेतन दस हजार रुपए मासिक था लेकिन प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद मात्र ढाई हजार रुपए ही लेते थे और शेष राशि प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय राहत कोष में जमा करा देते थे. डॉ राधाकृष्णन ने डॉ राजेन्द्र प्रसाद की इस गौरवशाली परंपरा को जारी रखा. देश के सर्वोच्च पद पर पहुँचकर भी वे सादगी भरा जीवन बिताते रहे.
विश्व में मानव मात्र की भलाई की बुनियाद शिक्षा पर ही रखी जाती है
डॉ.राधाकृष्णन समूचे विश्व को एक विद्यालय मानते थे। उनका मानना था कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है और विश्व में मानव मात्र की भलाई की बुनियाद शिक्षा पर ही रखी जा सकती है, अत: विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबन्धन करना चाहिए. ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविद्यालय में दिये अपने भाषण में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था- "मानव को एक होना चाहिए, मानव इतिहास का संपूर्ण लक्ष्य मानव जाति की मुक्ति तभी सम्भव है जब देशों की नीतियों का आधार पूरे विश्व में शान्ति की स्थापना का प्रयत्न हो। "डॉ राधाकृष्णन अपनी बुद्धि से परिपूर्ण व्याख्याओं, आनन्ददायी अभिव्यक्तियों और हल्की गुदगुदाने वाली कहानियों से छात्रों को मन्त्रमुग्ध कर देते थे। उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में उतारने की प्रेरणा वह अपने छात्रों को भी देते थे। शिक्षकों के बारे में डॉ राधाकृष्णन का मानना था कि समाज और देश की विभिन्न बुराइयों को शिक्षा के द्वारा ही सही तरीके से हल किया जा सकता है। शिक्षक ही एक सभ्य और प्रगतिशील समाज की नींव रखता है। उनके समर्पित काम और छात्रों को प्रबुद्ध नागरिक बनाने के लिए उनके अथक प्रयास प्रशंसनीय हैंं. डॉ राधाकृष्णन की इच्छा थी कि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होना चाहिए और शिक्षकों, छात्रों और शिक्षा पद्धति के बीच एक मजबूत संबंध विकसित होना चाहिए। कुल मिलाकर वे पूरी शिक्षा प्रणाली में बदलाव चाहते थे, उनके अनुसार शिक्षकों को विद्यार्थियों का स्नेह और सम्मान प्राप्त करने के लिए आदेश नहीं देना चाहिए बल्कि उन्हें इसके योग्य बनना चाहिए।
समाज में एक शिक्षक की भूमिका गौरवमयी और अप्रतिम होती है और इस भूमिका के पुनर्अविष्कार का अवसर देता है शिक्षक दिवस का यह राष्ट्रव्यापी आयोजन। देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन देश के दूसरे राष्ट्रपति, महान दार्शनिक और शिक्षाविद् डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस के रुप में इसे मनाया जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में डॉ. राधाकृष्णन ने जो अमूल्य योगदान दिया वह निश्चय ही अविस्मरणीय रहेगा। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।यद्यपि वे एक जाने-माने विद्वान, शिक्षक, वक्ता, प्रशासक, राजनयिक, देशभक्त और शिक्षा शास्त्री थे, तथापि अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में अनेक उच्च पदों पर काम करते हुए भी शिक्षा के क्षेत्र में सतत योगदान करते रहे। उनकी मान्यता थी कि यदि सही तरीके से शिक्षा दी जाए तो समाज की अनेक बुराइयों को मिटाया जा सकता है। शिक्षा और शिक्षक के ऐसे भाष्यकार के जन्मदिवस को हम शिक्षक दिवस के रुप में मनाते हैं यह एक गौरव का विषय है। उनकी शिक्षा को लेकर सोच अत्यंत सुस्पष्ट थी। वे कहते थे शिक्षा का लक्ष्य है ज्ञान के प्रति समर्पण की भावना और निरंतर सीखते रहने की प्रवृत्ति, वह एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति को ज्ञान और कौशल दोनों प्रदान करती है तथा इनका जीवन में उपयोग करने का मार्ग प्रशस्त करती है।करुणा, प्रेम और श्रेष्ठ परम्पराओं का विकास भी शिक्षा के उद्देश्य हैं। वे कहते थे कि जब तक शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होता और शिक्षा को एक मिशन नहीं मानता तब तक अच्छी शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती।
