Thursday, August 6, 2020

त्रासदी का पुनर्स्मरण और एक संकल्प कि उसकी कभी पुनरावृत्ति न हो - राजा दुबे


द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा तथा नागासाकी शहरों पर 6 और  9 अगस्त 1945 को हुए अमेरिका द्वारा किये गये परमाणु हमले से पूरी दुनिया दहल गई थी. इस एक भीषण सामरिक त्रासदी की प्रतिवर्ष विश्व के लगभग सभी देशों में वर्षगांठ मनाई जाती है और इस मौके पर जापान सहित  समूचा विश्व संवेदना व्यक्त करता है और विश्व समुदाय की आँखें नम हो जाती है .जापान के पीस मैमोरियल पार्क, हिरोशिमा में प्रतिवर्ष  6 अगस्त को हजारों लोग एकत्रित होते हैं और हिरोशिमा और नागासाकी हमले में मारे गए अपने प्रियजन को बड़े ही भारी मन से मार्मिक श्रद्धांजलि देते हैं. विश्व भर में इस हमले को बीसवीं सदी की सबसे बड़ी घटना बताते हुए दुख जताया जाता है.और इस त्रासदी का पुनर्स्मरण इस एक संकल्प के साथ के साथ किया जाता है कि ऐसी त्रासदी की कभी पुनरावृत्ति न हो. क्या वाकई उपनिवेशवादी ताकतें इस संकल्प को पूरा होने देंगी? जापान में 6 अगस्त को  हिरोशिमा दिवस को शांति दिवस के तौर पर मनाया जाता है. इस उम्मीद में यह आयोजन होता है कि दुनिया में अब कभी इन हथियारों का इस्तेमाल नहीं होगा. बीसवी सदी की इस सबसे  दर्दनाक घटना का अपराधी देश अमेरिका था, और उसके तत्कालीन राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने यह कहकर इस विनाशलीला का बचाव किया था कि मानव इतिहास के सबसे खूनी द्वितीय विश्व युद्ध को खत्म कराने के लिए ऐसा करना जरूरी था, जो उस कालखण्ड का सबसे शर्मनाक कथन था.

युद्ध की विभीषिका का चरम था हिरोशिमा पर परमाणु बम से हमला

प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में ंंभीषण संघर्ष मे लाखों लोग हताहत हुए और इन दो विश्वयुद्धों के बाद भी विभिन्न देशों के बीच जो द्विपक्षीय युद्ध हुए उसमें भी हज़ारों लोग मारे गये मगर द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम से किया गया हमला युद्ध की विभीषिका का चरम था.दो दिनों के अंतराल पर हुए इन हमलों से बसे बसाए दो शहर पूरी तरह नष्ट हो गए. हिरोशिमा पर हुए हमले में करीब डेढ़ लाख लोगों की मौत हुई थी जबकि नागासाकी पर हुए हमले में करीब अस्सी हज़ार लोग मारे गए थे. अमेरीका के इन दो हमलों ने द्वितीय विश्वयुद्ध की सूरत बदल कर रख दी थी.हमले के बाद जापान ने तुरंत युद्धविराम की घोषणा कर दी थी  अमेरीका द्वारा किए गए यह दोनों हमले ऐसी जगह किए गए थे जहाँ न तो कोई बड़ा सैन्य अड्डा था न वहाँ  कोई बड़ी सैन्य गतिविधि चल रही थी.यह इलाके पूरी तरह से रिहायशी थे.आँकड़ों के मुताबिक हिरोशिमा पर हुए परमाणु हमले में करीब साठ प्रतिशत लोगों की मौत तुरंत हो गई थी, जबकि करीब तीस प्रतिशत लोगों की मौत अगले एक माह के अंदर भयंकर जख्मों के बाद हुई। इसके अलावा करीब दस फीसदी लोग यहां पर मलबे में दबने और अन्य कारणों से मारे गए थे.इस हमले का सबसे दुखद पहलू यह था कि हमले के सोलह घंटे के बाद राष्ट्रपति ट्रूमैन ने जब घोषणा की, तब पहली बार जापान को पता लगा कि हिरोशिमा में हुआ क्या है? राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन के शब्द थे,  सोलह घंटे पहले एक अमेरिकी विमान ने हिरोशिमा पर एक परमाणु बम गिराया है.

हिरोशिमा की विभीषिका के बाद ही संयुक्त राष्ट्र अस्तित्व में आया था 

द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषका खास तौर पर जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर अमेरीका द्वारा हुए परमाणु हमले के बाद विश्व के कई राष्ट्रों द्वारा विश्वशान्ति स्थापित करने के आग्रह के परिप्रेक्ष्य में अमेरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति  फ्रैन्कलिन रूजवेल्ट ने अप्रैल 1945 को अमेरिका के सैन फ्रैंसिस्को में विश्व के नेताओं की एक बैठक बुलाई थी ,उनकी विश्वशान्ति की इस पहल से ही 24 अक्टूबर, 1945 को विश्व में शान्ति स्थापना की पहल करने वाली सबसे बड़ी और सर्वमान्य संस्था ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (यू.एन.ओ.) जो अब केवल संयुक्त राष्ट्र के नाम से जानी जाती है उसकी स्थापना हुई थी.प्रारम्भ में केवल  इक्यावन  देशों ने ही संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किये थे.आज 193 देश इसके पूर्ण सदस्य हैं व दो देश संयुक्त राष्ट्र संघ (यू.एन.ओ.) के अवलोकन देश (ऑबजर्बर) हैं.संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के साथ ही हिरोशिमा पर परमाणु बम से हमले पर इण्टरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस , हेग के पूर्व उपाध्यक्ष न्यायमूर्ति सी.जी. वीरामंत्री, श्रीलंका जो दुनिया में प्रख्यात न्यायाविदों में गिने जाते हैं, उन्होंने भी विश्वशान्ति के लिये परमाणु निरस्त्रीकरण अभियान की अगुवाई की. उनका तर्क है कि परमाणु हथियार अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून व तमाम धर्मों के सिद्धांतों के खिलाफ है और बौद्ध, ईसाई, हिंदू या इस्लामी धर्मग्रंथों में भी जन-संहारक हथियारों का विरोध किया गया है.

