टीवी
पर चल रहे रीएलिटी शोज़ के बीच कभी-कभी कुछ अच्छे, या ये कहे कि कुछ सुखद अहसास
मिल जाते हैं। बच्चों को बंधुआ मज़दूर की तरह नचाते, कलाकारी करवाते उनके
माता-पिता और इन कार्यक्रमों को देखकर जहाँ चिढ़ होती हैं। वहीं कल माँओं के लिए
शुरु हुए डांस कॉम्पिटीशन को देखकर अच्छा लगा। हमारे समाज में जहाँ किसी भी महिला
के लिए सफल होने की सबसे बड़ी क़ीमत खुद का परिवार ना होना हो, वहाँ माँ बनने के
बाद खुद के शौक को पूरा करने का मौका मिलना स्वागतयोग्य है। जहाँ शादी के बाद
महिला की कोई निजी ज़िंदगी नहीं बचती है और बच्चे के बाद तो ऐसी कोई इच्छा भी गायब
हो जाती है। वहाँ खुद के शौक को ज़िंदा रखना और उसे टीवी पर यूँ अपने पूरे परिवार
के साथ लोगों के सामने रखना बड़ी बात है। निजी तौर पर मुझे कई महिलाओं को यूँ
खुलकर नाचते हुए देखकर अच्छा लगा। बच्चों का यूँ मम्मी के लिए तालियाँ बजाना। पति,
माँ-बाप, सास-ससुर का यूँ विश्वास बढ़ाना सबकुछ सुखद लग रहा था। हालांकि इस शो में
भी मसाले की कोई कमी नहीं है। ये भी बाक़ियों की तरह भावनाओं को भुनाने और
मैलोड्राम क्रिएट करने के लिए एकदम तैयार है फिर भी इसमें नाचती मम्मियों के चेहरे
की चमक मुझे उस सबको पचाने की इच्छाशक्ति दे रही है।
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