पिया का घर |
लेकिन,
अगर चॉल में रहनेवाले किसी एक परिवार के सदस्यों के बीच के रिश्तों को किसी फिल्म
ने खूबसूरती से दिखाया है तो वो होगी- पिया का घर। राजश्री प्रोडक्शन की होने के
नाते फिल्म थोड़ी मीठी है। लेकिन, बासु चटर्जी के निर्देशन ने उसे बहुत ज्यादा
मीठा होने से बचा लिया। फिल्म में जिस तरह से किरदारों को पिरोया गया है वो सुखद
है। जया भादुड़ी और अनिल धवन को केन्द्र में रखकर पिरोई गई इस कहानी में हरेक किरदार
अहम था। कहानी में जीवन के छोटे-छोटे किस्सों, घटनाओं को जिन पर हम शायद झुंझला
जाते हैं, उनसे कैसे निपटा जाए बेहतरीन तरीके से दिखाया गया है। जैसे नई दंपति को
किचन में सोने के लिए जगह दी जाती हैं और पहले ही दिन उन्हें आधी रात में उठा दिया
जाता हैं क्योंकि नल में अचानक पानी आने लगता हैं। मालूम चलता है कि कहीं आग लग गई
हैं और इसलिए म्यून्सिपाल्टी ने सभी जगह का पानी छोड़ दिया है। या फिर छोटे से घर
में आप कहीं कोई भी खुसुर-पुसुर कर ले सबको सुनाई दे जाती हैं। और, सबकुछ सुनने के
बावजूद हर सदस्य अनसुना बना रहता है।
एक
बड़े से घर से अचानक छोटे से घर में आई लड़की.... अपने ताऊजी के साथ अकेले
रहनेवाली अचानक से सात लोगों के परिवार में आई लड़की... के रूप में जया भादुड़ी ने
बेहतरीन अभिनय किया है। बिना प्यार को दर्शाए, बिना ज्यादा शोर-शराबा किए,
एक-दूसरे को कैसे समझा जाता हैं, कैसे रिश्तों का सम्मान किया जाता हैं और, मुख्य
रूप से आखिर कैसे रहा जाता हैं... ये फिल्म सिखाती है।
अंत में
फिल्म का गाना ये जीवन है... मेरा हमेशा से पसंदीदा रहा है।
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