Wednesday, September 9, 2009
कीड़ों पर दया कीजिए...
लगता है कि कीड़ों की शामत आ गई है। कभी बेचारों का जूस निकाला जा रहा है तो कभी उनको बारबेक्यू में पकाकर खाया जा रहा है। ये बात मेरे मन में कल ख़तरों के खिलाड़ी देखते हुए आई। इस शो में जब ख़ूबसूरत महिलाओं पर उनके साथी इन्हें मुंह से उठाकर डाल रहे थे तब पता नहीं क्यों मुझे उस महिला नहीं बल्कि उन केंचुओं पर दया आई कि जोकि कही धरती के किसी कोने में आराम से रेंग रहे होगे। जबरन में बिना उनके पूछे ये टीवीवाले उन्हें उठा लाएं होंगे और जबरन में इधर से उधर डाल रहे हैं। कभी इन कीड़ों का जबरन में जूस निकाला जाता हैं तो कभी इन्हें साबुन की जगह इस्तेमाल किया जाता हैं। इस परेशानी से केवल ये केंचुएं ही नहीं जूझ रहे हैं बल्कि मकड़ियाँ, कॉकरोच, साँप और ऐसे कई छोटे-छोटे जीव आजकल परेशान चल रहे हैं। इंसानों के इस खेल से इनका न लेना है और देना है। फिर भी बेचारे बेमौत मारे जाते हैं। वैसे तो मेनका गांधी की संस्था से लेकर पेटा और ऐसी कई संस्थाएं मौजूद हैं जो जानवरों के लिए काम करती हैं। फिर भी अभी तक किसी ने भी इन बेचारों के लिए झंडा नहीं उठाया हैं। बेचारे सोचते होंगे कि क्या होते हैं ये इंसान पहले तो हमसे घीन करते हैं फिर हमें ही खाते हैं और हज़ारों जीत जाते हैं।
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अलग सोच...,
टीवी के ज़रिए...
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9 comments:
घिन आती है ये कार्यक्रम देखते हुए.
पैसे के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते जा रहे हैं!?
इंसानों के बाद तो उन्हीं की बारी ही है..................
इंसानों के बाद तो उन्हीं की बारी ही है..................
इंसानों के बाद तो उन्हीं की बारी ही है..................
इंसानों के बाद तो उन्हीं की बारी ही है..................
बाज़ारवाद हाय हाय !!
सही कहा आपने। पूरी तरह सहमत हूं आपकी बातों से।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
पैसा और प्रसिद्धी का लालच इन्सान से जो न करा दे.....आगे चलकर शायद कहीं कुछ इससे भी बुरा न देखना पड जाए!!
"....ये इंसान पहले तो हमसे घीन करते हैं फिर हमें ही खाते हैं और हज़ारों जीत जाते हैं।"
यही तो विडम्बना है,
क्योंकि मनुष्य योनि श्रेष्ठ योनि है।
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