मैं जयपुर से आया हूँ।
मेरे पापा मुझे यहाँ छोड़कर गए हैं और वो दस तारीख़ को मुझे लेने आएंगे।
ये बात समीर ने मुझे पूरे यक़ीन के साथ कही। उसकी आँखों में उसके पिता के लिए उसका विश्वास चमक रहा था। हालांकि उसे छोड़कर हरेक को ये मालूम है कि उसके पापा नहीं आएंगे। समीर की उम्र पाँच साल होगी। वो फिलहाल दिल्ली के एक शेल्टर होम में रह रहा है। उसके पिता ने उसे यहाँ एक हफ़्ते पहले छोड़ दिया था। उसका पिता उसे बोझ मान रहा था और वो यहाँ महज उस बोझ को कम करने आया था।
समीर जिस शेल्टर होम में रहता है वो दिल्ली मैट्रो ने बनाया है, जिसकी देखरेख सलाम बालक ट्रस्ट कर रही है। ट्रस्ट के लोगों के मुताबिक़ मैट्रो के हेड ई. श्रीधरन ने एक दिन मैट्रो स्टेशन के पास एक बच्चे को सोते देखा और उन्हें ये लगाकि इन बच्चों के लिए एक जगह होनी चाहिए जहाँ वो कम से कम रात बिता सके। इसके बाद ही बना दिल्ली के तीस हज़ारी मैट्रो स्टेशन के पास बाल गृह। ये गृह ऐसे बच्चों के लिए जो सड़कों पर या फिर स्टेशनों पर यूँ भटकते हैं। इन बच्चों के लिए कई संस्थाएं काम कर रही हैं। लेकिन, इस बाल गृह को डीएमआरसी ने किसी फ़ायदे के लिए नहीं बल्कि बच्चों के लिए और बच्चों की पसंद के मुताबिक़ बनाया है। यहाँ बच्चों को सारी और आधुनिक सुविधाएं मुहैया करवाई जा रही हैं। यहाँ बच्चे बिना दबाव के रहते हैं। इन बच्चों से मिलकर हमेशा से ही मन कुछ उदास हो जाता है। हालांकि मेरी ऐसे बच्चों से ये कोई पहली मुलाक़ात नहीं थी फिर भी। कोई बिहार से भागकर आया है बेहतर पढ़ाई के लिए तो कोई उत्तर प्रदेश से चाचा-चाची से बचने के लिए, तो कोई है समीर जैसा जिसे माँ-बाप ही छोड़ गए है। इन बच्चों का न जाने कितने तरह से शोषण होता होगा। ऐसे में इन बच्चों के लिए किसी संस्था की ये छोटी सी कोशिश ही कई मायनों में बढ़ी लगती है।
1 comment:
क्या आप इस बालग्रह का एड्रस मुजे दे सकतीं हैं.
तीस हजारी के पास वाले..
मैं जाना चाहतीं हुं. मेरे जीमेल पर मेल कर सकती है..
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