Friday, May 22, 2009
बड़े-बड़े ख्वाब देखती मैं मूरख...
दिल्ली में चल रही मेट्रो इस वक़्त दिल्ली की लाइफ़ लाइन बन चुकी है। हर कोई भर-भरकर ई. श्रीधरन को दुआएं दे रहा हैं। बस की किचकिच और भारी ट्रैफ़िक से छुटकारा दिला रही ये मेट्रो दिल्ली को जन्नत बनाने में जुटी हुई है। अब तो हम जैसे गरीब यमुना पारवालों के लिए भी मेट्रो ने अपनी सुविधाएं पहुंचाना शुरु कर दी हैं। यमुना पार मैट्रो मतलब की दुनिया बदल रही है। यमुना पार जाने में तो ऑटोवाले यूँ मुंह चढ़ाते है कि पता नहीं किस नरक में ले जा रहे हो। हाथ पैर जोड़ने पर दोगुने पैसों पर तैयार होते है ऑटोवाले जाने के लिए। लेकिन, कल इस आनंददायिनी मैट्रो ने मेरे पसीने और रुलाई दोनों छुड़ा दी। ऑफ़िस से यमुना बैंक तक मैं लगभग 25 मिनिट में पहुंच गई थी। इसके बाद में मदर डेयरी जानेवाली फ़ीडर के लिए लाइन में लग गई। मेरे सामने हर 5 मिनिट में मैट्रो आती लोग उतरते और आकर फ़ीडर की लंबी लाइन में लग जाते। स्टेशन के बाहर रिक्शा और ऑटोवालों का जमघट था। रिक्शा केवल लक्ष्मी नगर मोड़ तक जाने को तैयार था और वो भी दस रुपए प्रति व्यक्ति और ऑटो तो केवल नोयडावाली सवारी के लिए घात लगाएं बैठे थे। खैर मैं केवल लाइन में लगी रही। क्योंकि मैं रूम के इतने पास आकर इतनी महंगी यात्रा के लिए तैयार नहीं थी। लाइन में लगे-लगे पसीने से मैं पूरी भीग चुकी थी। अंधेरा होता जा रहा था। मैं पसीने से लथपथ वर्ल्ड क्लास मैट्रो को अपने सामने आते-जाते देख रही थी। पूरे एक घंटे बाद एक फ़ीडर आई और धक्का मुक्की के साथ मैं उसमें चढ़ी और पूरे रास्ते यही सोचती रही कि शायद हम जैसों के लिए बस ही बेहतर है...
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कुछ अलग...
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2 comments:
ख्वाब देखना नहीं बुरा पर हालत है बेजार।
दिल्ली फिर भी सुधरी है कुछ जगी यहाँ सरकार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
सुना है अब तो जयपुर में भी मेट्रो शुरू होने वाली है.. देखते है क्या होता है
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