Sunday, June 7, 2020

रोमाँस की चाशनी में मालपुये-सी तैरती थी वासुदा की फिल्में

फिर एक और निधन की खबर और फिल्मकार वासु चटर्जी भी नहीं रहे . कितने सितारे सिने इतिहास का हिस्सा बन गये. बासु दा यानी  वासु चटर्जी बँगाल से बॉलीवुड में आये फिल्मकार थे मगर वे शायद ऐसे  पहले  फिल्मकार थे जिन्होंने कोलकाता की रोमाँस  फिल्माने की देवदासियाना शैली से अलग, अपनी  अलहदा शैली बनाई . फिल्मों की रेसिपी के भाष्यकार एक समीक्षक ने तो इस पर बड़ी सटीक टिप्पणी की है  कि वासुदा रोमाण्टिक फिल्मों को ऐसे बनाते थे जैसे रोमाँस की चाशनी में कोई मालपुये बना रहा हो. खस्ते और स्वाद भरे.

वासुदा ने एक से बढ़कर एक तीस से भी ज्यादा रोमांटिक फिल्में बनाई. अमोल पालेकर, जरीना वहाब और टीना मुनीम जैसे सितारों को इन्होंने ब्रेक दिया.
और आज इस बात पर कौन यकीन करेगा कि कैरियर के शुरुआती अट्ठारह साल तक यानी लगभग दो दशक तक वे बतौर इलस्ट्रेटर और कार्टूनिस्ट के रूप में काम करते रहे , बाद में फिल्म बनाने की ओर वे मुखातिब हुए और छोटी सी बात, रजनीगंधा, बातों बातों में, एक रुका हुआ फैसला और चमेली की शादी जैसी फिल्मों का निर्देशन किया. चमेली की शादी हो या खट्टा मीठा मध्यवर्गीय  परिवार की गुदगुदाती और रोमाँस के रंगों से प्रेक्षकों को सरोबार करती कॉमेडी की भीनी-भीनी खुशबू से महकती रोमाण्टिक फिल्म बनाने वाले वासुदा ने बॉलीवुड में अपना एक अलग ही मुकाम बनाया था.

वर्ष 1969 से 2011 तक वासु चटर्जी फिल्म निर्दशन के क्षेत्र में सक्रिय रहे. फिल्मों में बासु चटर्जी के महत्वपूर्ण अवदान के लिय उन्हें सात फिल्मफेयर अवॉर्ड और दुर्गा फिल्म के लिए वर्ष 1992 में उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था.वर्ष 2007 में उन्हें आईफा ने लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड प्रदान किया था.फिल्मों के अलावा बासुदा ने ब्योमकेश बख्शी और रजनी जैसे टीवी धारावाहिक का भी  निर्देशन किया था.हिन्दी में जासूसी के देशज प्रस्तुति को निर्देशित करने मे उनकी महारत देखते ही बनती धी और नारी सशक्तिकरण पर केन्द्रित टीवी धारावाहिक रजनी तो मानों जागरुकता की कथाभूमि पर एक मील के पत्थर के मानिन्द था .वासुदा के परिवार से उनकी बेटी रूपाली गुहा भी फिल्मों में निर्देशन कर रही हैं।  रूपाली टीवी धारावाहिक बना रहीं हैं.पिछले दिनों ही बासु चटर्जी की फिल्मों के गीतकार योगेश के अवसान के बाद वासुदा का जाना बॉलीवुड के लिये दोहरा झटका है.

वर्ष 1966 में आई राज कपूर और वहीदा रहमान की फिल्म तीसरी कसम में उन्होंने निर्देशक बासु भट्टाचार्य के सहायक के बतौर काम किया. इस फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ  फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता था.और तब वासु भट्टाचार्य ने कहा था यह पुरस्कार वासु चटर्जी का भी उतना ही है जितना मेरा है.वासुुुदा की अधिकांश फिल्में मध्यवर्गीय परिवारों के इर्द-गिर्द का रचना संसार रचती थीं.इन फिल्मों में शादीशुदा जिंदगी और प्यार की कहानियाँ होती थीं. उस दौर में हृषिकेश मुखर्जी, बासु भट्टाचार्य के साथ बासु चटर्जी ने भीआम लोगों के सिनेमा की अगुवाई की थी.उनकी फिल्म छोटी सी बात, बातों बातों में और चितचोर में अमोल पालेकर द्वारा निभाए गए किरदारों ने उन्हें आम आदमी के नायक के बतौर स्थापित किया था.इसके अलावा एक रुका हुआ फैसला और वर्ष 1989 में आई फिल्म कमला की मौत बासु चटर्जी की उन फिल्मों में शामिल हैं, जो सामाजिक मुद्दों पर बनी थीं.अजमेर में 10 जनवर  1930 जन्मेे  बासु चटर्जी ने अपने कैरिअर की शुरुआत बॉम्बे (अब मुंबई) से प्रकाशित साप्ताहिक टेबलॉयड ‘ब्लिट्ज़’ से बतौर इस्लस्ट्रेटर और कार्टूनिस्ट की थी. यहां 18 साल तक काम करने के बाद उन्होंने फिल्मों की ओर रुख किया था.


छोटे बजट में, बिना बड़े सितारों को शामिल किये बिना, मारधाड़ से हटकर कैसे एक लोकप्रिय फिल्म बनाई जाती है जो दर्शकों को अंत तक बाँधे रखने में समर्थ हो, इस कला में जो गिने चुने हिन्दी फिल्मकारों को महारत हाँसिल है उनमें वासुदा भी शामिल थे. साहित्य की गहरी समझ और उससे गहरे जुड़ाव के कारण ही वे ऐसी कालजयी फिल्में बना पाये. साहित्य में दर्ज कालखण्ड के व्यौरे  को फिल्म में उसके मूल स्वरुप को बनाये रखते हुए प्रस्तुत करना आसान नहीं था मगर वासुदा ने यह कमाल किया और उसे दर्शकों ने भी खूब पसंद किया स्वामी फिल्म उन्होंने शतरचंद्र के उपन्यास पर बनाई थी, इसकी पटकथा लिखी थी हिंदी की प्रसिद्ध कथाकार मन्नू भंडारी ने. मन्नू भंडारी की कहानी ‘यही सच है’ पर उन्होंने ‘रजनीगंधा’ फिल्म और राजेंद्र यादव के उपन्यास ‘सारा आकाश’ पर इसी नाम से फिल्म भी बनाई थी. ऐसे फिल्मकार का अवसान फिल्म जगत के लिये एक अपूरणीय क्षति है.

राजा दुबे

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