शिक्षक दिवस पर देश शिक्षकों के अवदान के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हैं
देश में शिक्षक दिवस के आयोजन का लक्ष्य शिक्षकों के अमूल्य और अविस्मरणीय अवदान के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करना और समाज में उनकी महत्ता प्रतिपादित करना है. इस दिन केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा-"शिक्षक सम्मान समारोह" का भव्य और गरिमामय आयोजन होता है। सरकारी आयोजन से इतर समाजसेवी संस्थाएं भी अपने स्तर पर शिक्षक सम्मान समारोह का आयोजन करती हैं. शिक्षा और शिक्षक पर केन्द्रित व्याख्यानमाला का आयोजन भी इस दिन होता है। गत वर्ष भी कोरोना संक्रमण के बीच
वेबीनार के माध्यम से शिक्षक दिवस का आयोजन हुआ। शिक्षक दिवस के सार्वजनिक समारोह के साथ ही सोश्यल मीडिया पर भी उपयोगकर्ता अपने शिक्षकों को बधाई देते हैं और उनका सम्मान करते हैं। इस दिन शिक्षकों को बधाई पत्र ( ग्रीटिंग्स) देने और कोई गरिमामय उपहार देने की भी परम्परा है। शिक्षक दिवस पर शिक्षा के क्षेत्र में आ रहे बदलाव पर भी व्यापक विचार विमर्श होता है। पिछले दो वर्ष से पूरे देश में शिक्षक दिवस पर भारत सरकार द्वारा घोषित- "राष्ट्रीय शिक्षा नीति" पर वेबीनार और विडियो
कांन्फ्रेसिंग के माध्यम से व्यापक चर्चा भी हो रही है. मीडिया शिक्षा से जुड़े मुद्दों के अलावा राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय सम्मान पाने वाले शिक्षकों से बातचीत का प्रसारण करेंगे। कुछ सरकारें शिक्षकों के लिये कुछ लाभदायी घोषणाएँ भी कर सकती हैं। इस साल कर्नाटक के बाद मध्यप्रदेश देश का दूसरा राज्य है जहाँ नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू हुई है अतः इस शिक्षक दिवस पर मुख्य रुप से शिक्षा और शिक्षकों पर बात होगी।
डॉ.राधाकृष्णन को अपने शिक्षक होने पर सर्वाधिक गर्व था
भारत के एक विलक्षण राजनेता, आदर्श शिक्षक और देश के राष्ट्रपति डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस मनाने का महत्वपूर्ण निर्णय वर्ष 1962 में उनके राष्ट्रपति बनने के बाद लिया गया था। एक बार उनके कुछ विद्यार्थियों और मित्रों ने उनसे उनके जन्मदिन को समारोहपूर्वक मनाने की बात कही। इसके जवाब में उन्होंने कहा था कि- "मेरा जन्मदिन अलग से मनाने के बजाय अगर उस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो मुझे अत्यंत गर्व महसूस होगा क्योंकि मुझे सबसे ज्यादा गौरव की अनुभूति अपने शिक्षक होने पर है। "उनकी इसी इच्छा को सम्मान देने के लिये ही देश प्रतिवर्ष सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पाँच सितम्बर को देश में शिक्षक दिवस के रुप में मनाता है। संयुक्त राष्ट्र की शैक्षिक गतिविधियों से जुड़ी इकाई- यूनेस्को" ने वर्ष 1994 से प्रतिवर्ष पाँच अक्टूबर को- "अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस" मनाने का निर्णय लिया था। शिक्षकों के प्रति सहयोग को बढ़ावा देने और भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शिक्षकों के महत्व के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से इसकी शुरुआत की गई थी. मगर भारत में पाँच सितम्बर को ही राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षक दिवस मनाते हैं। विश्व के विभिन्न देश अलग-अलग तारीख़ों में शिक्षक दिवस को मानते हैं। कुछ देशों में इस दिन अवकाश रहता है तो कहीं-कहीं यह कामकाजी दिन ही रहता है.
दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक से राष्ट्रपति तक की उपलब्धियाँ जुड़ी है राधाकृष्णन के साथ
राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरूतनी ग्राम में, जो तत्कालीन मद्रास से लगभग 64 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, 5 सितम्बर 1888 को हुआ था. राधाकृष्णन का बाल्यकाल तिरूतनी एवं तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों पर ही व्यतीत हुआ. उन्होंने प्रथम आठ वर्ष तिरूतनी में ही गुजारे. यद्यपि उनके पिता पुराने विचारों के थे और उनमें धार्मिक भावनाएँ भी थीं, इसके बावजूद उन्होंने राधाकृष्णन को क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरूपति में वर्ष 1896-1900 के मध्य विद्याध्ययन के लिये भेजा, फिर अगले 4 वर्ष (1900 से 1904) की उनकी शिक्षा वेल्लूर में हुई. इसके बाद उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास में शिक्षा प्राप्त की. वह बचपन से ही मेधावी थे. उन्होंने बचपन में ही स्वामी विवेकानन्द और अन्य महान विचारकों के विचारों का अध्ययन किया. उन्होंने वर्ष 1902 में मैट्रिक स्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की और उन्हें छात्रवृत्ति भी प्राप्त हुई. इसके बाद उन्होंने वर्ष 1904 में कला संकाय परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की. उन्हें मनोविज्ञान, इतिहास और गणित विषय में विशेष योग्यता की टिप्पणी भी उच्च प्राप्तांकों के कारण मिली. इसके अलावा क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास ने उन्हें छात्रवृत्ति भी दी. दर्शनशास्त्र में एमए करने के पश्चात् 1918 में वे मैसूर महाविद्यालय में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हुए बाद में उसी कॉलेज में वे प्राध्यापक भी रहे. डॉ राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया. आज़ाद भारत की संविधान सभा के राधाकृष्णन एकमात्र गैर राजनैतिक सदस्य थे. बाद में आपको सोवियत संघ में विशिष्ट राजदूत बनाया गया. वर्ष 1952 में सोवियत संघ से आने के बाद डॉ राधाकृष्णन देश के पहले उपराष्ट्रपति बने और वर्ष 1962 में वे भारत के राष्ट्रपति चुने गए. उन दिनों राष्ट्रपति का वेतन दस हजार रुपए मासिक था लेकिन प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद मात्र ढाई हजार रुपए ही लेते थे और शेष राशि प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय राहत कोष में जमा करा देते थे. डॉ राधाकृष्णन ने डॉ राजेन्द्र प्रसाद की इस गौरवशाली परंपरा को जारी रखा. देश के सर्वोच्च पद पर पहुँचकर भी वे सादगी भरा जीवन बिताते रहे.
विश्व में मानव मात्र की भलाई की बुनियाद शिक्षा पर ही रखी जाती है
डॉ.राधाकृष्णन समूचे विश्व को एक विद्यालय मानते थे। उनका मानना था कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है और विश्व में मानव मात्र की भलाई की बुनियाद शिक्षा पर ही रखी जा सकती है, अत: विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबन्धन करना चाहिए. ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविद्यालय में दिये अपने भाषण में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था- "मानव को एक होना चाहिए, मानव इतिहास का संपूर्ण लक्ष्य मानव जाति की मुक्ति तभी सम्भव है जब देशों की नीतियों का आधार पूरे विश्व में शान्ति की स्थापना का प्रयत्न हो। "डॉ राधाकृष्णन अपनी बुद्धि से परिपूर्ण व्याख्याओं, आनन्ददायी अभिव्यक्तियों और हल्की गुदगुदाने वाली कहानियों से छात्रों को मन्त्रमुग्ध कर देते थे। उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में उतारने की प्रेरणा वह अपने छात्रों को भी देते थे। शिक्षकों के बारे में डॉ राधाकृष्णन का मानना था कि समाज और देश की विभिन्न बुराइयों को शिक्षा के द्वारा ही सही तरीके से हल किया जा सकता है। शिक्षक ही एक सभ्य और प्रगतिशील समाज की नींव रखता है। उनके समर्पित काम और छात्रों को प्रबुद्ध नागरिक बनाने के लिए उनके अथक प्रयास प्रशंसनीय हैंं. डॉ राधाकृष्णन की इच्छा थी कि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होना चाहिए और शिक्षकों, छात्रों और शिक्षा पद्धति के बीच एक मजबूत संबंध विकसित होना चाहिए। कुल मिलाकर वे पूरी शिक्षा प्रणाली में बदलाव चाहते थे, उनके अनुसार शिक्षकों को विद्यार्थियों का स्नेह और सम्मान प्राप्त करने के लिए आदेश नहीं देना चाहिए बल्कि उन्हें इसके योग्य बनना चाहिए।
इस शिक्षक दिवस पर डॉ.राधाकृष्णन की यह एक सीख भी यदि हम ले पाये कि - "शिक्षक उन्हीं लोगों को बनाया जाना चाहिए जो सबसे अधिक बुद्धिमान हो तो भी यह एक बड़ी पहल होगी। "शिक्षक को मात्र अच्छी तरह अध्यापन करके ही संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए , उसे अपने छात्रों का स्नेह और आदर भी अर्जित करना चाहिए। हर शिक्षक को यह याद रखना चाहिए कि उन्हें सम्मान शिक्षक होने भर से नहीं मिलता, उसे अर्जित करना पड़ता है." यदि शिक्षक यह ध्यान रखेंगे तो वे सच्चे अर्थों में राष्ट्र निर्माता शिक्षक की परिकल्पना को साकार कर सकेंगे।
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