नर्मदा के किनारे भी है एक "राजघाट" जहाँ बारह फरवरी को मनता है गाँधीजी का श्राद्ध
ऱाजघाट - देश की राजधानी दिल्ली में बना एक समाधि स्थल है जहाँ महानिर्वाण के पश्चात राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के देहाँश भस्म के रुप में संचित हैं। शान्ति की तलाश में विश्ववन्द्य बापू की पारलौकिक उपस्थिति की अनुभूति कराती यह समाधि करोड़ों देशवासियों के लिये एक तीर्थस्थल के सदृष्य है। मगर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की एक समाधि बड़वानी के किनारे नर्मदा नदी के किनारे राजघाट में भी है। यह अनायास नहीं श्रद्धा की सायास परणिति थी कि नर्मदा नदी के तट पर जहाँ यह समाधि बनाई गई उसे भी "राजघाट" के नाम से जाना जाता है। इस समाधि के निर्माण का श्रेय पश्चिम निमाड़ (खरगोन) जिले के कस्बे बड़वानी में सक्रिय सर्वोदयी नेताओं की पहल को दिया जाता है ,सर्वोदयी नेता काशीनाथ त्रिवेदी इस समाधि के निर्माण के संयोजक ही नहीं प्रेरक भी थे। इस समाधि के निर्माण का संकल्प ईस्वी सन् उन्नीस सौ चौंसठ की बारह फरवरी को लिया गया था। समाधि स्थल के निर्माण का शुभारम्भ ईस्वी सन् उन्नीस सौ पैंसठ की चौदह जनवरी, मकर सँक्रान्ति के पर्व से हुआ था। जैसा कि सुविचारित था इसी वर्ष महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर तीस जनवरी को यहाँ भस्म कलश की स्थापना की गई और बारह फरवरी उन्नीस सौ पैंसठ को इस समाधि स्थल को लोकार्पित किया गया।
बा-बापू और महादेव भाई देसाई की भस्मियाँ संचित हैं यहाँ
राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी, उनकी जीवनसंगिनी कस्तूरबा गाँधी और महात्मा गाँधी के सचिव रहे महादेव भाई देसाई के देहाँश के ऱुप में तीनों महमना के भस्मावशेष इस समाधि स्थल में संचित हैं। बा और बापू की भस्मियाँ तो देश में एकाधिक स्थान पर संचित हैं और कस्तूरबा गाँधी और महादेव भाई देसाई की भस्मियाँ भी पुणे के आगा खाँ महल में दो अलग-अलग समाधि के रुप में संचित हैं मगर एक साथ बा-बापू और उनके अनन्य सेवक महादेव भाई देसाई की भस्मियाँ केवल बड़वानी कस्बे के राजघाट में ही संचित हैं। सर्वोदय आन्दोलन के प्रणेता महात्मा गाँधी की इस समाधि स्थल का निर्माण महात्मा गाँधी के अवदान से नई पीढ़ी के पहचान की एक विनम्र कोशिश ही कही जायेगी।इस समाधि स्थल पर लगे शिलालेख में समाधि से जुड़े तिथिवार व्यौरे के अलावा एक सूक्ति भी लिखी है कि- "यह स्मारक हमें सत्य, प्रेम और करुणा की प्रेरणा दे"। यह सूक्ति हमें गाँधीवादी जीवन दर्शन के मूल तत्वों से साक्षात्कार तो करवाती ही है साथ ही हमें एक ऐसे जीवन -दर्शन को अपनाने की प्रेरणा देती है जो सत्य, प्रेम और करुणा से अनुप्रेरित हो।
सेवक हो तो महादेव भाई देसाई जैसा
