Wednesday, April 8, 2009

अधर में लटके हम लोग...

कल जब मैं ब्लैकमेल करते रिश्तों पर लिख रही थी तब मैंने ऐसे युवाओं का भी ज़िक्र किया जो माता-पिता की मर्ज़ी से शादी करते हैं। विदेश या देश में ही किसी अंतरर्राष्ट्रीय कंपनी में मोटा पैकेज पानेवाले इन युवाओं के अरेन्ज या लव मैरिज करने के तर्क अलग-अलग हो सकते हैं। लेकिन, कुछ वजहें तो बेहद ही शर्मनाक होती हैं। मेरे एक दोस्त ने अंतरजातीय विवाह किया है। वो जिस वर्ग से संबंध रखता है वहां दहेज का लेन-देन बहुत ज़्यादा होता है। लड़का अगर प्राइवेट में है तो 5 लाख और सरकारी में है (चाहे वो चपरासी ही हो) तो दस लाख से बात शुरु होती है। ऐसे में उसके प्रेम विवाह करने पर उसके परिवार में शुरुआती विरोध के बाद सब मान गए। वजह थी कि लड़की इन्फ़ोसीस में महीने का पचास हज़ार कमा रही है। मतलब कि महीने का बंधा-बंधाया दहेज। मेरी पिछली पोस्ट पर आई ज्ञानदत्तजी की प्रतिक्रिया में यहां पब्लिश कर रही हूँ। और उसके साथ-साथ मेरी दोस्त से आज ही हुई बातचीत भी।
ज्ञानदत्त पाण्डे ने कहा था -
दोहरे मानदण्ड अगर अपनी बजाय मां-बाप की पसन्द की लड़की/लड़के तक हो - तो ठीक है शायद। पर जब तथाकथित आदर्श से समझौता कर दहेज की गांठ से भी बंधते हैं ये युवा, तब खोखले लगते हैं।

कुछ दिनों पहले ही मेरी दोस्त को एक लड़का देखने आया था। लड़का दिल्ली में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम कर रहा है और उसका 10 लाख का सालाना पैकेज है। घर में केवल भाई है और पिता। पिता कॉलेज में प्रोफ़ेसर है। मेरी दोस्त के पिता पहले ही लड़के घर होकर आ चुके थे। वहां जाने के पीछे उनका मक़सद उनकी उम्मीदों की टोह लेना था। उस वक़्त उनका जवाब था अरे ये बातें तो होती रहेगी। घर परिवार अच्छा होने पर बात आगे बढ़ रही थी। जब लड़का मेरी दोस्त को देखकर गया तो उसके बाद परिवार के सभी सदस्य उनके जवाब के इतंज़ार में थे। आज ऑफ़िस में मेरी दोस्त का फोन आया मैंने पूछा क्या हुआ? तो वो बोली लड़के के पिता ने दस लाख की मांग की है। वो कहते है कि बाक़ी जो अपनी बेटी को देना चाहे और शादी तो हमारे शहर आकर ही होगी। मेरी दोस्त लगातार बोल रही थी। वो कहने लगी कि मेरे सामने मेरे पिता उनसे कुछ कम करने की बात कह रहे थे लेकिन, वो नहीं माने। इसके बाद फोन रखने के बाद मेरी दोस्त के पिता रोने लगे। मैं उन्हें बचपन से जानती हूँ और एक इतने मज़बूत इंसान की रोने की बात सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ। और भी कई बातें हुई। आखिर में मेरी दोस्त ने मुझसे कहा - पता नहीं हम कहाँ फंसे हुए हैं, किस सोच के साथ चल रहे हैं। माता-पिता की मर्ज़ी से शादी करो तो उन्हें यूँ कंगाल करके और अगर अपनी मर्ज़ी से करो तो उन्हें समाज में नीचा करके...

2 comments:

संगीता पुरी said...

माता-पिता की मर्ज़ी से शादी करो तो उन्हें यूँ कंगाल करके और अगर अपनी मर्ज़ी से करो तो उन्हें समाज में नीचा करके... इस समाज की सोंच के कारण बेचारे युवा वर्ग के दोनो ओर परेशानी ही परेशानी है।

vikram said...

The solution seems to defy these norms, stand up against the odds and marry the one that you think your soulmate is. Let the world say whatever it has to..because it anyways will say something..Somewhere the solution has to come and we, the young generation got to bring the solution rather than keeping our fingers crossed..waiting for the solution to come.