पिछले पांच साल से मैं एक ही जगह किराए पर रह रही
हूँ। इस दौरान तीसरे माले के इस घर के नीचे कई किराएदार आए, रहे और चले गए। ना तो
मेरी कभी किसी बात हुई और ना ही मैं किसी को आज पहचान पाऊंगी। इस सबके बीच पिछले
कुछ महीनों से इस माले पर एक पति-पत्नी रहने आए है। मैंने इन्हें भी अब तक नहीं
देखा है। लेकिन, कभी-कभी ऊपर तक आनेवाली उनकी आवाज़ें मुझे उनसे जोड़े रखती हैं।
ऐसा महसूस होता है जैसे कोई मेरा ही, मेरे पास रह रहा है। इंदौर का रहनेवाला ये
जोड़ा जब भी आपस में बातें करता हैं तो मेरे चेहरे पर मुस्कान आ जाती हैं। नाश्ते
में साबूदाने की खिचड़ी का नाम और कभी-कभी पोहे की खुशबू मुझे भोपाल के 88/18 और इंदौर में मौसी के टंकी के नीचेवाले घर में ले जाती हैं। पत्नी का पति से पूछना कि कितनी रोटी खाआगे... में तो दो ही
खाऊंगी... मुझे मेरी मम्मी की याद दिला देता हैं। शाम को झाड़ू लगाना, पति का
अखबार के लिए परेशान होना, शाम को सब्जी लाना, सबकुछ मुझे बहुत भाता है। रह-रहकर
महसूस होता है जैसे मम्मी-पापा ही एक बार फिर युवा हो गए हो। बात-बात में इंदौरी टोन,
वहां के खाने और तड़के की खुशबू सबकुछ मुझे मेरे क्षेत्र, मेरे लोगों की याद
दिलाता हैं। पहली बार मुझे ये महसूस हो रहा है कि क्षेत्र से, वहां के लोगों से
प्यार क्या होता है और क्यों होता है।
1 comment:
अच्छा तो अब नीचे वालों से राब्ता बढ़ाना पड़ेगा...:-).
हमेशा की तरह दिल को छूने वाली पोस्ट
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