Saturday, September 7, 2013

कौन-सी सोच... कैसी सोच...

फिल्म के आखिरी सीन में गायत्री रघु से कहती है- शादी का आइडिया मेरे लिए सही नहीं है... कम से कम अभी तो नहीं...

ये एक संवाद जो पूरी फिल्म को समझा देता है। पूरी फिल्म इस सोच के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है। शादी से डर लगता है तो शादी मत करो। बस सही बात है। दो लोगों के बीच बने रिश्ते को निभाने के लिए, साथ रहने और समय बिताने के लिए ये बिल्कुल ज़रूरी भी नहीं है। लेकिन, क्या साथ रहने के लिए प्यार भी ज़रूरी नहीं। या फिर अब प्यार भी बस ऐसे ही होता है चलते-चलते, अचानक से। माना कि कइयों को कइयों से प्यार हो जाता है। प्यार होता है फिर थोड़े दिनों में किसी और से हो जाता है। किसी और से ना भी हो तब भी जिससे होता है उससे नहीं रह जाता है। लेकिन, प्यार होने ना होने की दुविधा को सीधे क्यों नहीं दिखाया जाता है क्यों उस चक्कर में शादी को घसीटा जाता है। बैण्ड बाजा बारात में जिस बढ़िया तरीके से संबंध की पसोपेश को दिखाया गया है वो बेहतरीन है। युवा शादी के प्रति जिस डर या फंतासी को पाले हुए है उसे देखना हो तो तनु वेड्स मनु भी देखी जा सकती है। सरल तरीके से पूरी बात समझ आ जाती है। लेकिन, इस फिल्म में शादी से भाग रहे हीरो को देखकर लगता है कि जैसे वो भागा वैसे ही प्यार खत्म, आत्मीयता खत्म। हो सकता है कि प्यार या आत्मीयता भी कुछ ऐसे भाव हो जो अब शादी की तरह युवाओं के लिए आउटडेटेड हो गए है। लेकिन, संबंधों के पसोपेश को ना तो मैं प्यार मानती हूँ और ना ही उस चक्कर में शादी के संबंध को कोसना सही। पिल्म के अंत में भी गायत्री का कहना कि शादी का आइडिया मेरे लिए सही नहीं है... कम से कम अभी तो नहीं... का अंत है कम से कम अभी तो नहीं मतलब ये कि कल को वो कर सकती है या कर लेगी... कहते है कि जब एक दरवाज़ा बंद हो जाता है तो दूसरा खुल जाता है। ऐसे में युवाओं को यूँ सारे दरवाज़े एक साथ खुले मिलना भाग्य की बात हैं... 

2 comments:

राजीव कुमार झा said...

सुन्दर प्रस्तुति.
http://dehatrkj.blogspot.com

Bhuwan said...

ललित जी हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में हमारे ब्लॉग को शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

भुवन वेणु