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के पच्चीस साल तक सचिव रहे महादेव भाई देसाई के बारे में उस समय के सभी प्रबुद्धजन और महात्मा गाँधी के सम्पर्क में आने वाले सभी लोग एक स्वर में यही कहते थे कि- "सेवक हो तो महादेव भाई देसाई जैसा"। महादेव भाई देसाई बापू के सचिव ही नहीं उनके परिवार के एक सदस्य भी थे। गुजरात में सूरत के पास एक छोटे-से गाँव सरस में जन्मे महादेव भाई देसाई ने ईस्वी सन् उन्नीस सौ सत्रह (अब से ठीक एक सौ चार साल पहले) महात्मा गाँधी के सचिव के रुप में काम करना आरम्भ किया था और ईस्वी सन् उन्नीस सौ बयालिस में जब पुणें के आगा खाँ महल में दिल का दौरा पड़ने पर उनका निधन हुआ तब भी वे महात्मा गाँधी और कस्तूरबा गाँधी के साथ ही थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और राष्ट्रवादी लेखक महादेव भाई देसाई एक कुशल सम्पादक भी थे। उन्होंने सन् उन्नीस सौ इक्कीस में आँग्ल भाषाई अखबार "इण्डिपेन्डेन्ट" का सम्पादन आरम्भ किया। महादेव भाई ने बापू के अखबार- "हरिजन" और कुछ सालों तक "नवजीवन" का सम्पादन भी किया।
गाँधी समाधि का संरक्षण कर राज्य सरकार ने अपना वादा निभाया
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने "नमामि देवी नर्मदे"
नर्मदा सेवा यात्रा के दौरान और बड़वानी के प्रवास में मीडिया को आश्वस्त किया था कि सिंगाजी महाराज और बाजीराव पेशवा की समाधि के समान ही राजघाट स्थित गाँधीजी की समाधि को भी संरक्षित किया जायेगा। यह तीनों समाधि स्थल नर्मदा नदी पर बने बाँधों से डूब में आ रहे थे। राजघाट स्थित गाँधीजी की समाधि के संरक्षण का वादा राज्य सरकार ने निभाया और समाधि जब सरदार सरोवर का जलस्तर बढ़ने पर डूब में आई तो सरकार ने संरक्षित देहाँश को नई समाधि बनाकर वहाँ प्रतिष्ठापित किया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तो जब भी बड़वानी जाते हैं इस समाधि पर अंकित यंग इंडिया अखबार के छ: अक्टूबर उन्नीस सौ इक्कीस के गाँधीजी के उस सम्बोधन को जिसमें जरुरतों को नियंत्रित करने की बात कही थी उसे जरुर पढ़ते हैं। वे कहते हैं आज सौ साल बाद भी यह बात उतनी ही प्रासंगिक है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस समाधि स्थल को श्रद्धा और आस्था का केन्द्र मानते हैं।
हर साल समाधि स्थल पर लगता है बारह फरवरी को सर्वोदयी मेला
राजघाट पर बनी इस समाधि के निर्माण के पीछे सुप्रसिद्ध गाँघीवादी एवम् सर्वोदयी विचारक एवम् मध्यभारत सरकार मेें शिक्षा मंंत्री रह चुके काशीनाथ त्रिवेदी की भूमिका सबसे प्रमुख रही है। श्री त्रिवेदी जब तक जीवित रहे ए हर वर्ष महात्मा गाँधी की पुण्यतिथि पर पदयात्रा का आयोजन करते थे। यह पदयात्रा ग्यारह फरवरी को समाधि स्थल पर पँहुचती थी। बारह फरवरी को गाँधीजी का श्राद्ध होता है । सभी पदयात्री उपवास रखते हैं और सर्वोदय मेले का आयोजन किया जाता है। पहले पदयात्रा समाधि स्थल से समाधि स्थल तक होती थी। इन दिनों यह पदयात्रा धार जिले के ग्राम टवलाई स्थित सर्वोदय ग्राम भारती केन्द्र से आरम्भ होती है। राजघाट में पहले बनी समाधि के डूब क्षेत्र में आने से नये स्थान पर बनी समाधि पर अब भी 12 फरवरी को महात्मा गाँधीजी के श्राद्ध पर लगने वाले मेले में हज़ारों श्रद्धालु भाग लेते हैं और अब निवाली स्थित कस्तूरबा गाँघी बालिका विद्यालय की बालिकाएं भी यहाँ आतीं हैं। इस दिन बड़वानी जिले में स्थानीय अवकाश रहता है।
