माता रानी का दरबार चार क़दमों की दूरी पर है। अब तो नंगे पैर जाओ... क्या इतनी भी भक्ति नहीं तुम्हारे अंदर...
जूते चप्पल यहाँ उतार दो बहनजी माताजी...कोई पैसा नहीं लगेगा मुफ़्त की सेवा कर रहे हैं हम तो...
माता रानी के दरबार से लौटकर आ रही हो ज़रा सिंदूर तो लेते जाओ यूँ खाली हाथ मत जाओ...
आईआईएम में बिज़नेस करना सिखाया जाता है। ये संस्था देश में व्यवसाय करनेवालों को इसके गुर सिखानेवाली सबसे बेहतरीन संस्था हैं। ऐसी ही कई और संस्थाएं मौजूद हैं। कुकुरमुत्ते की तरह हर कहीं उगी हुई हैं। किसी भी कंपनी में नौकरी मांगने जाओ एमबीए की डिग्री सबसे ज़्यादा मायने रखती है। लेकिन, क्या हरिद्वार में गंगा किनारे अपनी दुकान सजाएं इन दुकानदारों में से किसी ने भी एमबीए किया होगा। मेरी पूरी हरिद्वार यात्रा के दौरान ये सवाल मेरे मन में बना रहा। धार्मिक स्थल के आज के वक़्त में बिज़नेस के लिहाज़ से बेहतरीन है। मेरी मम्मी कुछ दिनों के लिए दिल्ली आई हुई हैं। दिल्ली आते ही उनकी मांग थी हरिद्वार में गंगा स्नान और उसके बाद मनसा देवी के दर्शन। रात की बस से हम हरिद्वार के लिए निकल पड़े। हरिद्वार पहुंचकर स्नान किया और फिर मनसा देवी के दर्शन के लिए निकल पड़े। इसबार तय किया कि पैदल चढ़ाई करेंगे। पूरा रास्ता दुकानों, भीखारियों और बहुरूपियों से भरा पड़ा था।
दुकानें भी तरह-तरह की। ज़्यादातर दुकानें पूजा सामग्री की और इसे बेचने का तरीक़ा भी बिल्कुल अलग। ये कोई नहीं कह रहा था कि सामान खरीद लो... सब कह रहे थे कि माता रानी के दरबार में आएं हो तो नंगे पांव चढ़ो जूते यहाँ उतार दो मुफ़्त सेवा है। कोई दाम नहीं और जैसे ही वहाँ जूते उतारने जाओ तो ये शर्त कि प्रसाद यही से खरीदो।
जूते चप्पल यहाँ उतार दो बहनजी माताजी...कोई पैसा नहीं लगेगा मुफ़्त की सेवा कर रहे हैं हम तो...
माता रानी के दरबार से लौटकर आ रही हो ज़रा सिंदूर तो लेते जाओ यूँ खाली हाथ मत जाओ...
आईआईएम में बिज़नेस करना सिखाया जाता है। ये संस्था देश में व्यवसाय करनेवालों को इसके गुर सिखानेवाली सबसे बेहतरीन संस्था हैं। ऐसी ही कई और संस्थाएं मौजूद हैं। कुकुरमुत्ते की तरह हर कहीं उगी हुई हैं। किसी भी कंपनी में नौकरी मांगने जाओ एमबीए की डिग्री सबसे ज़्यादा मायने रखती है। लेकिन, क्या हरिद्वार में गंगा किनारे अपनी दुकान सजाएं इन दुकानदारों में से किसी ने भी एमबीए किया होगा। मेरी पूरी हरिद्वार यात्रा के दौरान ये सवाल मेरे मन में बना रहा। धार्मिक स्थल के आज के वक़्त में बिज़नेस के लिहाज़ से बेहतरीन है। मेरी मम्मी कुछ दिनों के लिए दिल्ली आई हुई हैं। दिल्ली आते ही उनकी मांग थी हरिद्वार में गंगा स्नान और उसके बाद मनसा देवी के दर्शन। रात की बस से हम हरिद्वार के लिए निकल पड़े। हरिद्वार पहुंचकर स्नान किया और फिर मनसा देवी के दर्शन के लिए निकल पड़े। इसबार तय किया कि पैदल चढ़ाई करेंगे। पूरा रास्ता दुकानों, भीखारियों और बहुरूपियों से भरा पड़ा था।
