Monday, March 15, 2010
सामाजिक तनाव से दूर...
आज सुबह मैट्रो के सफ़र के दौरान मेरी नज़रें एक महिला पर ठहर गई। उम्र यही कोई 30 या 32 साल। वो अपनी एक मित्र के साथ बैठी हुई थी। उसकी साथी की उम्र होगी यही कोई 26 या 27 साल। उससे उम्र में कुछ छोटी लग रही उसकी मित्र सुन्दर गोरी-सी और प्यारी सी थी। इसके इतर वो महिला सांवली, मोटी और साधारण से भी कमतर स्तर के कपड़े पहने हुई थी। मेरी नज़रें लेकिन एक पल को भी उससे नहीं हटी। महज 7 या 8 मिनिट के इस सफ़र में ही वो मुझे बहुत ही शानदार इंसान मालूम हुई। एक हंसी पूरे समय उसके चेहरे पर चिपकी हुई थी। वो खूब हंसते-मुस्कुराते हुए आराम से बात कर रही थी। उसकी इस ज़िंदादिली को देखकर मुझे ख़ुद पर बहुत अफ़सोस हुआ। क्योंकि इसके इतर ऑफ़िस में अगर किसी से थोड़ी-सी भी झड़प हो जाती है तो पूरे समय तनाव बना रहता है। घर से अगर एक भी फोन किसी परेशानी को साथ लेकर आ गया तो मन समझो हफ़्तेभर के लिए उदास। चेहरे पर निकला एक पिंपल इतना परेशान कर जाता है कि उस तनाव से दूसरा उभर आता है। वज़न में एक किलो का बढ़ाव खाना-पीना बंद करवा देता है। ये हालत सिर्फ़ मेरी नहीं है। मेरी उम्र की लगभग हरेक लड़की इसी से उलझ रही है। ऐसे में उस लड़की का वो साधारण से भी कमतर चेहरा-मोहरा और बैडोल शरीर उसे कोई तनाव नहीं दे रहा था। ये देखकर मुझे अंदर ही अंदर एक खुशी हुई कि आखिर कोई तो एक ऐसी लड़की है जो बाहरी आवरण के ख़ूबसूरत होने के इस सामाजिक तनाव से दूर हैं।
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मैट्रो का सफर...
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7 comments:
शायद एक मूल मन्त्र है जिंदगी का जिसे हम भूलते जा रहे है ......
तनाव से मुक्त होना सहज रूप से होना चाहिये ।
ज़्यादा सोचना छोड़ दो... अपने आप खुश रहने लगोगी :)
अच्छा लगा पढ़कर। आपने सफर में एक अच्छी चीज पर गौर किया और हमारे साथ उसे बांटा। शुक्रिया।
कुछ महिनों पहले आपके ब्लोग पर बस में सफर करने पर पोस्ट हुआ करती थी.. अब मेट्रो की खबरें हैं...
यही हंसी तो है जो जाने कहां खो गई है....कहना आसान है, पर तनाव से निजात पाना सबसे मुश्किल..
खुशी हमारे आस पास हर समय होती है, बस हमें उसे ढूँढने की नज़र चाहिये... ऐसी पारखी नज़र वाले लोग ही अपने साथ साथ दूसरों को भी हँसा देते हैं :)
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