Monday, August 23, 2010
मौसम का अपमान...
दिल्ली के मौसम का हाल किसी से छुपा नहीं है। बात ये नहीं है कि हालत बहुत खराब है, बात बस इतनी है कि ये राजधानी है। सो खबरों में छाई रहती है। आज सुबह ही सुना कि दिल्ली में पिछले दस साल से ऐसी बारिश नहीं हुई है। असलियत यही है कि अब मन कचवा गया है इस बारिश से। ऐसा मौसम शायद बहुत ही रोमांटिक होता है लेकिन, इस शहर में किसी को भी रूककर इस मौसम से रोमांस करने की इजाज़त नहीं। खासकर हम जैसों को जिसे बादल छाते ही अपने असाइन्मेंट पर पानी फिरता हुआ नज़र आता हैं। सच कहूँ तो इस बारिश के मौसम में एक भी बार नहीं लगाकि वाह क्या बारिश है। हर बार यही महसूस हुआ कि कही मैट्रो चलना बंद न हो जाए। मैं युवा हूँ और युवाओं की तरह ही इस मौसम का पूरा मज़ा लेना चाहती हूँ लेकिन, मेरे पास इतना वक़्त नहीं है कि मैं ऐसा कर सकूं। यही वजह है कि सुबह उठते ही मैं काम करते-करते बार-बार बाहर देखती हूँ कि बस बारिश न हो। आते वक़्त बारिश तो परेशान नहीं करती है लेकिन, मैट्रो में हो रही देर से मन विचलित रहता है। रूम पहुंचते ही बिस्तर पर लेटकर टीवी देखना चालू। टीवी पर प्यार में डूबे हुए कलाकारों को ही आजकल भीगते हुए देखती रहती हूँ। शायद महानगरों में सचमुच बारिश नहीं होना चाहिए क्योंकि यहां उसका मज़ा उठाने की इजाज़त नहीं है और अगर आपने इस मौसम का मज़ा नहीं लिया तो ये इस मौसम का अपमान है...
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