फिल्म एक बहुआयामी संरचना होती है और निर्माता, निर्देशक और लेखक की कल्पना से एक फुल लैंग्थ फिल्म बनने तक वह लेखन, निर्देशन, निर्माण, सम्पादन, अभिनय, संगीत संयोजन, छायांकन और दीगर बीसियों विधा से गुजरती है. लेखन, फिल्मांकन और तकनीक के ट्रायपॉड पर खड़ी फिल्म एक समग्र प्रस्तुति के रुप में ही ध्यान खींचती है मगर कभी-कभी कोई तकनीशियन अपनी कला में इतनी ऊँचाइयों को छू लेता है कि उससे उस फिल्म ही नहीं उस विधा की प्रतिष्ठा भी बढ़ जाती है. ऐसी ही विधा है कास्ट्यूम डिजाइनिंग की जिसकी चर्चा में फिल्म समीक्षक प्राय: कँजूसी दिखाते हैं मगर फिल्म -"गाँधी" में कास्ट्यूम
डिजाइनर भानु अथैया को आस्कर सम्मान से अलंकृत किया गया तो उससे उनकी मेधा को तो वैश्विक ख्याति और वैश्विक पहचान मिली ही कास्ट्यूम डिजाइनिंग जैसी अपेक्षाकृत कम चर्चित विधा को भी एक प्रतिष्ठित स्थान मिला. इस उपलब्धि का श्रेय निश्चित रुप से भानु अथैया और उनकी क्षमता को पहचानने वाले गाँधी फिल्म के निर्देशक रिचर्ड एटनबरो को जाता है.
भानु अथैया अपनी ऑस्कर ट्रॉफी को एकेडमी के दफ्तर में रखवाना चाहतीं थीं
भानु अथैया भारत की पहली ऑस्कर पुरस्कार विजेता हैं उनके बाद वर्ष 1992 में सिनेमा में जीवन पर्यंत योगदान के लिये सत्यजीत रे को, वर्ष 2009 में सर्वश्रेष्ठ संगीत के लिये एक.आर.रहमान, सर्वश्रेष्ठ गीत के लिये गुलजार और इसी वर्ष सर्वश्रेष्ठ साउण्ड मिक्सिंग के लिये रेसुल पोक्कुट्टी को ऑस्कर सम्मान मिल चुका है इन पाँच ऑस्कर विजेताओं में से भानु अथैया संभवत:अकेली ऑस्कर सम्मान विजेता हैं जो सम्मानस्वरुप प्राप्त आस्कर ट्रॉफी की सुरक्षा को लेकर चिन्तित रहतीं थीं. वर्ष 2012 में भानु अथैया ने ऑस्कर ट्रॉफी को लौटाने की इच्छा जताई थी. वो चाहती थीं कि उनके जाने के बाद ऑस्कर ट्रॉफी को सुरक्षित स्थान पर रखा जाए. तब बीबीसी से बातचीत में भानू अथैया ने कहा था, "सबसे बड़ा सवाल ट्रॉफी की सुरक्षा का है, भारत में पहले कई अवॉर्ड गायब हुए है. मैने इतने सालों तक अवॉर्ड को इंजॉय किया है, चाहती हूँ कि वो आगे भी सुरक्षित रहे. उन्होंने कहा था, "मैं अक्सर ऑस्कर ऑफिस जाती हूँ, मैने देखा कि वहां कई लोगों ने अपने ट्रॉफी रखीं हैं. अमरीकी कॉस्ट्यूम डिजाइनर एडिथ हेड ने भी मरने से पहले अपने आठ ऑस्कर ट्रॉफियों को ऑस्कर ऑफिस में रखवाया था." नेटवर्क की पड़ताल तो बताती है वे अपनी ऑस्कर ट्रॉफी ऑस्कर कार्यालय को नहीं भेज पाईं थीं.
फिल्मों में कास्ट्यूम डिजाइनिंग के लिये रेकार्ड बुक में दर्ज है भानू अथैया का नाम
भारत की पहली ऑस्कर विजेता और सिनेमा जगत की जानी-मानी कॉस्ट्यूम डिजाइनर भानू अथैया का गत पन्द्रह अक्टूबर को 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया .वो ब्रेन ट्यूमर की वजह से बीते तीन सालों से बिस्तर पर थीं. पचास के दशक से भारतीय सिनेमा में सक्रिय भानू अथैया ने सौ से ज़्यादा फ़िल्मों के लिए कॉस्ट्यूम डिज़ाइन किए. ऑस्कर के अलावा उन्हें दो राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले हैं.वर्ष 1991 में फिल्म लेकिन के लिये और वर्ष 2002में फिल्म लगान के लिये . आमिर ख़ान की फ़िल्म-"लगान"और शाहरुख ख़ान की फ़िल्म-" स्वदेस " में उन्होंने आखिरी बार कॉस्ट्यूम डिज़ाइन किए थे.वर्ष 1956 से वर्ष 2004 तक फिल्मों में सक्रिय रही भानू अथैया का जन्म 28 अप्रैल 1928 को कोल्हापुर(महाराष्ट्र) में हुआ था. भानू किसी भी माहिर व्यक्ति की खुलकर प्रशंसा करतीं थीं. वे कहतीं थीं किफिल्मकार रिचर्ड एटनबरो ने गाँधी फ़िल्म में भारत का वास्तविक चित्रण किया है गाँधी फ़िल्म में कॉस्ट्यूम डिज़ाइन करना मेरे लिये बहुत बड़ी चुनौती थी.सौ से भी अधिक फिल्मों में ड्रेस डिजाइन कर रिकार्ड बुक में अपना नाम दर्ज करा चुकी है .
राजा दुबे
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