यह सवाल कहीं आप मेरी परीक्षा के लिए तो नहीं पूछ रहें हैं?
खुशमिजाज और बातचीत में खुलकर बोलने वाली प्रख्यात लेखिका पद्मा सचदेव मध्यप्रदेश सरकार द्वारा साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय अवदान के कारण राष्ट्रीय कबीर सम्मान प्राप्त करने जब भोपाल आईं तो एक प्रेस कान्फ्रेंस में एक पत्रकार ने उनसे पूछा आपको कबीर सम्मान से अलंकृत किया जा रहा है, क्या आपने कबीर को पढ़ा है? उससे सवाल से हतप्रभ पद्माजी कुछ समय चुप रहीं। फिर वो आहिस्ता से बोलीं यह सवाल कहीं आप मेरी परीक्षा के लिए तो नहीं पूछ रहें हैं? मेरा मानना है कि इस देश के हर लेखक ने किसी और को चाहे पढ़ा हो या नहीं, कबीर को जरुर पढ़ा है। मेरा जहाँ तक सवाल है मैंने कबीर को पढ़ने के पहले कई बार सुना है। आकाशवाणी की नौकरी में मैं खाली समय में आर्काइव से निकाल कर कुमार गन्धर्व सा'ब के कबीर के निर्गुणी पद सुना करती थी। और जैसा कि कुमार गन्धर्व के कमोबेश सभी प्रशंसक पसंद करते हैं मुझे भी उनका गाया कबीर का यह पद- "उड़ जायेगा हँस अकेला, गुरु दर्शन का मेला..." बेहद पसंद है। वो रेडियो की नौकरी के अपने साथियों से कहतीं भी थीं कि मेरे अवसान पर यदि- "रिमेम्बरिंग पद्मा सचदेव" कार्यक्रम बनाएं तो
उसका शीर्षक यही दीजिएगा- "उड़ जायेगा हँस अकेला...."। पता नहीं ऐसा हुआ या नहीं मगर एक और हँस उड़ गया और धवल हँसों की पाँत में एक खाली स्थान बन गया।
भाषाई विमान पर दमकता हिन्दी का सूर्य अस्त हो गया
पद्मा सचदेव के अवसान से भाषाई साहित्य के वितान पर दमकता हिन्दी का एक सूर्य अस्त हो गया।एक भारतीय कवयित्री और उपन्यासकार के रुप में स्थापित पद्माजी डोगरी भाषा की पहली आधुनिक कवयित्री थीं। वे हिन्दी में भी समान अधिकार के साथ लिखतीं थीं। पद्माजी एक लब्ध प्रतिष्ठित रचनाकार थीं और उनके कविता संग्रह- "मेरी कविता, मेरे गीत" के लिए उन्हें वर्ष 1971 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ था, वर्ष 2001 में आपको भारत सरकार के नागरिक सम्मान पद्मश्री से और वर्ष 2007-08 में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा साहित्य में उल्लेखनीय अवदान के लिए राष्ट्रीय कबीर सम्मान प्रदान किया गया था। पद्माजी को जो कुछ उल्लेखनीय सम्मान मिले उनमें सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार, हिन्दी अकादमी पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिन्दी अकादमी सौहार्द पुरस्कार, राजा राममोहन राय पुरस्कार, जोशुआ पुरस्कार और अनुवाद पुरस्कार शामिल हैं।
"मदर ऑफ डोगरी" के रुप में अपनी पहचान बनाने वाली पद्मा सचदेव ने सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका लता मंगेशकर के डोगरी भाषा के पहले म्यूजिक एलबम को भी कम्पोज़ किया था। इस एलबम के कुछ गीतों जैसे- "भला शापिया डोरिया.." और "तून मला तून..." तो आज़ भी लोगों की जुबान पर हैं।पद्माजी के पहले कविता संग्रह- "मेरी कविता मेरे गीत" की प्रस्तावना में लिखा है कि पद्मा की कविता पढ़ने के बाद मुझे लगा कि मुझे अपनी कलम फेंक देनी चाहिए- पद्मा जो लिखती है वह वास्तव में सच्ची कविता है। डोगरी लौकगीतों और लोककथाओं से अनुप्रेरित होकर पद्माजी ने डोगरी में लिखना आरम्भ किया। उनकी पहली कविता वर्ष 1955 में एक स्थानीय अखबार में छपी थी। वर्ष 1969 में आपका पहला कविता संग्रह- "मेरी कविता मेरे गीत" प्रकाशित हुआ। केवल डोगरी ही नहीं हिन्दी और संस्कृत में भी आप समान अधिकार के साथ लिखती थीं। आपने कविता के अलावा हिन्दी में लघुकथाएं और उपन्यास भी लिखे। दो हिन्दी फिल्मों प्रेम पर्वत और आँखिन देखी के लिए अपने गीत भी लिखे। आप एक दक्ष लेखिका के साथ मेधावी अनुवादक भी थीं। आपने उर्दू, मराठी और उडिया में लिखी कई रचनाओं का हिन्दी और डोगरी में अनुवाद किया। आपको साहित्य अकादमी का अनुवाद सम्मान भी प्रदान किया गया था।
राजा दुबे
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