जगदीप ने हास्य अभिनय के क्षेत्र में खाँटी देशी शैली से अपनी एक अलहदा पहचान बनाई थी. उस समय जब हास्य अभिनय के लिये चार्ली चैपलिन और लॉरेल हार्डी की अभिनय शैली एक मानदण्ड हुआ करती थी उन दिनों हिन्दी फिल्मों में अपना मुकाम बनाने के लिये हास्य अभिनेताओं को जमकर पापड़ बेलने पड़ते थे और उसी कालखण्ड में जगदीप ने अपनी प्रतिभा के बल पर मुकम्मल स्थान बनाया. जगदीप ने अपनी संवाद अदायगी और आँख भौंह और चेहरे से भाव अभिव्यक्ति की ऐसी शैली विकसित की कि वो हिन्दी फिल्म के शीर्षस्थ हास्य अभिनेताओं में शुमार हो गये. गत 08 जुलाई को इक्यावन वर्ष की उम्र में ं बान्द्रा, मुम्बई में उनका देहावसान हो गया.
यूँ तो जगदीप, वर्ष 1975 में -" शोले " फिल्म के रिलीज होने से कई सालों पहले से हास्य अभिनय के क्षेत्र में सूरमा माने जाते थे मगर शोले में जावेद अख्तर ने उन्हें एक ऊँची हाँकने वाले बतोलेबाज़ किरदार - " सूरमा भोपाली " का ऐसा जामा पहनाया कि उसके बाद से वे ताज़िन्दगी सूरमा भोपाली ही बने रहे और इस किरदार ने उन्हें ऐसी ख्याति दिलाई कि वे सूरमा भोपाली के नाम से ही पहचाने जाने लगे. जावेद अख्तर साहब चूँकि भोपाल पले-बढ़ें हैं अत: उन्होंने टिपिकल भोपाली लहजे में ऊंची हाँकने वाले सूरमा भोपाली का किरदार बखूबी गढ़ा. मजे की बात यह है कि इसी तर्ज़ और मिजाज के एक शख्स नाहरसिंह बघेल भोपाल में हुए हैं जिन्हें भोपाल नवाब ने सूरमा का खिताब अता किया था. सूरमा भोपाली के किरदार की अपेक्षित सफलता के बाद कथित असली सूरमा भोपाली ने जावेद अख्तर पर मुकदमा भी दायर किया मगर देश तो जगदीप को ही सूरमा भोपाली मान चुका था.
फिल्मी दुनिया में जगदीप के नाम से मशहूर हुए इस कलाकार का वास्तविक नाम सैयद इश्तियाक़ अहमद जाफ़री था.जगदीप का जन्म 29 मार्च 1939 को मध्य प्रदेश के दतिया जिले में हुआ था. उनके परिवार में दो बेटे जावेद और नावेद जाफ़री हैं. उन्होंने गैर फिल्मी युवती नसीम बेगम से शादी की थी. जगदीप ने अपने पाँच दशक के लम्बे अभिनय कैरियर में क़रीब चार सौ फिल्मों में काम किया.जगदीप ने वर्ष 1951 में फिल्म- "अफसाना " से अपनी अभिनय यात्रा की शुरुआत बतौर बाल कलाकार की थी, यह वही फिल्म थी जिससे दिग्गज फिल्म निर्माता बीआर चोपड़ा ने भी निर्देशन में कदम रखा था.उन्हें इस किरदार के लिए तीन रुपये बतौर मेहनताना दिए जाने का वादा किया गया था, लेकिन एक डायलॉग के बाद इस राशि को दोगुना कर दिया गया था.इसके बा‘अब दिल्ली दूर नहीं , बिमल रॉय की फिल्म दो बीघा ज़मीन (1953), केए अब्बास की फिल्म मुन्ना (1954), गुरुदत्त की फिल्म आर पार (1954) और एवीएम प्रोडक्शंस की हम पँछी एक डाल के जैसी फिल्मों में वह बाल कलाकार के रूप में नजर आए थे. हम पंक्षी एक डाल के फिल्म में निभाई गई उनकी भूमिका को काफी सराहा गया था. पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तो इसे लेकर उन्हें उपहार भी दिया था.उन्होंने रामसे ब्रदर्स की 1984 में आई फिल्म ‘पुराना मंदिर’ और ‘3डी सामरी’ (1985) नाम की भूतिया फिल्मों में भी अभिनय किया और ‘अंदाज अपना अपना’ में सलमान खान के पिता का यादगार किरदार भी निभाया था.
जगदीप ने अभिनय के शुरुआती दिनों में छोटे-बड़े सभी तरह के किरदार अदा किए. अपनी कला से उन्होंने बिमल रॉय जैसे निर्देशकों को भी प्रभावित किया.जिन्होंने वर्ष 1953 में फिल्म ‘दो बीघा ज़मीन’ में जगदीप को जूते पॉलिश करने वाले लालू उस्ताद की भूमिका निभाने का मौका दिया.एवीएम प्रोडक्शंस ने जगदीप को भाभी (1957), बरखा (1960) और बिंदिया जैसी फिल्मों में बतौर लीड किरदार लॉन्च किया था. कुछ और फिल्मों में भी वह मुख्य भूमिका में नजर आए थे. भाभी फिल्म में वह अभिनेत्री नंदा के साथ प्रमुख भूमिका में नजर आए थे.इसके बाद शम्मी कपूर की 1968 में आई फिल्म ब्रह्मचारी ने उन्हें एक हास्य कलाकार के तौर पर स्थापित कर दिया.जगदीप पर कुछ हिट गाने भी फिल्माए गए थे. फिल्म पुनर्मिलन का गीत ‘पास बैठो तबीयत बहल जाएगी’ और ‘इन प्यार की राहों में’, सुपरहिट फिल्म भाभी के गीत ‘चल उड़ जा रे पंछी ’ और ‘चली चली रे पतंग’ और फिर वो ही रात फिल्म का गीत ‘अब गए यारो जीने के दिन’ उन्हीं पर फिल्माए गए थे.
जगदीप ने अपने प्रसिद्ध किरदार -"सूरमा भोपाली " को भुनाने के लिये वर्ष 1988 में एक फिल्म -" सूरमा भोपाली " का निर्देशन भी किया था.इस फिल्म में जगदीप ने सूरमा भोपाली का किरदार निभाया था और धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन प्रमुख भूमिकाओं में नजर आए थे. रेखा और डैनी इसमें विशेष भूमिकाओं में थे.हालाँकि इस फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर उनती सफलता नहीं मिल पाई, लेकिन मध्य प्रदेश में इसने अच्छा कारोबार किया था.
पहले बाल कलाकार, फिर एस संवेदनशील युवक और अंततः एक सशक्त हास्य अभिनेता के रुप में तीनों ही पारियों में जगदीश ने अपार सफलता प्राप्त की और फिल्मी दुनिया में अपना एक खास मुकाम बनाया.
* राजा दुबे
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