Saturday, November 21, 2009
भगवान के नाम पर सबकुछ...
भगवान के नाम पर इंसान कुछ भी कर सकता हैं। वो उस शक्ति से डर के करें या फिर उस शक्ति के नाम का दुरुपयोग करके करें। भगवान के नाम पर दे दे या फिर भगवान से डरो या फिर भगवान के लिए मुझे छोड़ दो या फिर ऐसे ही कई और जुमले हवा में तैरते रहते हैं। आज सुबह ही मेरा पाला कुछ ऐसे भक्तों से पड़ा जोकि भगवान के नाम पर भीख मांग रहे थे। आज शनिवार है यानी कि शनि महाराज का दिन। आज के दिन आपको बाज़ारों में भगवा कपड़े पहने हुए हाथ में एक बाल्टी और उसमें एक काला पत्थर या फिर लोहे का एक टुकड़ा लिए कई लोग मिल जाएंगे। अमुमन ऐसा होता था कि ये आपके पास आते थे और ज़ोर से बोलते थे - जय शनि महाराज... अगर आपको सिक्का डालना है तो डाल दीजिए या फिर बस हाथ जोड़ लीजिए। महाराज आगे बढ़ जाते थे। मेरी नानी के मुताबिक़ उन्हें कभी बुलाते नहीं हैं शनि आप पर ही चढ़ जाएगा। ऐसे में कई बार मैं इतंज़ार करती थी कि वो ख़ुद मेरे पास आ जाए। खैर, जैसा कि हमेशा होता है और हरेक के साथ हो रहा है शनि महाराज का ये दान भी धंधा बन गया। पहले शनि मंदिरों से शनिवार को शहर का फेरा लगानेवालों के बीच कुछ ऐसे शामिल हो गए जोकि महज शनिवार को भगवा पहनकर हाथ में बाल्टी उठाए दिनभर में 300 से लेकर 400 रुपए कमा लेते है। इसके बाद कुछ को घूमना भी गवारा नहीं हुआ और ऐसे में शहर के बाज़ारों में चौराहों पर या फिर कोनों में बाल्टियाँ दिखाई देने लगी। लोगों का ध्यान उस ओर जाए इसलिए एक धूप भी साथ में जलती रहती थी। वो लोग उस पैसे और इकठ्ठा हुए तेल का क्या करते हैं ये भी मेरे लिए आज तक एक पहेली है। मेरे घर पर भी हर शनिवार एक महाराज आते थे। मम्मी उनको तेल और एक का सिक्का दान में देती थी। उन्होंने भी मम्मी को आगाह किया था कि कुछ लोग यूँ शनिवार को घूमते है उनसे सावधान रहे। ऐसी ही चेतावनी हमें हर साल सावन में आनेवाली हिजड़ों की टोलियों ने दी थी कि कुछ झूठे हिजड़े बन पैसा वसूल रहे हैं। कुछ-कुछ ऐसा कि नक्कालों से सावधान। खैर, आज शनि महाराज के नाम पर एक नई बात जुड़ गई। सुबह बस स्टॉप पर कुछ बच्चे घूम रहे थे। सभी के हाथ में बाल्टी और उसमें एक लोहे का टुकड़ा। वो बच्चे स्टॉप पर खड़े लोगों के आसपास घूम रहे थे। मेरे पास भी आए। मुझे लगाकि आएंगे और मेरे सिक्का ना डालने पर चुपचाप चले जाएंगे। लेकिन, वो तो मेरे पास खड़े ही रहे और मेरे सिक्का ना डालने पर मुझसे भीख मांगने लगे। दे दे.. दे दे... करने लगे। ये देख मैं चौंक गई। श्रद्धा-भक्ति के नाम पर या फिर डर के नाम पर चंदा देते तो कइयों को देखा है लेकिन, उनके नाम पर भीख लेते भी देखा हैं। लेकिन, ये देखकर तो लगाकि जैसे भगवान ख़ुद ही भक्त के लिए भीख मांग रहे हो। ये बच्चे वही थे जो रोज़ाना वहाँ भीख मांगते हैं लेकिन, आज वो बाल्टी उठाएं ये काम कर रहे थे। मन में आया जो भी इनसे भीख मंगवाता होगा वो मैनेजमेंट में इतना तगड़ा है कि बिना किसी डिग्री के आईआईएमवालों को पढ़ा सकता हैं...
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बस का सफ़र,
मेरी नज़र से...
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6 comments:
सब पापी पेट का सवाल है ।
मैनेजमेंट की ट्रेनिंग देने वालों और जबरन भीख मांगने की ट्रेनिंग देने वालों का धंधा और काम एक ही है, ये एक जैसे ही नीच हैं जिनका एक ही मकसद है-- किसी भी तरीके से आपकी जेब से पैसा निकलवाना.
(डिस्क्लेमर: मैं खुद मैनेजमेंट का छात्र रहा हूं.)
हम भी तो प्रश्रय देते हैं तभी इनका धन्धा फलता फूलता है.
सब पापी पेट का सवाल है ।
आपने सही पहचाना। एक बड़ा नक्सस इसके लिए काम करता है। कुछ लोग लगे हुए हैं इसके पीछे। जिनमें डॉक्टर नरेश त्रेहण और आईजी शील मधुर जैसे कुछ लोग हैं। उनके साथ, नहीं उनके पीछे कहीं भीड़ में खड़ा मैं भी हूं।
अमर आनंद
सब पापी लोगो का सवाल है..
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