भारत सहित नौ देशों के पास है परमाणु आयुध, जो चिन्ता का विषय है 

हिरोशिमा नागासाकी पर परमाणु बम से हमले के बाद भी विश्व में परमाणु हथियारों की जमा करने की स्थिति चिन्ताजनक है.स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार वर्तमान में विश्व के नौ देशों ने ऐसे परमाणु हथियार विकसित कर लिए हैं जिनसे मिनटों में यह दुनिया खत्म हो जाए.यह नौ देश हैं- अमेरिका  (7,300),  रूस  (8,000), ब्रिटेन (225), फ्रांस (300), चीन (250), भारत (110), पाकिस्तान (120), इजरायल (80) और  उत्तरी कोरिया (60) . इन 9 देशों के पास कुल मिलाकर 16,445 परमाणु हथियार हैं.बेशक स्टार्ट समझौते के तहत रूस और अमेरीका ने अपने भंडार घटाए हैं, मगर तैयार परमाणु हथियारों का 93 फीस सदी हिस्सा आज भी इन दो देशों के पास है यह भी चिन्ता का विषय है.

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भारत के प्रधानमंत्री ने हिरोशिमा
दिवस पर हिंसामुक्त विश्व का आव्हान किया

हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराये जाने को मानवता के खिलाफ एक जघन्य अपराध निरुपित करते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह त्रासद घटना युद्ध की भयावहता की याद दिलाती है. उन्होंने हिंसा मुक्त विश्व के निर्माण पर जोर दिया और जापान के प्रधानमंत्री शिंझो आबे ने भी इस भावना को साझा किया.मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि मानवता की समस्याओं के समाधान शांति और प्रगति में निहित हैं.उन्होंने कहा, ‘‘हिरोशिमा में मारे जाने वाले सभी लोगों को मेरी श्रद्धांजलि। बम गिराये जाने की घटना हमें युद्ध की भयावहता और मानवता पर उसके असर की याद दिलाती है.उन्होंने कहा, ‘‘मानवता की समस्याओं के समाधान शांति और प्रगति में निहित हैं. आइए, एक शांतिपूर्ण और हिंसा से मुक्त दुनिया के निर्माण के लिए कंधे से कंधा मिलाकर चलें.’’जापानी प्रधानमंत्री आबे ने ट्वीट किया, ‘‘प्रधानमंत्री मोदी, आपके सुविचारित संदेश के लिए मेरी ओर से हार्दिक धन्यवाद. मैं हिरोशिमा के लिए भारत की जनता की एकजुटता की गहराई से सराहना करता हूं. आइए, दुनिया में शांति के लिए मिलकर काम करते रहें.’’ 

 विश्वशान्ति के लिये गाँधी दर्शन आज भी प्रासंगिक है

भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का भी मानना था कि जब तक विश्व में हिरोशिमा जैसे परमाणु हमले का खतरा रहेगा विश्वशांति का सपना कभी पूरा नहीं हो पायेगा.महात्मा गाँधी यह भी मानते थे कि विश्व में वास्तविक शांति लाने के लिए बच्चे ही सबसे सशक्त माध्यम हैं। उनका कहना था कि ‘‘यदि हम इस विश्व को वास्तविक शान्ति की सीख देना चाहते हैं और यदि हम युद्ध के विरूद्ध वास्तविक युद्ध छेड़ना चाहते हैं, तो इसकी शुरूआत हमें बच्चों से करनी होगी।’’ यदि महात्मा गाँधी इस युग में जीते होते तो वह हमारे विश्व को गरीबी, अशिक्षा, आतंक, एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र को परमाणु शस्त्रों के प्रयोग की धमकियों तथा विश्व के ढाई अरब बच्चों के सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए जुझ रहे होते। महात्मा गाँधी के जन्मदिवस 2 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में सारे विश्व में मनाया जाता है और आज जब हम हिरोशिमा दिवस के माध्यम से युद्ध की विभीषिका की बात कर रहें हैं महात्मा गाँधी का दर्शन सर्वथा प्रासंगिक है. अमेरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी 27 मई 2016 को जापान की ऐतिहासिक यात्रा की थी. यात्रा 
के दौरान उन्होंने हिरोशिमा परमाणु हमले के पीड़ितों को जापान के हिरोशिमा में स्थित पीस मैमोरियल पार्क में जाकर श्रद्धांजलि दी थी.हिरोशिमा में दुनिया के पहले परमाणु हमले के करीब इकहत्तर साल बाद पहली बार किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने उस स्थल का दौरा किया इस दौरान ओबामा ने कहा कि इकहत्तर साल पहले आसमान से मौत गिरी थी और दुनिया बदल गई थी. थी.ओबामा के बयानों में हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम हमलों के लिए दुख और पछतावा साफ दिखा मगर उसे नाकाफी बताया गया.

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने जापान के हिरोशिमा, नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम की त्रासदी पर - " हिरोशिमा की पीड़ा " नामक कविता लिखी थी.गौरतलब है कि अटलबिहारी वाजपेयी के निधन के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने उनकी कविताओं  को पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए निर्देश दिए थे . सुप्रसिद्ध कवि अज्ञेय की कविता-" हिरोशिमा " भी चर्चित रही है.




राजा दुबे 

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