हर वर्ष 27 सितम्बर को जब भी बेटी दिवस मनाया
जाता है मुझे यह वाक्या जरुर याद आ जाता है. बात है वर्ष 1993 की.विश्व बाल अधिकार दिवस अर्थात 20 नवम्बर 1993 को दूरदर्शन के भोपाल केन्द्र ने स्थानीय जवाहर बाल भवन के साथ मिलकर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री, दिग्विजयसिंह के साथ जवाहर बाल भवन के बच्चों के साथ एक बातचीत का कार्यक्रम प्रस्तुत किया था. इस कार्यक्रम में बच्चों के अधिकारों के संरक्षण पर राज्य के दायित्व पर मुख्यमंत्री को अपनी बात कहनी थी तो उपस्थित बच्चों को बच्चों के अधिकारों से सम्बन्धित सवाल मुख्यमंत्री से पूछने थे.
अपनी जनसम्पर्क विभाग की मूल सेवा से हटकर मैं उन दिनों राज्य के महिला बात विकास विभाग में
प्रतिनियुक्ति पर बच्चों की रुचियों के समग्र विकास के संस्थान जवाहर बाल भवन में संचालक था. दूरदर्शन के इस कार्यक्रम में मेरी भूमिका सह संयोजक की थी ( संयोजक तो मूलतः दूरदर्शन के प्रोग्राम प्रोड्यूसर ही थे ) . कार्यक्रम में जवाहर बाल भवन के बच्चों के साथ मेरी बेटी दीप्ति दुबे भी एक प्रतिभागी थी. इस कार्यक्रम में दीप्ति ने मध्यप्रदेश के मन्दसौर जिले में
स्लेट पेन्सिल कारखानों में अपने अभिभावकों के साथ काम करने वाले बच्चों के - सिलकोसिस ( स्लेट पेन्सिल बनाते समय उड़ने वाली धूल से होने वाली टी. बी.सादृष्य एक बीमारी ) से पीड़ित होने पर सरकार के कदम पर सवाल किया था. दिग्विजयसिंह ने सवाल सुनने के बाद कहा - " आपने यह बहुत अच्छा सवाल पूछा है, बेटा " . बस, इसी बेटा सम्बोधन
पर दीप्ति ने मुख्यमंत्री को तत्काल टोका - " मुझे बेटा
नहीं बेटी कहिये मुख्यमंत्रीजी, मुझे बेटी होने पर गर्व है " इस टोके जाने से मुख्यमंत्री हठात् चौंक गये मगर एक पल बाद ही दिग्विजयसिंह ने मुस्कराते हुए कहा - " आपने यह बहुत अच्छा सवाल किया है बेटी " और इस सम्बोधन के बाद उन्होंने उस सवाल का जवाब दिया.
तब दीप्ति का कहा यह वाक्यांश कि मुझे बेटी होने पर गर्व है, आज तक मेरी स्मृति में यथावत का है. तुम्हे ही नहीं, हमें भी तुम्हारे बैटी होने पर गर्व है.
राजा दुबे.
No comments:
Post a Comment