Saturday, February 2, 2013
मेरी जीवन मधुशाला...
सुन कल-कल छल-छल...
मधुघट से गिरती प्यालों में हाला...
आजकल रोज़ शाम मधुशाला सुनता हूं। सालों बाद ये एक बार फिर मेरे पास है। जन्मदिन के दो दिन बाद घर आए एक कूरियर ने मुझे सुखद आश्चर्य से भर दिया। पैकेट में मधुशाला की सीडी थी। मुझे ये समझने में एक पल भी नहीं लगा कि ये काम सिर्फ दीप्ति का ही हो सकता है। वो जानती है कि मधुशाला सुनना और गुनगुनाना मुझे कितना पसंद है।
मुझे अच्छी तरह से याद है, हमारे घर में वेस्टन का टेप रिकॉर्डर था। कुछ कसेट्स थे- जिनमें शीलजी की आवाज़ में रिकॉर्ड की गई कविताओं की कसेट, जपला में मामा-मौसी, पापा और मां के साथ-साथ हमारी आवाज़ में कविताओं और गानों की रिकॉर्डिंग के साथ-साथ कुछ और कसेट्स भी थे। इन कसेट्स के साथ एक और कसेट भी घर में था- मधुशाला। मन्ना डे की आवाज़ में हरिवंश राय बच्चन की कृति। पापा लगभग रोज उसे सुनते.. शुरुआत में तो समझ में नहीं आता था.. लेकिन धीरे-धीरे सुनना अच्छा लगने लगा। लेकिन ये ज्यादा दिन तक नहीं चल सका। टेप रिकॉर्डर पहले तो ख़राब रहने लगा.. जिसे पापा कभी-कभार ठीक करा लिया करते थे.. लेकिन आख़िरकार उसने दम तोड़ दिया। फिर मधुशाला से मेरा भी राब्ता टूट गया। कई सालों तक कसेट्स यूं ही पड़े रहे और फिर धूल फांकते-फांकते वो भी ख़राब हो गए। करीब पांच-छह सालों बाद एक बार फिर घर में फिलिप्स का टेप रिकॉर्डर खरीदा गया...और उसी वक्त मैं एक बार फिर मधुशाला का कसेट खरीद लाया। और वो सिलसिला फिर से शुरु हो गया। मधुशाला की कविताओं और मन्ना डे की आवाज़ का जादू मेरे सिर पर सवार हो गया। आलम ये था कि ये मुझे कंठस्थ हो गया और आज तक याद है। मैंने टीवी पर कई बार कई कार्यक्रमों में अमिताभ बच्चन को भी मधुशाला गाते सुना... लेकिन इसमें मन्ना डे वाली बात कही नज़र नहीं आई। मेरे लिए तो मधुशाला का मतलब मन्ना डे की आवाज़। खूबसूरत शब्दों और मधुर आवाज़ को दिल्ली की इस तनावभरी ज़िंदगी में सुनकर मन हल्का और तरोताज़ा हो जाता है। धन्यवाद दीप्ति...
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ये जो है ज़िंदगी...
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