सिनेमा के सौ साल को समझने के लिए बयालिस साल के अंतर में बनी इन दो फिल्मों को भी शामिल करना चाहिए। सन 71 में बनी गुड्डी भी एक टीनएजर लड़की की कहानी थी और गिप्पी भी। गुलज़ार की गढ़ी हुई गुड्डी जहाँ एक पारंपरिक और हंसते-खेलते घर में पली हुई लड़की की कहानी थी। वहीं सोनम नायर की गिप्पी एक टूटे हुए घर में पल रही बच्ची है। हालांकि गिप्पी आज के परिवेश के हिसाब से भी बहुत आगे है। लेकिन, फिर भी बहुत हद तक गिप्पी की परवरिश वैसी ही है जैसी आजकल होती है। गुड्डी को सिनेमा के एक बहुत बड़े हीरो से प्यार करते हुए बड़ा किया गया था। वहीं गिप्पी अपने आसपास के लड़कों में से ही दुनिया को दिखाने के लिए बॉयफ्रेंड खोजती है। गुड्डी का मानसिक और शारीरिक रूप से बड़ा होना बहुत ही सांकेतिक था, वहीं गिप्पी के तंग होते कपड़े और उसका पीरिड्स का तनाव सबकुछ सीधा और सटीक है। बयालिस साल में बच्चे बहुत बड़े हो चुके हैं। वो रिश्तों और उम्र में बड़े लोगों की परेशानियाँ समझने लगे हैं। प्यार की जिस परिभाषा को समझाने के लिए ऋषीकेश मुकर्जी ने ढ़ाई घण्टे की फिल्म गढ़ी थी, वो बात गिप्पी को दो घण्टे की फिल्म में कुछ साठ मिनिट बाद ही समझ आ जाती हैं। गुड्डी का किरदार तेईसी साल की जया भादुड़ी ने निभाया था, वहीं गिप्पी बनीं रिया विज असल में भी तेरह साल की ही है। रिया की उम्र और उसका अभिनय भी ये समझा जाता है कि बच्चे अब उतने बच्चे नहीं रहे हैं....
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