ऱाजघाट - देश की राजधानी दिल्ली में बना एक समाधि स्थल है जहाँ महानिर्वाण के पश्चात राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के देहाँश भस्म के रुप में संचित हैं। शान्ति की तलाश में विश्ववन्द्य बापू की पारलौकिक उपस्थिति की अनुभूति कराती यह समाधि करोड़ों देशवासियों के लिये एक तीर्थस्थल के सदृष्य है। मगर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की एक समाधि बड़वानी के किनारे नर्मदा नदी के किनारे राजघाट में भी है। यह अनायास नहीं श्रद्धा की सायास परणिति थी कि नर्मदा नदी के तट पर जहाँ यह समाधि बनाई गई उसे भी "राजघाट" के नाम से जाना जाता है। इस समाधि के निर्माण का श्रेय पश्चिम निमाड़ (खरगोन) जिले के कस्बे बड़वानी में सक्रिय सर्वोदयी नेताओं की पहल को दिया जाता है ,सर्वोदयी नेता काशीनाथ त्रिवेदी इस समाधि के निर्माण के संयोजक ही नहीं प्रेरक भी थे। इस समाधि के निर्माण का संकल्प ईस्वी सन् उन्नीस सौ चौंसठ की बारह फरवरी को लिया गया था। समाधि स्थल के निर्माण का शुभारम्भ ईस्वी सन् उन्नीस सौ पैंसठ की चौदह जनवरी, मकर सँक्रान्ति के पर्व से हुआ था। जैसा कि सुविचारित था इसी वर्ष महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर तीस जनवरी को यहाँ भस्म कलश की स्थापना की गई और बारह फरवरी उन्नीस सौ पैंसठ को इस समाधि स्थल को लोकार्पित किया गया।
बा-बापू और महादेव भाई देसाई की भस्मियाँ संचित हैं यहाँ
राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी, उनकी जीवनसंगिनी कस्तूरबा गाँधी और महात्मा गाँधी के सचिव रहे महादेव भाई देसाई के देहाँश के ऱुप में तीनों महमना के भस्मावशेष इस समाधि स्थल में संचित हैं। बा और बापू की भस्मियाँ तो देश में एकाधिक स्थान पर संचित हैं और कस्तूरबा गाँधी और महादेव भाई देसाई की भस्मियाँ भी पुणे के आगा खाँ महल में दो अलग-अलग समाधि के रुप में संचित हैं मगर एक साथ बा-बापू और उनके अनन्य सेवक महादेव भाई देसाई की भस्मियाँ केवल बड़वानी कस्बे के राजघाट में ही संचित हैं। सर्वोदय आन्दोलन के प्रणेता महात्मा गाँधी की इस समाधि स्थल का निर्माण महात्मा गाँधी के अवदान से नई पीढ़ी के पहचान की एक विनम्र कोशिश ही कही जायेगी।इस समाधि स्थल पर लगे शिलालेख में समाधि से जुड़े तिथिवार व्यौरे के अलावा एक सूक्ति भी लिखी है कि- "यह स्मारक हमें सत्य, प्रेम और करुणा की प्रेरणा दे"। यह सूक्ति हमें गाँधीवादी जीवन दर्शन के मूल तत्वों से साक्षात्कार तो करवाती ही है साथ ही हमें एक ऐसे जीवन -दर्शन को अपनाने की प्रेरणा देती है जो सत्य, प्रेम और करुणा से अनुप्रेरित हो।
सेवक हो तो महादेव भाई देसाई जैसा
