बलात्कार जैसे गंभीर विषय पर इन दिनों सदन में
चर्चा चल रही है। मंत्रियों का समूह इस मुद्दे पर अपनी-अपनी राय रख रहा हैं।
मुद्दा गंभीर होने के साथ-साथ ज्वलंत भी है। उम्र को तय करने से तरीक़ों और इसे एक
लिंग से ना जोड़कर देखने जैसे कई मुद्दों पर एक साथ बात हो रही हैं। इस सबके बीच
सबसे बड़ी बात है सहमति से सेक्स करने की उम्र सीमा को 18 साल से घटाकर 16 साल कर
देना। इस बात को लेकर विवाद की स्थिति बनी हुई है कि अगर ऐसा हुआ तो इसका ग़लत
फायदा भी उठाया जा सकता है। मेरी मित्र जो दुनियादारी और बाक़ी की बातों के बारे
में नहीं जानती है। मेरे बताने पर कि ऐसा कुछ होनेवाला है बोली- “हाय
राम, तब तो अराजकता बढ़ जाएगी। ये मेरे आसपास रहनेवाले स्कूली बच्चे जो आज हर चीज़
का अनुभव चाहते हैं। इसकी आड़ में अब खुल्लम-खुल्ला वो कर लेगें।“
उसकी ये प्रतिक्रिया बहुत ही मासूम मानी जा सकती है। बस आसपास की दुनिया को देखकर
बनाई हुई। लेकिन, जब मैंने उसे इसी बात को बड़े परिपेक्ष्य में समझाया तो उसका अगला सवाल था कि- “फिर तो
बाल विवाह के बाद जो होता हैं वो क्या है।“ मेरे पास उसकी इस बात का उत्तर नहीं था।
सरकार ने बाल विवाह को भी अवैध करारकर दिया है। लेकिन, फिर भी वो हो रहे हैं।
बलात्कार या यौन उत्पीड़न भी अपराध है फिर भी वो हो रहा है। केवल कोई एक लिंग सही
या ग़लत नहीं होता हैं फिर भी कई बार सामाजिक या क़ानूनी रूप से किसी एक को सही
मान लिया जाता हैं। ऐसे ही कितने मुद्दे केवल दो दोस्तों के बीच होनेवाली बातचीत
में सामने निकलकर आ गए। ऐसे में क़ानून का बनना और चीज़ों को सांचे में ढालना एक
गंभीर और जटिल मसला है। हमारा देश इतना बड़ा है। इतने तरह के धर्म है। इतनी तरह की
आस्थाएं है। इतनी तरह की विषमताएं है। इस सबके बीच में एक अपराध भी कई अलग-अलग नज़रों
से देखा जाता है। हमारे देश की अलग-अलग जातियों में जो नियमों है उन्हें ही जब हम
आपस में साझा करते हैं तो कई बार हम- ओह! आह! और, हाय राम! जैसे भाव मुंह से निकालने लगते हैं। इस सबके
बीच खबरिया चैनलों पर आनेवाली चर्चाएं बहुत ही हल्की और खोखली लगती हैं। जानकार,
अनुभवी व्यक्ति से ज्यादा समझदार पड़ोस की आण्टी लगती है जो केवल उतनी ही राय
जाहिर करती है जितनी दुनिया उन्होंने देखी हैं। आलोचनाओं के बीच पहली बार मुझे ये
महसूस हो रहा है कि सदन में बैठे प्रतिनिधियों के बीच इस संवेदनशील मुद्दे पर चल
रही चर्चा को बाक़ियों को भी गंभीरता से लेना चाहिए। भावुकता और केवल अपने चश्मे
से इतर उनकी और बाक़ियों की इच्छाओं और नियमों को ध्यान में रखते हुए।
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