Tuesday, April 16, 2013

माहौल में रहनेवाले...


ताऊजी के घर में घुसते ही अफरा-तफरी मच जाती है। आराम से पैर फैलाकर बैठी महिलाएं और मस्ती मारते मर्द हड़बड़ाकर कोनों में दुबक जाते हैं। बड़े भैया के घर में घुसने से पहले ही माहौल बन जाता है कि भैया आ रहे है। हर कोई सावधान की मुद्रा में आ जाता हैं। महिलाएं आंगन का काम समेट लेती हैं। बहूओं को अंदर के कमरों या किचन में धकेल दिया है। कस्बों या गांवों के बड़े-बड़े घरों में इस तरह का माहौल एक आम बात हैं। हरेक के घर में एक न एक ऐसा होता ही है जिससे घर का हर सदस्य बात करने से पहले रिहर्सल करता है। फिर वो उस सदस्य की माँ ही क्यों न हो। किसी भी तीज-त्यौहार, पूजा, शादी-ब्याह पर आखिर में पहुँचना और दो मिनिट रूककर निकल लेना। सब कुछ माहौल का हिस्सा होता है। मेरे लिए ऐसे लोग हमेशा से ही कौतूहल का विषय रहे हैं। ऐसे लोगों से बात करने में और खासकर उनके माहौल को ना मानने में मेरा मन लगता है। ऐसे लोगों से सीधे, फटाक से बात करने पर कई बार लोगों ने मुझे आँखें फैलाकर देखा भी हैं लेकिन, मैं हमेशा से ही माहौल बनाकर रहनेवालों के उस माहौल को समझने की कोशिशें करती रही हूँ। घर में रहते हुए भी घरवालों से बात न करना, खुशी या ग़म में शामिल ना होना और हमेशा घर और घरवालों को सावधान की मुद्रा में रखना सब कुछ बड़ा ही आश्चर्यजनक मालूम होता है। शादी के घर में पूड़ी, तेलवाली रसीली सब्जी और हल्वा तो डाइबीडीज़ का मरीज़ भी खा ही लेता है। लेकिन, चाचाजी के लिए अलग से चार सादी रोटी और कम तेलवाली सब्जी तैयार की जाती है। अपने घर में तो चाचाजी के कमरे में दो-चार नौकरों के अलावा कोई नहीं घुसता। लेकिन, दूसरे के घर में भी चाचाजी मास्टर बैडरूम पर माहौल के ज़रिए कब्ज़ा जमाकर ये सब खाने लगते हैं। इस माहौल का सबसे बड़ा आश्चर्य होता है चाचाजी, भैयाजी, ताऊजी या फिर किसी भी जी के माँ-पापा तक उनसे बात करने में हड़बड़ाते और कई बार कतराते हैं। और, अंत में, सबसे दिलचस्प बात ये कि मैंने आज तक इस माहौल में किसी महिला को नहीं देखा।

2 comments:

Bhuwan said...

हम्म... माहौल की ऐसी की तैसी कर दी तुमने.. :-).

Chaitanyaa Sharma said...

:)))