पिछले कुछ दिनों से हिन्दी सिनेमा में जो असल
ज़िंदगी का छौंक पड़ रहा है, वो दर्शकों को सपनों से दूर कर रहा है। मैं ग्यारह
साल की थी जब दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे आई थी। राज मल्होत्रा बनें शाहरूख खान
का असर मेरे सर पर ऐसा चढ़ा था कि उसके आगे कुछ समझ ही नहीं आता था। ये जवानी है
दिवानी में रणबीर कपूर भी एक हीरो के रूप में सामने आए हैं। इससे पहले हर फिल्म
में वो एक किरदार को निभा रहे थे इस बार अयान ने उन्हें हीरो मटैरियल बनाकर पेश
किया है। हीरो, जो गाता है, मस्ती करता है, जिसके आसपास लोग लट्टू बनें घूमते है,
जिसकी हर बात हीरोइन का दिल धड़का देती है। लेकिन, फिर भी राज और कबीर में अंतर
है। राज एक टीनएज में प्रवेश करनेवाली लड़की के लिए आदर्श प्रेमी बनकर आया था।
वहीं कबीर पर रणबीर भारी हो जाते हैं। आज की लड़की को रणबीर याद रहेगा कबीर नहीं। क्योंकि
कबीर को अपनी ज़िंदगी किसी भी और चीज़ या इंसान से ज्यादा अहम लगती है। कहीं न कहीं
वो अपने प्यार का इज़हार इसलिए करता है कि कहीं वो लड़की किसी और को न मिल जाए। निजी
तौर पर सिनेमा के पर्दे पर दिखाई देनेवाले सपनों की कमी मुझे खलती हैं। रीयलिस्टीक
होने के चक्कर में हर रिश्ते को इतना प्रैक्टिकली दिखाया जाता है कि लगता ही नहीं
है कि आप फिल्म देख रहे हैं। युवाओं की मस्तमौला ज़िंदगी और रफ्तार को दिखाती
फिल्म से मेरी उम्मीद केवल फिल्म होने की ही होती है उसमें समझ का तड़का मुझे पसंद
नहीं। अयान और रणबीर की जोड़ी करण और शाहरूख की जोड़ी इन मेकिंग है। हालांकि अयान
को अभी भी अपनी काजोल नहीं मिली है। यही वजह है कि उनकी फिल्मों में हीरोइन का किरदार
हीरो के आगे कुछ कम है। ढ़ेर सारे गाने, परफेक्ट बॉडी और फीगरवाले किरदार, खूब सारे
पैसे, हीरो के हर सपने का सच होना, बेहद खूबसूरत दीपिका और, रणबीर के साथ उनकी
जोड़ी। फिल्म तो हिट होनी ही थी। ये जवानी है दिवानी को अगर आप नहीं देख पाते है
तो कुछ खास मिस नहीं होगा और अगर देख लेते हैं तो आपका पैसा वसूल होगा...
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