फोन पर साथी सवारी- सुनो मैं तुम्हें वॉट्सएप कर दूंगा मेल आईडी उस पर
तुम रिज़्यूमे भेज देना। सोमवार को इंटरव्यू हो जाएगा और तुम्हारी जॉब पक्की। चलो
बाय।
फिर दूसरे को फोन करके- हां जी अंकल। बोल दिया है उसको मैंने। सोमवार
को हो जाएगा इंटरव्यू उसका। कल मिलते है अंकल। अंकल मैं कह रहा था कि फोटो लेते
आइएगा ना आप कल। बात तो हो रही है। लेकिन, फोटो देख लेते सब तो और अच्छा होता। हां
हां अंकल... अरे उसकी नौकरी लग जाएगी आप उसकी टेंशन ना ले। लेकिन, अंकल मैं कह रहा
था कि फोटो तो देख ही लेते सब। मम्मी को दिखा देता, पापा को भी देखना ही था। मतलब
आप समझ रहे हैं ना अंकल। हे हे हे अंकल... आप भी। नौकरी की चिंता ना करे आप। बस
मैं कह रहा था कि हम कल मिलते साथ बैठते। सारी बातें भी हो जाती। फोटो लाना मत
भूलना अंकल। हैलो.. हैलो... हैलो...
बात अधूरी रह गई और मैट्रो मंडी हाउस के लिए टनल में घुस गई और
नेटवर्क बाहर हवा में छूट गया। ये बातें मेरे पीछे खड़ा यात्री फोन पर कर रहा था।
जब नेटवर्क गया और उसने हैलो.. हैलो.. बोलना शुरु किया तो उसकी आवाज़ में अजीब-सी
मजबूरी मुझे महसूस हुई। मैंने पलटकर देखा तो वो मुझे शादी की उम्र के हिसाब से कुछ
बड़ा लगा। आवाज़ की मजबूरी उसके चेहरे पर भी नज़र आने लगी। लड़की की तस्वीर देखने
के लिए वो इतना अधीर था कि उसके लिए वो उन अंकल के रिश्तेदार की नौकरी तक लगवाने
के लिए मान गया। नौकरी के एवज में वो बस उस लड़की की तस्वीर देखना चाह रहा था।
बात को घुमाना और असल बात को बातों-बातों में बोल जाना एक कला है। आज
का मैट्रो ज्ञान।
1 comment:
वाह क्या विषय चुना है ।धन्यवाद
seetamni. blogspot. in
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