पैंशनर्स के हित में सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला हुआ था इस दिन
देश मेंं प्रतिवर्ष 17 दिसम्बर को पैंशनर्स दिवस मनाया जाता है। यह दिन देश के पैंशनर्स के लिये एक खास महत्व रखता है। इसी दिन आज से अड़तीस साल पहले 17 दिसम्बर 1982 को सर्वोच्च न्यायालय ने पैंशनर्स के पक्ष में यह फैसला दिया था कि- पैंशन सेवानिवृत्त शासकीय कर्मचारियों का अधिकार है, उसको दिया जाने वाला कोई उपहार, पारितोषिक या दान नहीं। सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश व्हाय वी चंद्रचूड़ ने यह फैसला भारत सरकार के रक्षा विभाग के एक लेखा अधिकारी, डी एस नाकरा के मामले में दिया था। केन्द्र सरकार विरुद्ध डी एस नाकरा के इस बहुचर्चित विधिक वाद ने पैंशनर्स के अधिकारों को कानूनी मान्यता दिलाई और यह फैसला पैंशनर्स की अधिकारों की लड़ाई में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ (टर्निंग प्वाइंट ) माना जाता है।
भारत सरकार के रक्षा विभाग के लेखा अधिकारी डी एस नाकरा, देश-विदेश के कई आर्थिक एवम् वित्तीय संस्थानों में महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे। भारत सरकार के प्रतिष्ठान हिन्दुस्तान स्टील प्रायवेट लिमिटेड, राँची में आर्थिक परामर्शदाता और चार्टर्ड अकाउंटेंट के पद से सेवानिवृत्त नाकरा ने सेवानिवृत्ति के बाद यह महसूस किया कि भारत सरकार द्वारा पैंशनर्स के हितों की लगातार अनदेखी की जा रही है। पैंशनर्स के हित संरक्षण और उन्हें उनका वाजिब हक दिलाने के लिये नाकरा ने लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी। पैंशनर्स को उनके अधिकार दिलवाने की इस लड़ाई में नाकरा एक अकेले योद्धा के रुप में डटे रहे और अंततः 17 दिसम्बर 1982 को उन्होंने यह लड़ाई सर्वोच्च न्यायालय में जीती और सर्वोच्च न्यायालय ने पेंशन को संवैधानिक अधिकार बताते हुए ,भारत सरकार को यह निर्देश दिये कि वो पैंशनर्स के अधिकारों को संरक्षित करें और उनके हितलाभ बिना विलम्ब प्रदान करें। इस एक ऐतिहासिक फैसले के बाद ही देश में 17 दिसम्बर को प्रतिवर्ष- "पैंशनर्स दिवस" मनाया जाने लगा। देश के तमाम पैंशनर्स इस दिन पैंशनर्स को न्यायपूर्ण ,गरिमामय और समानता का जीवन बिताने का अधिकार दिलवाने वाले इस योद्धा डी एस
नाकरा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं.
केन्द्रीय सरकार प्रतिवर्ष जनवरी और जून माह से अपने कर्मचारियों और अधिकारियों को राष्ट्रीय मँहगाई इंडेक्स के आधार पर मंँहगाई भत्ते की घोषणा करती है। उतनी ही मँहगाई राहत पैंशनर्स के लिये भी घोषित की जाती है। देश में इस समय केन्द्र सरकार के लाखों सेवानिवृत्त कर्मचारियों और अधिकारियों को पैंशन मिल रही है। राज्यो में पैंशनर्स की संख्या भी काफी अधिक है, अकेले मध्यप्रदेश में ही पैंशनर्स कीसंख्या चार लाख नब्बे हजार है। वर्ष में दो बार मिलने वाली मँहगाई राहत के अलावा केन्द्र एवम् राज्य सरकार के पैंशनर्स को प्रति दस साल में गठित होने वाले वेतन आयोग का लाभ भी मिलता है। देश में गत एक जनवरी 2016 से सातवें वेतनमान से भी जहां सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों को बड़े हुए वेतन और अन्य आनुषांगिक लाभ मिले वहीं पेंशनर्स को भी यह लाभ मिले।
केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों, अधिकारियों और पैंशनर्स को जो मँहगाई भरते और वेतन आयोग के लाभ मिलते हैं उतने ही और उसी तिथि से यह लाभ राज्य सरकार ने कर्मचारियों, अधिकारियों और पैंशनर्स को अमूमन नहीं मिल पाते हैं और एरियर्स के लाभ पर तो कई बार ग्रहण लग जाता है। राज्य सरकारें प्राय: वित्तीय संकट का हवाला देकर ऐसी देयता को टाल देती हैं। पैंशनर्स यदि किसी ऐसे राज्य में रहते हैं जिसका विभाजन हुआ हो और एक नया राज्य बना हो मसलन मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश-उत्तरांचल या फिर बिहार-झारखण्ड वहां तो अविभाजित राज्य में रहने वाले पैंशनर्स को कोई भी हितलाभ तब तक नहीं मिलता जब तक पृथक हुए नये राज्य के पैंशनर्स को वह लाभ न मिले। ऐसे राज्यों में पैंशनर्स के हितलाभ विभाजन की खूँटी पर बरसों टँगे रहते हैं। ऐसी ही पैंशनर्स की तमाम समस्याओं का समाधान पैंशनर्स दिवस पर अपेक्षित होता है ।
राजा दुबे
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