Thursday, February 18, 2010
तोते की आंख से केवल काम नहीं चलेगा...
अर्जुन की एकाग्रता की कहानी हरेक ने सुनी होगी। जब सारे बच्चों को ना जाने क्या-क्या नज़र आ रहा था उस वक़्त अर्जुन को सिर्फ़ तोते की आंख नज़र आ रही थी। उसी का फल है कि अर्जुन को एक बेहतरीन धनुर्धर माना गया। लेकिन, शायद आज के वक़्त में ऐसी एकाग्रता कुछ कम ही फायदा पहुंचाएगी। कल इंटरनेट पर काम करते हुए मुझे ये महसूस हुआ। मैंने एक साथ लगभग छः या सात विंडो खोल रखी थी। हरेक में बारी-बारी काम चल रहा था। मैं एक पर कुछ देखती और दूसरे पर कुछ और तो तीसरे पर कुछ और लिखती। आज तो बहुमुखी होने का ज़माना है। किसी एक को लक्ष्य मानना रिस्की हो चला है। दसवीं पास करते ही आईआईटी, ट्रीपलआईटी और जाने किस-किस के साथ तैयारी होती है बाहरवीं। कहीं एक जगह लटके तो कहीं और तो नैया पार लग ही जाएगी। ऐसा माहौल हरेक जगह का हो चला है। किसी एक के भरोसे रहना अब संभव नहीं है। अगर हम ख़ुद को ही देखे तो मालूम चलेगा कि हम ही एक साथ कितने काम करते हैं। एक नौकरी फिर फ़्री लान्सिंग भी और फिर अगर कही पढ़ाने का काम मिल जाएं तो वो भी। सब कुछ एक साथ। सुबह घर से निकलते हैं तो केवल ये सोचकर नहीं कि ऑफ़िस जाना है बल्कि उसके साथ ही ना जाने कितने कामों की सूची दिमाग़ में रहती हैं जो कि शाम तक निपटाना हैं। टीवी चलता रहता है और हम अख़बार भी साथ-साथ पढ़ते जाते हैं। आज के इस युग में अगर अर्जुन फिर आ जाए तो शाबाशी उसे तब ही मिलेगी जब उसे तोते की आंख के साथ झाड़ियों के पिछे छिपा खरगोश और पीछे से आ रहे हिरन के साथ-साथ ना जाने और क्या-क्या नज़र आएगा।
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अलग सोच...
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2 comments:
बिल्कुल सही लिखा है आपने, सहमत हूँ आपसे ।
ha ha.. bhut achcha likhti hai aap Dipti.. spasht, teekha aur seedha.. vo bhi bhut achche vicharon k saath.
teen se chaar post padhi.. achcha samaye vyatit hua.
fursat mile to kripya mera blog bhi padhe.
shukriya.
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