Tuesday, March 17, 2009

अब क्या कहा जाएं...

मेरी नई पोस्ट सहनशील पुरुष समाज पर हमेशा की तरह कुछ लोगों ने भौहें तानी और कहा कि क्या कुछ भी लिखती रहती हो। साथ ही साथ एक साथी ने अपना एक अंधविश्वास भी बताया। मेरे मित्र का मानना है कि जब भी वो एक निश्चित जगह पर बाथरूम करता है उसका दिन अच्छा बीतता है...

इसके आगे मैं कुछ नहीं कह पाई...

2 comments:

Sanjay Grover said...

मौत का ज़हर है फिज़ाओं में,
अब कहां जा के सांस ली जाए ?

तो ???

चलो दिलदार चलो....
चांद के पार चलो...
लेके इक धार चलो...
हो...ऽऽऽऽऽऽऽ

क्यों ??

दिन भी रोशन हो जाएंगे, रात सुनहरी बीतेंगीं ......

डॉ .अनुराग said...

कथादेश में सुधा अरोडा जी का लिखा अक्सर मुझे भीतर तक खरोंच देता है ....उन्होंने कहा था स्त्रियों के नाजुक शरीर में कई शोक एब्सोर्बर फिट होते है ...सही कहती है