Friday, December 11, 2009

ब्राह्मण का बेटा कायस्थ की बेटी, कुछ तो गड़बड़ है...।

आज सुबह-सुबह इंटननेट पर पढ़ा कि एक पत्रकार अपनी बेटी के लिए योग्य वर चाहते हैं। किसी तरह का कोई जाति बंधन नहीं है। पत्रकार ने ये बात अपने दोस्तों से साझा की है कि अगर किसी को उनकी बेटी के लिए कोई वर मिले तो वो उन्हें ज़रूर बताएं। सभी ने इस आधुनिक तरीक़े का स्वागत किया है। इसे पढ़कर सच में लगा कि हमारा समाज तो आधुनिक हो रहा है। लेकिन, इसी आधुनिक समाज में सबसे ज़्यादा आधुनिकता दिखानेवाले टेलीविज़न पर एक नया धारावाहिक शुरु होनेवाला है। नाम तो याद नहीं लेकिन टैग लाइन ज़रूर सुनने लायक है- ब्राह्मण का बेटा कायस्थ की लड़की, कुछ तो गड़बड़ है। मतलब कि अगर किसी ब्राह्मण जाति का लड़का किसी कायस्थ लड़की से शादी करना चाहे तो ये गड़बड़ है। मैं कुछ उलझन में हूँ। समझ नहीं पा रही हूँ कि असल में हमारा समाज कौन-सा है। अगर हाल फिलहाल हो रही शादियों पर नज़र डाले तो कुछ विशुद्ध माता-पिता की मर्ज़ी से हो रही है और लड़के-लड़की बिना किसी और की परवाह किए कर रहे हैं। ऐसे में हमारा समाज दो फांक हुआ सा लग रहा है। और, इनके बीच एक पतली-सी धार है ऐसे माता-पिता की जो अपने बच्चों के लिए जाति के बंधन के बाहर भी जीवन साथी ढ़ूढ रहे हैं। ये पहले नहीं है मेरे मित्र के बड़े भाई की कुछ दिनों ही पहले ही शादी हुई है। वो राजपूत है और उसकी भाभी बंगाली। हमने तपाक से पूछा था लव मैरिज है क्या। जवाब मिला कि नहीं पापा ने वैवाहिक कॉलम से खोजा है। मेरी एक बहन को भी जातीय बंधन से लगभग दूर कर दिया गया हैं। वजह उनकी बढ़ती उम्र और अच्छे लड़कों की कम होती उम्मीद है। केवल अपने आसपास के वातावरण में हो रही शादियों पर जब मैं नज़र डालती हूँ तो पाती हूँ कि बढ़ती उम्र, माता-पिता की आर्थिक स्थिति, लड़के या लड़की की कोई बीमारी और पहली शादी का टूटना या विधवा या विधुर होना कही न कही इस उदार विचारधारा के पीछे नज़र आते हैं। ऐसा नहीं है कि माता-पिता खुशी-खुशी बच्चों की लव मैरिज के लिए तैयार नहीं होते हैं। ऐसे कई परिवार है जहाँ हम ऐसे रिश्ते देख सकते हैं। ब्राह्मण के बेटे और कायस्थ की बेटी की शादी गड़बड़ समझनेवालों से तो एतराज़ है ही लेकिन, साथ ही साथ इस पतली उदार धार में के 95 फीसदी उस हिस्से से भी एतराज़ है जो किसी मज़बूरी के चलते ही उदार होते है न कि एक बेहतर समाज के लिए...

4 comments:

ghughutibasuti said...

यहाँ भी बहुत गड़बड़ है। सीरियल से कुछ उल्टा हम ३२ साल पहले खुशी खुशी कर चुके। हमारे परिवार में सब करे जा रहे हैं। जब कोई विवाह होता है तो बस यही पता चलता है कि किस प्रान्त या देश का है। जाति तो कोई पूछता भी नहीं। धर्म की चुगली तो नाम अपने आप कर जाते हैं। नई पीढ़ी में तो दसियों विवाहों में से केवल एक ही सजाति में हुआ है।
सो जाति वाली बात समझ से बाहर है।
हाँ मजबूरी यहाँ भी है, जाति प्रथा में विश्वास न करने की और प्रेम विवाह में विश्वास करने की।
घुघूती बासूती

कुश said...

आपका टाईटल देखकर तो मुझे लगा कही मेरी स्टोरी तो नहीं लिख दी आपने.. पर खैर पूरा पढ़कर पता चला मामला कुछ और है..

जाने दीजिये चैनल वालो को.. आज की जनरेशन को.. ट्विटर और फेसबुक से फुर्सत मिलेगी तो इन चैनल्स को देखेगी..

दिनेशराय द्विवेदी said...

मध्य और निम्न मध्यवर्ग के लिए जाति केवल दायित्व रह गई है।

डॉ महेश सिन्हा said...

लगता है यह कोई पुरानी कहानी पर आधारित सीरियल है . बाकी तो जाकी रही भावना जैसी