शादी को लेकर दुविधा में पड़े युवाओं के लिए हाल ही में राखी एक नई उम्मीद बनकर आई है। वो शादी की एक पुरानी परंपरा को एक बार फिर ट्रेन्ड में लाने की कोशिशें करती दिखाई दे रही हैं। राखी सांवत ने घोषणा की है कि वो स्वयंवर करनेवाली है। लेकिन, कुछ हटकर। ये वर वो एक रियलिटी टीवी के ज़रिए खोजेगी, जिसमें शायद आम जनता वोट भी कर सकती हैं। यानी कि पति राखी का लेकिन, पसंद आपकी। पहली नज़र में और विश्लेषण के बाद भी ये पूरी तरह से टीआरपी और लोकप्रियता के लिए किया जा रहा स्टंट दिखाई दे रहा है। लेकिन, मेरी सोच मुझे कहीं ओर लेकर जा रही है। क्या आज के इस युग में स्वयंवर एक बार फिर प्रासंगिक हो सकता है? जहां कई बार शादी ही प्रासंगिक नहीं लगती है, वहां शादी के तरीक़ों पर बहस क्या कुछ नया सामने ला सकती है। आज का युवा अपने जीवन में एक साथ की तलाश और उस रिश्ते को नाम दिए जाने को लेकर पसोपेश में हैं। पहले तो वो शादी और उससे जुड़ी ज़िम्मेदारियों को अपने करियर के आड़े नहीं आने देना चाहता हैं। वो चाहता है कि पहले करियर बने फिर वो इस सबमें पड़े। लेकिन, करियर बनाने में लगनेवाले वक़्त के दौरान उसे एक साथी की ज़रूरत महसूस होती है, जोकि स्वभाविक है। आज लगभग हर नौजवान घर से दूर, दूसरे शहरों में रह रहा हैं। ऐसे में परिवार और पुराने दोस्तों का साथ मिल पाना मुश्किल हो जाता हैं और ऐसे में आगे आते है नए दोस्त, जिनमें से ही कोई बहुत नज़दीक आ जाता हैं। यही भावनात्मक लगाव हम फिर पूरे जीवन चाहते हैं और प्रेम विवाह कर लेते हैं। स्वयंवर भी कुछ ऐसा तरीक़ा मालूम होता लगता है। यहाँ भी लड़की अपने पसंद का लड़का चुनती है। हालांकि स्वयंवधु क्यों नहीं होता है इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है। स्वयंवर के बारे में भी जिनता जाना है वो ये है कि यहाँ लड़के का शारीरिक सौष्ठव, उसकी बुद्धिमत्ता, समझ को परखा जाता है। जैसे कि रामजी ने धनुष उठाया था और अर्जुन ने मछली की आंख में तीर मारा था। लेकिन एक जीवन साथी में इन गुणों के अलावा कुछ और भी हैं जो ज़रूरी होता हैं। जैसे कि वो अपने साथी के प्रति कितना वफादार है, वो किसी की भावनाओं की कितनी कद्र करता है, वो सामनेवाले का कितना सम्मान करता है।
क्या ये सभी बातें स्वयंवर के ज़रिए या अरेंज मैरिज़ की कुछ फ़ॉर्मल मीटिंग के ज़रिए जानी जा सकती हैं? हाल ही में फ़ैशन में आएं युवक-युवती मिलन समारोह कुछ-कुछ स्वयंवर की तरह लगते हैं। यहाँ आनेवाले लड़के-लड़कियाँ मंच पर खड़े होकर अपनी पसंद बताते हैं। जोकि लगभग एक सी बातें होती हैं - कि वो स्वभाव से अच्छा/अच्छी हो, सुन्दरता इतने मायनें नहीं रखती है और भी कई ऐसी ही बातें। ऐसे मिलन समारोह छोटे शहरों में लगभग हर समाज के साल में चार बार हो ही जाते हैं। यहाँ माता-पिता भी साथ मौजूद होते हैं। वो माइक पकड़े अपनी बेटी की भावी जीवन साथी के बारे राय भी सुनते हैं। यहाँ उन्हें बेटी के ये विचार बुरे नहीं लगते हैं। लेकिन, अगर यही बेटी किसी और जाति या धर्म में ऐसे ही किसी लड़के से शादी कर लें तो वो बुरी बन जाती है...
Thursday, April 9, 2009
शादी के तरीक़े...
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9 comments:
राखी का नया अंदाज़ ....भाई लाइम लाइट में रहने का अच्छा तरीक है
शादी जैसे गंभीर निर्णय स्वयंवर द्वारा नहीं लिए जा सकते। मनुष्य के जीवन के अनगिनत पहलू होते हैं और केवल एक,दो या तीन के बल पर विवाह का निर्णय अटपटा लगता है। प्रेम विवाह एक हल हैं, किन्तु उसमें भी यह समस्या है कि आप बिना किसी व्यक्ति के साथ रहे उसको पूरी तरह से नहीं जान सकते। वैसे किसी को समझने के लिए तो एक जीवन भी कम पड़ता है। परन्तु यदि प्रेम विवाह काफी लम्बे समय तक जानने के बाद किया जाए तो यह जुआ खेला जा सकता है।
घुघूती बासूती
लेख थोड़ा लंबा है, लेकिन सभी बिंदु विचारणीय हैं।
अच्छा विमर्श...
दीपतीजी,
जानकारी के लिए शुक्रिया!!! आपने बहुत ही उपायोगी बात बताई है। काश आप स्वयंवर का दिन स्थान बताती तो हम भी इसमे भाग लेते।
आभार्।
जानकारी देने का शुक्रिया ... यह कितनी लोकप्रिय होगी .. यह तो समय ही बताएगा।
हिंदी मीडिया जगत पर नई वेबसाइट लॉन्च हुई है. कृपया आप भी नजर डाले. आपके सुझावों और आपके विचारों का स्वागत है. वेबसाइट है www.medianarad.com
घुघूती बासुती जी ठीक कह रहीं हैं कि किसी को समझने के लिए एक जीवन भी कम पड़ सकता है।..और राखी सावंत का स्वयंवर...विवाह के लिए कम पाच-सात करोड़ रुपये कमाने के लिए ज्यादा होगा।
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