कल शाम साढ़े बजे स्टार प्लस पर सरस्वतीचन्द्र का
पदार्पण हुआ। संजयलीला भंसाली कृत इस धारावाहिक से कुछ नए की उम्मीद तो पहले
प्रोमो से ही नहीं थी। लेकिन, पहला अंक देखकर ये महसूस हुआ कि हम दिल दे चुके सनम
के बचे-खुचे कपड़ों, सेट और संवादों को खुटाने के लिए भंसाली ने इसे बनाया है।
जैसे हिन्दी में बनी फिल्म का रीमेक किसी लो बजट क्षेत्रीय भाषा में होता है वैसे
ही लगा कि इस बार ये रीमेक टीवी के लिए हो गया है। टेलीविज़न के लिए लिखनेवालों की
न तो कोई कमी है और न ही प्रतिभावान कलाकारों का टोटा। बावजूद इसके फिल्मी
कहानियों और दृश्यों को उधार लेकर बन रहे कार्यक्रमों को देखकर अफसोस होता है। कुछ
समय पहले भी स्टार प्लस पर ही जब वी मेट का सस्ता रीमेक आया और गया था। निर्माता
ये क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि छोटा पर्दा अब इतना भी छोटा नहीं रह गया है। न
सिर्फ़ अब उसका बजट बढ़ गया है बल्कि अब तो घरों में बड़े-बड़े एलसीडी स्क्रीन के
साथ होम थियेटर भी आ गए है। इसी छोटे पर्दे पर आनेवाले धारावाहिक खिचड़ी और
ऑफिस-ऑफिस पर निर्माताओं ने फिल्में बनाई है जिन्होंने कई बड़े स्टारवाली फिल्मों से
ज्यादा पैसे कमाए हैं। कई मौलिक कहानियों के साथ शुरु हुए कार्यक्रमों के दूसरे
सीज़न आए हैं और कइयों की लाने की मांग की जा रही हैं। केवल शोले, दिलवाले
दुल्हानिया ले जाएगें या कुछ कुछ होता है... ही नहीं, बल्कि सीआईडी और एफआईआर भी
है जिन्हें दर्शकों के दबाव में ही बंद नहीं किया जा रहा हैं। संजय लीला भंसाली से
नई कहानी, नई चरित्रों और नए सेट की उम्मीद थी लेकिन, वो अब तक इस मुगालते में है
कि टीवी छोटा पर्दा हैं। उम्मीद है जल्द ही टीआरपी उनके इस मुग़ालते को दूर कर
देगी।
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