Thursday, March 19, 2009
बस में सफर करते कुंठित लोग...
मैं पिछले तीन सालों से दिल्ली में अकेली रह रही हूँ और बस में सफर कर रही हूँ। इन तीन सालों में बस के सफर से जुड़े कई अनुभव मैं लोगों से दो-चार भी कर चुकी हूँ। बस के सफर के दौरान आज तक में किसी तरह की छेड़छाड़ का शिकार नहीं हुई हूँ। हालांकि रोज़ाना कई लड़कियाँ इसका शिकार होती रहती हैं। कई छेड़छाड़ के बावजूद चुप रहती हैं, तो कुछ इसके खिलाफ आवाज़ उठाती है। हालांकि इतने दिनों से बस में सफर करके मैं इतना ज़रूर समझने लगी हूँ कि कौन भीड़ के चलते मज़बूरी में सट रहा है और कौन जानबूझकर चिपकने की कोशिश में हैं। ये बात आज सुबह ऑफ़िस आते वक़्त की है। मुझे आसानी से बस में बैठने की जगह मिल गई थी। बस भी कुछ खास भरी हुई नहीं थी। मैं आराम से सीट पर बैठी हुई एफ़एम सुन रही थी। अचानक मुझे लगाकि मेरे कंधे से सटकर कोई खड़ा हुआ है। बस में भीड़ होने पर यूँ एक दूसरे पर लदना मजबूरी होती है। अधिंकाशतः ऐसा ही होता है लेकिन, कई इसमें भी मज़े (दिल्ली में सिखा मेरा एक शब्द) लेते हैं। लेकिन, आज बस भरी हुई नहीं थी। मैंने मुंह घुमाकर देखा तो एक अघेड़ आदमी मुझसे अपने बेल्ट का निचला हिस्सा सटाने की पुरज़ोर कोशिश कर रहा था। मैंने अपना कंधा आगे कर लिया। तब ही एक आंटी बस में चढ़ी और मेरे पास ही आकर खड़ी हो गई। अचनाक मुझे लगाकि मेरे सीने से कुछ टकरा रहा है। मुझे लगा कि बैग होगा और जैसे ही मैं पलटी मैंने देखा कि वो उसी आदमी का हाथ था। उसने एक झटके से हाथ पीछे कर लिया। उस वक़्त मुझे इतना गुस्सा आ रहा था कि लगा उसे एक थप्पड़ जड़ दूँ। लेकिन, मैंने ऐसा नहीं किया। मैंने उस आदमी को लगातर घूरना शुरु कर दिया। एकटक मैं उसकी आँखों और उसके चेहरे को घूरती रही। पहले तो एक दो बार उसने मेरी तरफ देखा और फिर नज़रें घुमा ली। इसके बाद उसने धीरे-धीरे पीछे खिसकना शुरु किया। दिल्ली सचिवालय से लेकर आईटीओ तक में वो आदमी खिसककर गेट तक पहुँच गया और स्टॉप आते ही उतर गया। उतरकर उस आदमी ने मेरी ओर एक बार देखा। मैं तब भी उसे घूर रही थी। वो बस स्टॉप पर घुमकर खड़ा हो गया। मुझे नहीं पता मैंने सही किया या गलत। कभी लगता है कि मुझे उस पर चिल्लाना था, कभी लगता है कि उसे थप्पड़ मारना था। इतना सब सोचने के बाद मुझे लगा कि मेरे केवल घूरने से ही जिसके माथे पर पसीने की बूंदे आ गई हो वो कितना कायर होगा। पता नहीं कौन-सी ऐसी कुंठित सोच होगी जिसके चलते वो बसों में ऐसी हरक़तें करता होगा। हो सकता है कि अगली बस में चढ़ने पर भी वो यही हरक़त दोहराए। ऐसे में अगर भीड़ रही तो लड़की शायद उसे दूर हटकर खड़े होने के लिए भी न कह पाएं...
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16 comments:
वाकई ये लोग कुंठित मानसिकता से ग्रसित बीमार लोग हैं जो हर जगह देखने मिल जाते हैं.
आपकी आपबीती हमारे आस-पास की एक नंगी सच्चाई को सामने लाती है.
