हमारी ज़िंदगी में होनेवाले बदलाव जो कुछ समय पहले तक दबे-छुपे और कुछ-कुछ तानों की शक्ल में होते थे अब खुलकर और सकारात्मक रूप से सामने आने लगे हैं। प्रेस्टीज़ की टैग लाइन “जो बीवी से करे प्यार… वो प्रेस्टीज़ से कैसे करें इंकार... “ तो वहीं है लेकिन, उस प्यार का तरीका बदल गया है। पहले पति केवल कुकर खरीदकर देते थे। लेकिन, अब वो उसी कुकर में बीवी के लिए खाना भी बनाने लगे हैं। किसी के घर में अगर पत्नी की अनुपस्थिति में पति ने बर्तन मांज दिए तो वो हंसी का पात्र और जोरु का ग़ुलाम बन जाता था। अब वहीं पति पत्नी की ऑफिस में होने पर आराम से लिक्विड सोप से बर्तन धोते हुए नज़र आते हैं। यहीं नहीं एक विज्ञापन में तो पति जब ये कहता है कि बोरियत हो रही है तो पत्नी तपाक से कहती है चलो बर्तन मांजते है... हमारे समाज में कुछ काम महिलाओं के लिए कुछ इस तरह से फिक्स किए गए थे कि जैसे उनका जन्म ही इन कामों को करने के लिए हुआ है। और, अगर किसी पुरुष ने ये काम कर लिए खासकर, महिला के घर में होते हुए तो वो उनकी मर्दानगी पर चोट है।
ऐसे में कैच का विद्या बालन वाला नया विज्ञापन इसी कड़ी को आगे बढ़ाता है। विद्या
अपने कई साक्षात्कारों में ये बात कह चुकी हैं कि वो खाना बनाना नहीं जानती हैं और
ना ही बनाना चाहती हैं। उनकी इसी बात को ये भुनाता है। इस विज्ञापन में विद्या ये
कहती हैं कि वो हमेशा से ही ऐसा पति चाहती थी जो सबसे स्वादिष्ट खाना बनाना जानता
हो... ये संवाद सचमुच क्रांतिकारी है।
इन बदलते विज्ञापनों के बीच स्टार प्लस पर चल रहे
धारावाहिक वीरा का नया प्रोमो भी मुझे पसंद है। इसमें वीरा की माँ बने रणवीर को
अपनी बहन के लिए सैनेटरी नैपकिन खरीदते हुए दिखाया गया है। जब स्टोर मालिक पूछता
है कि क्या घर में माँ नहीं है? तो वो बड़े प्यार और आत्मविश्वास से कहता
है- मैं हूँ ना उसकी माँ...
सैनेटरी नेप्किन एक ऐसी चीज़ है जिसे खरीदते हुए
अभी भी लड़कियाँ बड़ी सकुचाती हैं। ज़्यादातर वो ऐसी किसी दुकान से इसे खरीदती हैं
जहाँ बेचनेवाली कोई महिला हो या मेडिकल पर जब कोई ना हो तब ही खरीदती है। और,
दुकानदार भी उस झिझक को काली पन्नी से ढ़ककर हाथ में थमाते हैं। ऐसे में ये प्रोमो
ना सिर्फ़ एक रिश्ते की गर्माहट, प्यार और सादगी की मिसाल है बल्कि, ये महिलाओं की
एक सामान्य और ज़रुरी प्रक्रिया को बिना हौव्वा बनाएं पेश भी करती हैं...
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