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के पच्चीस साल तक सचिव रहे महादेव भाई देसाई के बारे में उस समय के सभी प्रबुद्धजन और महात्मा गाँधी के सम्पर्क में आने वाले सभी लोग एक स्वर में यही कहते थे कि- "सेवक हो तो महादेव भाई देसाई जैसा"। महादेव भाई देसाई बापू के सचिव ही नहीं उनके परिवार के एक सदस्य भी थे। गुजरात में सूरत के पास एक छोटे-से गाँव सरस में जन्मे महादेव भाई देसाई ने ईस्वी सन् उन्नीस सौ सत्रह (अब से ठीक एक सौ चार साल पहले) महात्मा गाँधी के सचिव के रुप में काम करना आरम्भ किया था और ईस्वी सन् उन्नीस सौ बयालिस में जब पुणें के आगा खाँ महल में दिल का दौरा पड़ने पर उनका निधन हुआ तब भी वे महात्मा गाँधी और कस्तूरबा गाँधी के साथ ही थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और राष्ट्रवादी लेखक महादेव भाई देसाई एक कुशल सम्पादक भी थे। उन्होंने सन् उन्नीस सौ इक्कीस में आँग्ल भाषाई अखबार "इण्डिपेन्डेन्ट" का सम्पादन आरम्भ किया। महादेव भाई ने बापू के अखबार- "हरिजन" और कुछ सालों तक "नवजीवन" का सम्पादन भी किया।
गाँधी समाधि का संरक्षण कर राज्य सरकार ने अपना वादा निभाया
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने "नमामि देवी नर्मदे"
नर्मदा सेवा यात्रा के दौरान और बड़वानी के प्रवास में मीडिया को आश्वस्त किया था कि सिंगाजी महाराज और बाजीराव पेशवा की समाधि के समान ही राजघाट स्थित गाँधीजी की समाधि को भी संरक्षित किया जायेगा। यह तीनों समाधि स्थल नर्मदा नदी पर बने बाँधों से डूब में आ रहे थे। राजघाट स्थित गाँधीजी की समाधि के संरक्षण का वादा राज्य सरकार ने निभाया और समाधि जब सरदार सरोवर का जलस्तर बढ़ने पर डूब में आई तो सरकार ने संरक्षित देहाँश को नई समाधि बनाकर वहाँ प्रतिष्ठापित किया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तो जब भी बड़वानी जाते हैं इस समाधि पर अंकित यंग इंडिया अखबार के छ: अक्टूबर उन्नीस सौ इक्कीस के गाँधीजी के उस सम्बोधन को जिसमें जरुरतों को नियंत्रित करने की बात कही थी उसे जरुर पढ़ते हैं। वे कहते हैं आज सौ साल बाद भी यह बात उतनी ही प्रासंगिक है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस समाधि स्थल को श्रद्धा और आस्था का केन्द्र मानते हैं।
हर साल समाधि स्थल पर लगता है बारह फरवरी को सर्वोदयी मेला
राजघाट पर बनी इस समाधि के निर्माण के पीछे सुप्रसिद्ध गाँघीवादी एवम् सर्वोदयी विचारक एवम् मध्यभारत सरकार मेें शिक्षा मंंत्री रह चुके काशीनाथ त्रिवेदी की भूमिका सबसे प्रमुख रही है। श्री त्रिवेदी जब तक जीवित रहे ए हर वर्ष महात्मा गाँधी की पुण्यतिथि पर पदयात्रा का आयोजन करते थे। यह पदयात्रा ग्यारह फरवरी को समाधि स्थल पर पँहुचती थी। बारह फरवरी को गाँधीजी का श्राद्ध होता है । सभी पदयात्री उपवास रखते हैं और सर्वोदय मेले का आयोजन किया जाता है। पहले पदयात्रा समाधि स्थल से समाधि स्थल तक होती थी। इन दिनों यह पदयात्रा धार जिले के ग्राम टवलाई स्थित सर्वोदय ग्राम भारती केन्द्र से आरम्भ होती है। राजघाट में पहले बनी समाधि के डूब क्षेत्र में आने से नये स्थान पर बनी समाधि पर अब भी 12 फरवरी को महात्मा गाँधीजी के श्राद्ध पर लगने वाले मेले में हज़ारों श्रद्धालु भाग लेते हैं और अब निवाली स्थित कस्तूरबा गाँघी बालिका विद्यालय की बालिकाएं भी यहाँ आतीं हैं। इस दिन बड़वानी जिले में स्थानीय अवकाश रहता है।
राजा दुबे
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