एक सूबे के पंचायत एवम् ग्रामीण विकास विभाग की पत्रिका के सम्पादक ने पत्रिका के सम्पादकीय सलाहकार और राज्य के सचिव, पंचायत एवम्ं ग्रामीण विकास विभाग से जब यह पूछा कि केन्द्रीय पंचायत एवम् ग्रामीण विकास मंत्री, यह जानते हुए भी कि इस सूबे में भाजपा की सरकार है, विभागीय योजनाओं के लिये इतनी उदारता से और निष्पक्ष बनेर हकर केन्द्रीय सहायता कैसे दे रहे है? हर बात में सियासी जोड़-बाकी करने वालों के बीच कोई इतना निष्पक्ष कैसे हो सकता है? तब उन साउथ इंडियन सचिव ने कहा था -"यह एक कौल के पक्के बिहारी का अंदाज़ है और जयप्रकाश नारायण के शिष्यों वाली सारी खूबियाँ उन्हें सियासी संकीर्णता से उबरकर विकास का अलख जगाने को प्रेरित करती है.
यह बात है वर्ष 2007 की और चर्चा के केन्द्र में थे. केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह. वे जब, जहाँ और जितने समय भी रहे उन्होंनें अथक काम के और तटस्थ भाव से जनसाधारण के कल्याण के प्रतिमान गढ़े. उनका अवसान जेपी के वारिसों की एक जुझारू पीढ़ी के समापन का संकेत है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए यह कहते हैं कि ज़मीन से जुड़ा और गरीबी को समझने वाला नेता चला गया, तब वे दिवंगत नेता के अवदान पर सबसे मार्मिक टिप्पणी कर रहें होते हैं. राजनीति में विचारधारा के प्रति उनके गहरे रुझान के बारे में भी मोदी ने की यह टिप्पणी कि वे जिस विचारधारा से जुड़े, उसी को जीवन भर जिया, यह बात उनकी वैचारिक दृढ़ता का भाष्य कही जायेगी. प्रधानमंत्री ने बड़े तल्ख अंदाज ़ में यह भी कहा कि वे जिन आदर्शों के साथ चल रहे थे, उनके साथ चलना अब संभव नहीं था, उन्होंने इसे प्रकट भी कर दिया था.प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि बिहार के सीएम को राज्य के विकास को लेकर उन्होंनें जो चिट्ठी भेजी है, मैं नीतिशजी से आग्रह करूंगा कि रघुवंश ने आखिरी चिट्ठी में जो भावनाएं प्रकट की हैं, उसे आप और हम मिलकर पूरा करने का निश्चय करें.
राष्ट्रीय जनता दल के दिग्गज नेता और बिहार के वैशाली क्षेत्र के सांसद डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह का जन्म 6 जून 1946 को वैशाली के शाहपुर में हुआ था.डॉ. प्रसाद ने बिहार यूनिवर्सिटी से गणित में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की.अपनी युवावस्था में उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए आंदोलनों में भाग लियाा और वर्ष 1973 में उन्हें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का सचिव बनाया गया था. वर्ष 1977 से 1990 तक वे बिहार से राज्यसभा के सदस्य रहे.इस दरमियान वे वर्ष 1977 से 1979 तक वे बिहार के ऊर्जा मंत्री रहे.इसके बाद उन्हें लोकदल का अध्यक्ष बनाया गया. वर्ष 1985 से 1990 के दौरान वे लोक लेखांकन समिति के अध्यक्ष रहे और वर्ष 1990 में उन्होंने बिहार विधानसभा के सहायक स्पीकर का पदभार संभाला.लोकसभा के सदस्य के रूप में उनका पहला कार्यकाल 1996 से प्रारंभ हुआ। वे वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में निर्वाचित हुए और उन्हें केंद्रीय पशुपालन और डेयरी उद्योग राज्यमंत्री बनाया गया.लोकसभा में दूसरी बार वे वर्ष 1998 में निर्वाचित हुए तथा 1999 में तीसरी बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए.इस कार्यकाल में वे गृह मामलों की समिति के सदस्य रहे. वर्ष 2004 में चौथी बार उन्हें लोकसभा सदस्य के रूप में चुना गया और 23 मई 2004 से 2009 तक वे ग्रामीण विकास के केंद्रीय मंत्री रहेऔर इसके बाद वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने पांचवी बार जीत दर्ज की थी.
लालू प्रसाद यादव के विपरीत अपनी साफ-सुथरी छवि के कारण उन्हें समाज के सभी वर्गों और राजनीतिक तबके के बीच खासा सम्मान हांसिल था. वैसे उनका यह रिश्ताप्रिय रघुवंश बाबू! ये आपने क्या किया? मैनें परसों ही आपसे कहा था आप कहीं नहीं जा रहे है. लेकिन आप इतनी दूर चले गए.शुक्रवार को उस समय टूट गया था जब रघुवंश प्रसाद ने लालू को संबोधित दो-लाइन का एक साधारण सा त्यागपत्र भेजा था , जिसमें लिखा था कि - " मैं कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद से पिछले 32 वर्षों से आपके पीठ पीछे खड़ा रहा हूं. लेकिन अब और नहीं." इस पर तत्काल भेजे जवाबी पत्र में लालू ने लिखा कि उन्हें भरोसा ही नहीं हो रहा कि ‘रघुवंश बाबू’ उन्हें छोड़ देंगे. साथ ही कहा कि एक बार उनकी तबीयत ठीक हो जाए तो फिर दोनों बैठेंगे और इसे सुलझा लेंगे.मगर इस बार रघुवंश प्रसाद ने उन्हें मौका नही दिया.अब लालू प्रसाद ट्विट कर लिख रहें हैं - "प्रिय रघुवंश बाबू! ये आपने क्या किया? मैनें परसों ही आपसे कहा था आप कहीं नहीं जा रहे है. लेकिन आप इतनी दूर चले गए." मगर देर कर दी लालू आपने अब आपको रघुवंश का आसरा नहीं मिलेगा.
उच्चतम मूल्यों और आदर्शों की राजनीति करने वाले रघुवंश प्रसाद के महाप्रयाण से जो रिक्तता बिहार और अंततः: देश की राजनीति में ं आई है उसे भरना कठिन ही नामुमकिन है.आप हमेशा एक आदर्श और सिद्धांतों के प्रति समर्पित नेता के रुप में याद किये जायेंगे.
राजा दुबे
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