Thursday, July 30, 2020

फिल्म में उनके हिस्से आया एक गाना और दर्शकों में उनकी पहचान बन गई


फिल्म अभिनेत्री कुमकुम की अभिनय यात्रा की
शुरुआत बड़ी रोचक रही. फिल्मकार गुरुदत्त बड़े मूडी थे. वर्ष 1954 में जब वे फिल्म -"आर पार " बना रहे थे तब फिल्म का एक गाना - " कभी आर, कभी पार, लागा तीरे नज़र " वे हास्य अभिनेता जगदीप पर फिल्माना चाहते थे मगर अचानक उनका मूड बदला और वे उसे किसी अभिनेत्री पर फिल्माने का मूड बना बैठे. अब एक गाने के लिये कोई भी बड़ी अभिनेत्री तैयार नहीं हो रही थी नतीजतन एक सर्वथा नये चेहरे यानी कुमकुम सेपूछा गया और वो तैयार हो गई. प्रतिभा तो कुमकुम में थी ही और वो अपने हिस्से आये इस एक गाने से ही दर्शको में अपनी पहचान बनाने में सफल रही.

बीते जमाने की यही मशहूर अभिनेत्री  कुमकुम जिन्होंने दो दशक के अपने फिल्मी कैरियर में एक सौ पन्द्रह से भी ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया था उनका गत मंगलवार को  86 साल की उम्र में निधन हो गया.वे लंबे समय से बीमार थीं.उन्होंने मदर इंडिया, आर-पार और सी.आई.डी. जैसी कई हिट हिंदी फिल्मों में काम किया था.कुमकुम का जन्म बिहार के हुसैनाबाद के बेहद प्रतिष्ठित नवाब परिवार में 22 अप्रैल 1934 को हुआ था। उनका असली नाम जैबुन्निसा था. वर्ष 1954 में  फिल्म - "आर पार " मेें उन पर एक गाना फिल्माया गया था, यहीं से उनकी अभिनय यात्रा का आरम्भ हुआ था.उन्हें फिल्मों में लाने का श्रेय गुरुदत्त को दिया जाता है.

कुमकुम ने 50 से 60 के दशक के दौरान सबसे ज्यादा फिल्में कीं.इस दौरान गुरुदत्त, किशोर कुमार, दिलीप कुमार, देवानंद समेत कई बड़े सितारों के साथ काम किया.आर-पार (1954), मिस्टर एंड मिसेस 55 (1955), हाउस नंबर 44 (1955), सीआईडी (1956), फंटूश (1956), प्यासा (1957), नया दौर (1957), मदर इंडिया (1957), शरारत (1959), उजाला (1959), दिल भी तेरा हम भी तेरे (1960), कोहिनूर (1960), सन ऑफ इंडिया (1962), मिस्टर एक्स इन बॉम्बे (1964), गंगा की लहरें (1964), एक सपेरा एक लुटेरा (1965), राजा और रंक (1968), आंखें (1968), गीत (1970), ललकार (1972) और एक कुंवारा-एक कुंवारी (1973) उनकी मशहूर फिल्में हैं.कुमकुम ने 1963 में एक भोजपुरी फिल्म "गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ाईबो " में भी काम किया था.इसे भोजपुरी फिल्म उद्योग की सबसे पहली बनी फिल्म भी माना जाता है. 

कुमकुम उन अर्थों में सितारा नहीं थीं जिनके नाम से फिल्म बिकती हो मगर उनके अभिनय, उनके द्वारा निभाई गई भूमिका फिर वो चाहे जितनी छोटी ही क्यों न हो उसके फिल्म के हिट होने में उनकी भूमिका अहम होती थी.याद कीजिये फिल्म-" मदर इंडिया " में साहूकार की बेटी की उनकी भूमिका की. फिल्म में राजेन्द्रकुमार , राजकुमार, सुनील दत्त और नरगिस जैसे सितारे होने के वे चम्पा की भूमिका में खूब जमीं थीं.

संतोष कुमकुम की सबसे बड़ी खूबी थी. उनके साथ बीसियों फिल्मों में प्रमुख भूमिका निभा चुके राजेन्द्र कुमार का कहना है कि वे भूमिका की लम्बाई या पटकथा में उनकी अहमियत या फिर दूसरी नायिकाओं की तुलना में कमतर चरित्र चित्रण को लेकर कभी भी असंतुष्ट नहीं ं रहीं वे हमेशा संतोष बनाये रखतीं और कहतीं थी - " अल्लाह जो कुछ भी अता करे उसे शुक्रिया के साथ स्वीकार करना चाहिए. अब ऐसे संतुष्ट और निष्ठावान कलाकार कहाँ मिलेंगे ? 


राजा दुबे

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