Saturday, April 21, 2018

कौन-सा समाज

वो कौन है जिन्हें फर्क पड़ रहा है। मेरी कॉलोनी में, जहां एक घर एक करोड़ का है। रहनेवाले एमएनसी में काम करते हैं, जिनके बच्चे इंटरनेशनल स्कूलों में पढ़ने जाते हैं। सम्मानितों की इस बस्ती में भरी दोपहरी में मेरे घर के सामने आदमी पेंट खोलकर खड़ा हो गया। उसकी विक्षिप्तता उस दिन वो मुझे दिखाना चाह रहा था। मैं चिल्लाई, किया हंगामा तो भागा वो सरपट पेंट पकड़कर। लेकिन, क्या किसी बच्ची को ये समझ आ भी पाएगा? वो उसकी मंशा समझ भी पाएगी? किसी को देखकर भी क्या ठीक से कुछ बता पाएगी? छोड़ो उस बच्ची को जो अगर मैं घर नहीं किसी सड़क किनारे अकेली खड़ी होती तो ऐसे ही उसे डरा पाती क्या? इतनी हिम्मत दिखा पाती क्या?सोच रही हूं तब से क्या नहीं सुनी होगी उसने खबरें? नहीं पढ़ा होगा अखबार? नहीं होगी कोई बच्ची उसके घर में?? आखिर क्यों उसे फर्क नहीं पड़ता है???

दीप्ति

2 comments:

Unknown said...

Is it right?

Unknown said...

Unbelievable?