Thursday, April 30, 2009
मज़ाक में पकड़ी दुखती रग...
आज के वक़्त में विज्ञापन केवल किसी उत्पाद को बेचने के लिए नहीं बनाएं जाते हैं। बल्कि किसी सामाजिक संदेश को आम जनता तक पहुंचाने का काम भी ये करने लगे हैं। जैसे कि लोगों को वोट डालने की प्रेरणा देते विज्ञापन या फिर बिजली बचाने के तरीक़े बताते विज्ञापन। लेकिन, कई बार किसी उत्पाद को बेचते विज्ञापन भी हमें कुछ सिखा जाते हैं, समझा जाते हैं। ऐसा ही एक विज्ञापन है टाटा स्काय का। इस विज्ञापन में आमिर ख़ान एक बूढे़ पिता का क़िरदार निभा रहे हैं। जोकि टाटा स्काय के डब्बे को एक अंजान आदमी को दे आते हैं, क्योंकि उसके चक्कर में उनका बेटा घर के काम करने छोड़ देता हैं। ये विज्ञापन एक मज़ाकिया विज्ञापन है, लेकिन इसके पीछे छुपा अर्थ बेहद गंभीर। असल ज़िंदगी में एक बूढ़े पिता का विपरीत शारीरिक परिस्थतियों में बाज़ार जाना या फिर बिजली का बिल जमा करने के लिए लगी लाइन में खड़ा होना शायद ही किसी को मज़ाकिया लगे। क्या आपको ये मज़ाकिया लगेगा कि आपके पिता इस तरह से खड़े रहे। ये विज्ञापन मज़ाक के तौर पर ही और शायद अंजाने में ही लेकिन, हमें आइना दिखा जाता हैं कि आराम के चक्कर में या फिर अपने शौक़ को पूरा करने के चक्कर में कैसे हम अपने बूढ़े माता-पिता को परेशान करते हैं।
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विज्ञापन...
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2 comments:
काबिले तारीफ पोस्ट...
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
हमरा वादा रहा,चौबीस घंटे बिजली
बस पांच साल और।
इलेक्सन तो आता जाता रहता है
लेकिन बिजली तो जाती ही है।
एक्साइड इन्वर्टिकुलर।..
नेताओं की छवि और कितने बेहतर
तरीके से व्यक्त हो सकती है.
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