Thursday, January 3, 2013

थोड़े-थोड़े संवेदनहीन...


पिछले कुछ दिनों से फेसबुक पर ऑटोवालों की संवेदनहीनता की कहानी घूम रही है। इसमें बताया जा रहा है कि कैसे 16 दिसम्बर को उन दोनों के साथ हुई वो दर्दनाक घटना टल सकती थी अगर ऑटोवाले पहले ही उन्हें मना नहीं करते। साथ ही साथ ये भी जानकारी दी जा रही है कि कोई ऑटोवाला अगर चलने से मना करे तो उसकी शिकायत 100 पर की जा सकती है। मुझे नहीं मालूम इस तरह की शिकायतों का क्या हश्र होता है। मैं कुछेक की कर चुकी हूँ लेकिन, मुझे आज तक मालूम नहीं चला कि उनका क्या हुआ। और, अगर कोई जुर्माना हुआ भी तो क्या उसे चुकाने के बाद वो ऑटोवाला सुधर गया होगा। अगली बार क्या शिकायत के डर से उसने किसी को मना नहीं किया होगा। और, सबसे अहम बात कितनी ही बार उसने मना किया होगा और कितनी बार किसी ने उसकी शिकायत की होगी? 31 तारीख को ही जब मैं और भुवन बड़ौदा से दिल्ली लौटे तो निज़ामउद्दीन स्टेशन पर नब्बे फीसदी ऑटोवालों ने जाने से मनाकर दिया। ऐसे में दो-तीन से मेरी बकझक भी हो गई। कइयों को मैंने बोल दिया कि तुम लोगों की वजह से ही उस लड़के-लड़की के साथ ऐसा हुआ है। तुम लोग यूँ ही मना करते रहो और लोग परेशान होते रहेंगे। कुछ के मुंह बनें और कुछ ने मुझे ही यूँ बकवास करनेवाली मान लिया। मतलब ये कि ऑटोवालों को तो कम से कम इस बात का मलाल नहीं है कि उनकी वजह से ये हादसा हुआ, उनकी वजह से हादसे होते है, उनकी वजह से लोग परेशान होते है... उनके मुताबिक़ वो केवल अपनी रोज़ी कमा रहे है। रोज़ाना के किराए पर ऑटो चलाते है और किराए के बाद खुद के लिए पैसे बचाने के चक्कर में ही वो सवारियों की जेब पर हमला करते हैं। सवारी भी बिना सोचे समझे काम चलाने के मूड में उन्हें मनमाने पैसे देती रहती है। ऐसे में किसी एक को किसी घटना के लिए दोषी मान लेना कहाँ तक सही होगा? किसी एक तबके की संवेदनहीनता से परिस्थिति नहीं बिगड़ती है, पूरा समाज ही ऐसा हो चुका है। मैं भी, आप भी, और वो भी...   

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