Thursday, May 6, 2010
सब कुछ संभव है...
हमारे समाज में विकलांग होना इंसान होने से पहले आता है। अगर कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह की विकलांगता का शिकार है तो वो पहले तो बिचारा हो जाता है और दूसरे वो किसी भी बुनियादी सुविधा से वंचित। कल मैं कुछ ऐसे लोगों से मिली जिन्हें विकलांग शब्द से एतराज़ है। उनका कहना है कि हरेक इंसान अलग है, मेरी ओर देखते हुए उन्होंने कहा कि आपको तो चश्मा लगा है आप वो चीज़ें आसानी से नहीं देख सकती है जो कि सामान्य नज़र रखनेवाला देख सकता हैं। ऐसे में तो आप भी विकलांग हुई। इन लोगों का मानना हैं कि विकलांगता कुछ नहीं होती, बस इंसान के शरीर अलग-अलग होते है, दिमाग की संरचना अलग-अलग होती हैं। ऐसे में किसी भी व्यक्ति को जिसके हाथ कमज़ोर या फिर नज़र या फिर जो चल ना पाता हो उसे बुनियादी सुविधाओं से वचिंत कर देना बहुत ही अमानवीय है। बात मुझे भी सही लगी। दरअसल कल मैं शूट के सिलसिले में संभव गई थी। संभव उस आदर्श घर का नाम है जहाँ एक सामान्य इंसान से लेकर एक विकलांग और एक बुज़ुर्ग तक सभी आसानी से रह सकते हैं। संभव के ज़रिए एक छत के नीचे एक आदर्श ऑफ़िस, एक आदर्श घर, किचन, बैड रूम और भी कई चीज़ों की कल्पना की गई हैं। यहां किसी भी तरह की विकलांगतावाला व्यक्ति आराम से अकेले रह सकता हैं। इसे बनानेवाले लोगों ने बताया कि इस घर की कल्पना के पीछे मक़सद बुज़ुर्गों और विकलांगों को आत्मनिर्भर बनाने के साथ उन्हें अपने हिसाब और किसी सहारे के ज़िंदगी जीने का मौक़ा देना था। इस गर में घूमते हुए मुझे ऐसी कई वस्तु दिखाई गई जोकि किसी भी विकलांग की ज़िंदगी आसान कर सकती हैं। इस घर का बाथरूम ऐसा था कि विकलांग किसी की मदद के बिना अपने रोज़मर्रा के काम कर सकें। मैग्निफ़ाइन ग्लास लगा हुआ नेल कटर आँखों से कमज़ोर बुज़ुर्गों और विकलांगों को बिना मदद के नाखून काटने में मदद करता हैं। तो बिस्तर के पास रखी एक अनोखी छड़ी दूर रखी चीज़ों को उठाने के काम आती हैं। इस लेख को लिखने के पीछे मेरा सिर्फ़ एक मक़सद है। अगर आपके घर में कोई इस तरह की परेशानियों का सामना कर रहा हैं तो आप संभव ज़रूर जाएं। संभव हौज ख़ास के आदी होम में स्थापित हैं। वहाँ जाकर आप अपने लिए या अपनों के लिए ऐसी कई चीज़ों की जानकारी इकठ्ठा कर सकते हैं।
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ये जो है ज़िंदगी...,
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3 comments:
दीप्ति, मैंने हिंदी के सबसे अच्छे ब्लौगों का एक संकलन तैयार किया है जिसमें आपका ब्लौग भी शामिल है लेकिन इसका लिंक वहां लगाने पर उसमें आपके ब्लौग की एक साल पुरानी पोस्ट की फीड आती है जबकि अन्य ब्लौगों की तरह सबसे नयी पोस्ट की फीड आनी चाहिए. ऐसा क्यों होता है? कृपया देखें : http://hindiblogjagat.blogspot.com/
ओर कल ही इंडिगो में एक यात्री को बैठाने से इनकार कर दिया .....इसे मानसिक विकलांगता कहेगे ?
आज दिनांक 25 मई 2010 के दैनिक जनसत्ता में संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्तंभ में आपकी यह पोस्ट सहारे के बिना शीर्षक से प्रकाशित हुई है, बधाई। स्कैनबिम्ब के लिए लिंक http://blogonprint.blogspot.com/2010/05/blog-post_5333.html संलग्न है।
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