दुकानें भी तरह-तरह की। ज़्यादातर दुकानें पूजा सामग्री की और इसे बेचने का तरीक़ा भी बिल्कुल अलग। ये कोई नहीं कह रहा था कि सामान खरीद लो... सब कह रहे थे कि माता रानी के दरबार में आएं हो तो नंगे पांव चढ़ो जूते यहाँ उतार दो मुफ़्त सेवा है। कोई दाम नहीं और जैसे ही वहाँ जूते उतारने जाओ तो ये शर्त कि प्रसाद यही से खरीदो।
इन दुकानों के बीच ही खिलौनों की दुकानें भी मौजूद थी। साथ ही साथ शिलाजीत और ऐसे ही कई यौन शक्ति बढ़ानेवाली जड़ी-बूटियाँ भी बिक रही थी। जिसे कुछ लोग दबे छुपे खरीद भी रहे थे। इन्हीं दुकानों के बीच सीडी भी बेचने के लिए रखी हुई थी। माता रानी के चमत्कारों, राम लीला की कथाओं और शिवजी के गुणगानों के गानों की इन सीडी के सारे गाने किसी न किसी हिट हिन्दी फ़िल्मी गाने की पैरोडी थे। वो लव में हिट-हिट... हो या फिर धूम मचा ले... इन सीडी में शिवजी के पीछे जींस पहने लड़कियाँ नाच रही थी और हनुमानजी का डायलॉग था कि कुछ नज़र नहीं आ रहा है। ये देख और सुनकर मेरा सर चकरा गया कि कैसे शिवजी के साथ जींस में कोई नाच सकता हैं और कैसे हनुमानजी को उर्दू का ज्ञान हो गया। हालांकि गांवों से आए श्रद्धालु बड़े चांव और आश्चर्य से इन्हें देख रहे थे। शायद यही इन सीडी के खरीददार भी होते होगे। चने चिरोंजी बेचनेवाले बंदरों के लिए चने नहीं बेच रहे थे बल्कि हनुमानजी की सेना के लिए खाना बेच रहे थे। यहाँ के भिखारी और नट भी पूरी तरह से पारंगत थे। अगर पैसा दिया तो लाखों दुआएं नहीं तो ऐसी-ऐसी बद्दुआ कि सुनकर मन दुखी हो जाएं। यात्रा के अंत में मम्मी ने हर की पौडी से गंगा जल भरा। वहाँ भी कुछ अधेड़ कुर्ता पजामा पहने रसीद कट्टा हाथ में लिए खड़े हुए थे। गौशाला और वृद्धाश्रम के लिए चंदा मांगते हुए। कुछ दिनों पहले लालू प्रसाद यादव ने एमबीए के छात्रों को व्यापार करने के नुस्खें सिखाएं थे, कई लोग मुंबई के डब्बेवालों पर रिसर्च करते है। लेकिन, मेरे मुताबिक़ इस तरह के धार्मिक स्थलों पर रहनेवाले दुकानदारों, भिखारियों, रिक्शा चालकों, पुजारियों से सबसे बेहतरीन व्यापार सीखा जा सकता हैं।
6 comments:
bahut sateek mudda uthaya hai bhai aapne, aur badhiyaa likhaa hai, bilkul sahee baat hai, aur had to dekhiye ki log fir bhee mandir banane par tule hain.
कहते हैं कि भारत की आत्मा है धर्म, लेकिन धर्म के नाम पर आस्था का जितना मज़ाक यहां उड़ाया जाता है, शायद ही कहीं और ऐसी स्थिति हो.
आप ने एक कड़वा सच उजागर किया है।हरिद्वार की यात्रा करने वाले यह सब जरूर भुगतते हैं।यह सब देख कर मन दुखी हो जाता है।
एक बेहद सही और याथार्थ्परक जानकारी.
सच यही सब होता है , आज धार्मिक स्थलों में
चलिए इस बहाने आपने एम् बी ऐ की नै पाठशाला
का पता भी बता दिया
- विजय
भारत को कहते सभी धर्मों का है देश।
होते बहुत अधर्म अब बदला है परिवेश।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
जिसकी जैसी भावना उसे वैसा फल...
एक भारतीय होने का कर्ज इसी से अदा होता है की वो बिना किसी की परवाह किये... अपनी भक्ति में मगन रहे. धर्म कर्म के मामले में अच्छा बोलना जितना जरुरी है.. बुरा ना बोलना उससे भी ज्यादा जरुरी है.
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