Thursday, January 9, 2014

क्या चेतन भगत लिखना पसंद करेंगे???

      रणछौड़ होना हर बार सुखद नहीं होता। कृष्ण, कृष्ण थे इसलिए उनका रणछौड़ होना भी महान था। इस नाम की महानता को थ्री इडियट में भी दर्शाने की कोशिश की गई थी। चेतन भगत को तो शायद इस नाम का अर्थ भी मालूम नहीं हो। इसलिए उनके उपन्यास के नायक का नाम ही अंग्रेज़ीदा रायन था।  लेकिन, जब इसे हिन्दी फिल्म के रूप में बनाया गया तो अभिजात और राजू हिरानी ने इसे कई स्तरों पर बदला। सबसे बड़ा बदलाव था नाम का। रायन को रणछौड़ दास चाचड़ कर देना बस ऐसे ही था या इस नाम का अर्थ जानते हुए ये फैसला किया गया ये समझना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन, जिस तरह रणछौड़ ने अपनी मर्ज़ी से सब कुछ छोड़ दिया और फिर भी वो महान बना रहा। वो कृष्ण के रणछौड़ होने को आधुनिक रूप में दिखाता है। लेकिन, रण को छोड़ना यहाँ तक कि अपनी पसंद से उसे चुनना भी कोई आसान काम नहीं।

       मेरे मोहल्ले में हर साल सर्दियों में एक लड़का मूंगफली बेचता है। पूरी ठंड वो शाम को मूंगफली का ठेला लगाता है। एक दिन मैंने जब उससे पूछा कि गर्मियों में क्या करते हो, तो उसने बताया कि शिकंजी को ठेला लगाता है। एक मौसम, एक मोहल्ला, एक ठेला। अगला मौसम, अगला ठेला, अगला मोहल्ला। अचानक मुझे वो रणछौड़-सा लगने लगा। हर मौसम वो एक रण छोड़ता है और दूसरे में युद्ध लड़ता है। अपने व्यवसाय को वो अपनी मर्ज़ी और पसंद से नहीं बदलता। रोज़ी-रोटी के दबाव में उसे ऐसा करना होता है। अपनी पसंद का कुछ काम करने के दम पर वो इन ठेलों को बंद भी नहीं कर पाता है। क्योंकि पसंदीदा काम से पैसा भी मिल जाएगा ये निश्चित नहीं। ऐसे में देखा जाए तो वो रणछौड़ नहीं भी है।


          मेरे मन में अचानक ही चेतन भगत से बात करने का ख्याल आया। मैंने सोचा कि क्या चेतन ने कभी ऐसे युवा को देखा हैं। क्या कभी उनके बारे में लिखने की बात सोची है। या खुद वो बहुत काबिल है और केवल काबिलों के बारे में बात करते हैं....

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