पापा की बेटी |
हम एक अजीब से अविश्वास के माहौल में जी रहे हैं। हर किसी को शक की
नज़र से देखते हैं। हर कोई हमें गलत ही लगता हैं। खासकर पुरुषों के प्रति तो ये
अविश्वास और बढ़ जाता हैं। आजकल अस्मि मेरे और भुवन के मर्जिंग ऑफिस टाइम में मेरे
साथ ऑफिस में रहती हैं। सुबह लगभग साढ़े छः बजे से लेकर नौ बजे तक। सुबह पांच बजे
मैं उसे उठाकर साढ़े पांच बजे तक तैयार कर देती हूं। ऐसे में सुबह नौ बजे भुवन के
साथ जब भी वो मैट्रो से घर जा रही होती हैं तो ज्यादातर वो सो ही जाती हैं। आज भी
ऐसा ही हुआ।
दस बजे जब मैंने भुवन से ये पूछने के लिए कि वो घर पहुंचा या नहीं जब
फोन किया तो मुझे उसकी आवाज़ में एक उदासी महसूस हुई। मैंने पूछा तो उसने बताया कि
मैट्रो में एक सहयात्री उसे बड़ी देर तक घूर घूरकर देखता रहा। उसकी निगाहों से
स्पष्ट था कि वो ये सोच रहा था कि भुवन सोई हुई अस्मि को चुराकर कहीं ले जा रहा
हैं। आखिर में उस आदमी ने भुवन से पूछ भी लिया कि क्या बच्ची की तबीयत खराब हैं।
हालांकि वो पूछना यहीं चाह रहा था कि क्या ये बच्ची उसी की हैं??? ये सुनकर मुझे हंसी
आई और फिर मैंने भुवन से कहा कि उसे घर ले आते साथ में और जब अस्मि जागकर तुम्हारे
नाम की माला जपना शुरु करती तो उसे सुना देते।
लेकिन, असलियत ये है कि ये सचमुच एक दुखी कर देनेवाली बात हैं। फेसबुक
पर हम ऐसे कई फोटो देख चुके हैं जिसमें लोग केवल शक के आधार पर किसी को भी बच्चा
चोर बता देते हैं। बच्चों की चोरी और तस्करी माना की गंभीर समस्या हैं लेकिन, इसका
अर्थ ये भी तो नहीं कि हम हर किसी को शक की निगाह से ही देखते रहे। ऐसे शक
सामान्यतः लोग बच्चे और उसके अभिभावक के रंग के आधार पर करते हैं। मतलब कि अगर
पिता या मां सांवली हुई और बच्चा गोरा चिट्टा तो मतलब कि ये मां या बाप नहीं बल्कि
चोर हैं।
इसके साथ ही अधिकांश लोगों के दिमाग में ये बात भी भीतर तक धंसी हुई
हैं कि इतना छोटा बच्चा तो केवल मां के साथ ही घर में या बाहर अकेला रह सकता हैं।
किसी और के साथ दिखा तो शक करो। हम इस बात को अब तक हजम नहीं कर पाएं है।
रह रहकर मुझे उस आदमी के बारे में ख्याल आ रहा हैं कि वो शायद कई
दिनों या महीनों तक यहीं सोचता रहेगा कि पक्का वो बच्ची उस आदमी की नहीं होगी।
ईश्वर करें कि किसी दिन फिर वो भुवन और अस्मि से टकराए और अस्मि उसे समझा दे कि
भुवन आखिर हैं कौन...
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