खुशवंत सिंह के लिखे पैन स्केच आजकल पढ़ रही हूँ।
दोस्त तो सभी के होते हैं लेकिन, उन्हें बयां करने का उनका तरीक़ा अनोखा और
मज़ेदार है। लगभग तीन साल पहले विश्व पुस्तक मेले में मैंने खुशवंत सिंह की किताब
खरीदी थी। किताब मेरे हाथ में देखते ही भुवन ने बोला था कि- क्या तुम भी ठर्की की
किताब खरीद रही हो। मैं भी हंस दी। लेकिन, किताब भी खरीद ली। वो खुशवंत सिंह की
जीवनी थी। मैंने उसमें से कई किस्से भुवन को पढ़कर भी सुनाए और दोनों से उनकी
लेखनी के उस एक्स फैक्टर को (जिसे आम बोलचाल में ठर्की कहा जाता है) एन्जॉय किया।
और, बाद में भुवन ने भी उसे पूरा पढ़ा था। इसमें कोई दो राय नहीं है कि वो सेक्स
और निजी जीवन के आर्कषणों और बातों के बारे में हद से ज्यादा तफसील लिखते हैं। हो
सकता है कई लोग निजी जीवन में इन बातों के बारे में इतना ही सोचते भी हो लेकिन,
लिखते बहुत कम है। ऐसे में खुशवंत सिंह तो ऐसे है जो खुद के बारे में तो लिखते ही
है। बल्कि, दोस्तों को भी नहीं छोड़ते हैं। खैर, पिछले तीन साल से लगातार मैं
पुस्तक मेले से उनकी कोई न कोई किताब ज़रूर खरीद रही हूँ। कभी अंग्रेज़ी में ही तो
कभी उसका हिन्दी अनुवाद। पिछले साल उनके उपन्यास द सनसेट पांइट के अंत ने मुझे
रूला दिया था। मुझे खुशवंत सिंह का लिखना पसंद है वो सीधे और बिना किसी लाग-लपेट
या डर के लिख देते हैं। उनका लिखा स्वीकार करना हिम्मत की बात होती है। शायद कम ही
लोगों में वो हिम्मत हैं इसलिए वो ठर्की करार दिए जाते हैं। जो खुशवंत सिंह को
चांदी की चम्मच के साथ पैदा हुआ एक सनकी मानते हैं। उनसे मैं इतना ज़रूर कहूँगी कि
एक बार उन्हें पढ़े भी... लिखने की एक अदा और बेबाकी (बदतमीज़ी नहीं) को समझने के
लिए...
1 comment:
उनकी बेबाकी आकर्षित तो करती ही हैं, पढ़ने का उत्सुकता बढ़ाने का धन्यवाद ..
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