14 फरवरी का दिन कितना अहम है ये इस बात से समझा
जा सकता है कि हर कोई इस पर अपना हक जमा रहा है। बाज़ार भी और संस्कृति के अनुयायी
और स्वयंभू रक्षक भी। दोनों को ही इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार हैं। एक प्यार
करनेवालों को माहौल लाल करके ये याद दिला रहा है कि प्यार का हमारा तय किया दिन आ
रहा है इसे तो मनाना ही पड़ेगा... वहीं दूसरे इस इंतज़ार में हैं कि इधर तुम
त्यौहार बनाओ और उधर हम तुम्हारा खोपड़ा लाठी से लाल करते हैं। गिफ्ट की दुकानें
और मॉल तो सज ही चुके हैं। फेसबुक पर फरवरी के पहले दिन से ही “डे
सेलिब्रेशन” भी शुरु हो गया है। और, इस सबके बीच एक नया
पोस्टर मैट्रो स्टेशन पर लटका हुआ नज़र आ रहा है। “पैरेन्ट
वर्शीप डे”। चौदह फरवरी को कुछ लोग मिलकर माँ-बाप का पूजा दिवस मनानेवाले है।
पोस्टर में माँ-बाप के गले में फूल माला है और बच्चे उनके सामने पूजा की थाली लिए
बैठे है। पहली ही बार जब इस पोस्टर पर नज़र पड़ी तो हंसी आ गई। एक दिन और उस दिन विदेश
से निर्यात होकर आए इस त्यौहार को लेकर संस्कृति के
ठेकेदार कितने डरे हुए है ये समझ आ गया। प्रेमी जोड़ा प्रेम का उत्सव न मना सकें
इसलिए झट से उसमें माता-पिता को घुसा दिया। अब देखते है कि किससे अधिक प्यार है
मम्मी-पापा से या चार दिन पहले मिले अपने प्रेमी से... टीनएजर्स के लिए अनोखे और
उत्साहित कर देनेवाले वैलेन्टाइन डे के आइडिया से आखिर लोग इतना डरते क्यों हैं।
सभी ये बात जानते हैं कि उम्र के एक पड़ाव में ऐसी बातें खुशी देती है और
धीरे-धीरे बच्चे खुद-ब-खुद समझ जाते हैं कि न तो प्यार का कोई दिन होता है और न ही
उसके इज़हार का। अगर होता है भी है तो सबके लिए अपना एक अलग दिन होता है। और, जैसे
अपने प्रेमी से केवल एक दिन आप प्रेम नहीं करते हैं वैसे ही मम्मी-पापा से भी तो
एक दिन का प्यार नहीं हैं। उन्हें भी तो हमेशा ही प्यार किया जाता हैं। फिर उसके
भी इज़हार की ज़रूरत क्यों वो भी उसी दिन? इन सभी सवालों के
बीच एक बात तो तय है कि संस्कृति वो बचानेवाले भले ही बच्चे नहीं लेकिन, उनकी सोच
ज़रूर बचकाना है....
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