नहीं दीप्ती ..अगर लड़कियां चाहती हैं की उनकी हालत बदले तो कहना ही होगा ..चाहें भीड़ हो या न हो. हमें अपना विरोध दिखाना ही होगा ..वरना ये भूखे भेडिये जिन्दा ही चबा जायेंगे
बद से बदतर अनुभव हैं। कई बार लगता है कि हम एक-एक पुरुषों में भेड़िया बैठा है। हद यह है कि अब बस में पुरुष एकजुट हो जाते हैं। हाल ही में केरल से लौटा हूं।वहां बसों में जिस सीट पर कोई स्त्री होती है, उस पर पुरुष नहीं बैठता भलेही सीटखाली रहे। एकबार तोइस पिछड़ेपन पर गुस्सा आया फिर सोचा कि दिल्ली कीबसों में सफर के अनुभव के बाद जो स्त्री यहां आएगी, वो राहत का सांस लेगी। अजीब बात है।
देखिएगा-
http://ek-ziddi-dhun.blogspot.com/2008/09/blog-post.html
अरे बहिनजी लंगूर कितना भी बूढ़ा हो जाये पेड़ दिखेगा तो उसकी डगालों पर तो कूदेगा ही ।
kuchh purushon kii mansikta aur harkatein itni gandi hoti hain ki ek hi man karta hai ki inko theek se sabak sikhana chaahiye
दीप्ती..तुमने बस में उस शक्स को भले थप्पड़ न मारा हो...और भले ही वो शख्स तुम्हारी इस पोस्ट को न पढ़े...लेकिन तुमने उस जैसे हजारों कुंठित लोगों के चेहरे पर जोरदार तमाचा जड़ दिया. हर गलत बात का विरोध जारी रहे. शुभकामनायें.
क्या कहा जाए ऐसे लिजलिजे लोगों के बारे में ? बहुत दुख होता है।
घुघूती बासूती
दीप्ति ,
ऐसे कुछ चेहरों पर कैसी बेशर्मी पुती होती हैं , यह देखकर और भी चिढन होती है।आज कल बस मे जाना कम हो गया है मेरा पर अच्छे से याद है कि जब रोज़ाना दो चार बसें बदलनी होती थीं तो दिन मे 4- 5 बार लड़ाई हो जाती थी।मूड खराब और दिन भी खराब!
इस मुद्दे पर लिखती रहो , भारत मे ईव टीसिंग को एक बहुत सामान्य बात की तरह लिया जाता है।
कुछ न कह कर भी आपने उस से बहुत कुछ कह दिया ..इस तरह के लोग दिल्ली की बसों में जैसे मौका तलाश करते हैं
एक बार जोर से डांट तो सकती ही थीं आप...दिल्ली की बसों में कई बार ऐसा होता है, पर डांट देने से अक्सर ये वहीँ उतर जाते हैं, बार कई बार तो देखा है की साथ चलती बाकि सारी महिलाएं मिल कर ऐसी खरी खोटी सुनाती हैं की उसका कमसे कम कुछ दिन तक तो कुछ करने की हिम्मत नहीं होती. होगी. ये भी देखा है कि ऐसी व्यक्ति को बस conductor बिना किसी बस स्टाप क आये, वहीँ बीच में ही उतार देता है.
हालाकि आपने शीर्षक दिया है "बस में सफर करते कुंठित लोग" मगर हकीकत है कि इस प्रकार के कुंठित लोग समाज में हर जगह जैसे बाजार, स्कूल, ऑफिस, घर, पार्क सहित सारे स्थानों पर है जिनके घृणित स्पर्शो और कामुक निगाहों से बचना जहा नारी के लिए कठिन है वही पीडाजनक और अपमानजनक भी है. इसके विरुद्ध कठोर कदम उठाने कि आवश्यकता है जिसके लिए नारी जागरण और सशक्तिकरण ही सहायक होगा.
तसलीमा नसरीन की कविता याद आती है ..
मन करता है
इनकी कमर झुकायुं
ओर जोर से लात मार कर कहूँ "साले "
तसलीमा नसरीन की कविता याद आती है ..
मन करता है
इनकी कमर झुकायुं
ओर जोर से लात मार कर कहूँ "साले "
dipti ji
apke is lekh ko kai bar pada .....................us admi ki harkat pe gussa aya .......aapko use ek thappad to jarur marna chahiye tha................baad main jo hota dekha jata..........
जब तक जवाब ना मिले ऐसे लोग सुधारते नहीं
नजफ़ गढ़ दिल्ली में भी के एल परूथी K.L.PRUTHI नाम का एक ऐसा ही शख्स है
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