आत्मीयता से बने और जुड़े रिश्तों को ना तो नाम
की और ना ही पहचान की ज़रुरत होती है। मिलने ना मिलने से ज्यादा ज़रूरी होता है
जुड़ना, मन से जुड़ना और बस जुड़े रहना। लंच बॉक्स मेरे लिए दो लोगों के बीच पनपनी
आत्मीयता से ज्यादा दो लोगों को जीने के लिए मिली उम्मीद है। इला, आण्टी और माँ के
जीवन में फंसे एक अदद रिश्ते में उनका खुश रहना और फिर उनका आज़ाद होना। मेरे लिए
फिल्म बस आज़ाद होने की कहानी है। फिल्म के अंत में इला साजन से मिली या नहीं
मिली, दोनों साथ भूटान जा पाए या नहीं या फिर दोनों ने ही किसी नए सिरे से शुरुआत
की... ये सब कुछ निर्देशक ने बड़ी ही शालीनता से दर्शक के विवेक पर छोड़ दिया। मैं
बिना किसी असमन्जस के फिल्म के अंत से खुश होकर बाहर निकली। क्योंकि, मेरे लिए
फिल्म तो तब ही खत्म हो गई थी जब इला ने उस बंधन से मुक्त होना तय किया था। उस
वक्त जब बिना किसी साजन फर्नांडिस के अपनी ज़िंदगी को खुद आगे बढ़ाने का फैसला
लिया था। इला के भूटान जाने से ऊपर के माले पर अपने पति और चलते पंखे के साथ 15
साल से जी रही आंटी का एकमात्र आत्मीय रिश्ता खत्म हो जाएगा। इस बात की चिंता मुझे
ज़रुर हुई। काश इला उन्हें भी साथ ले जा पाती...
1 comment:
बहुत सुन्दर .
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