आज बसंत पंचमी है। सुबह जब रूम से पूजा करके ऑफ़िस के लिए निकली तो रास्ते में पड़नेवाली कालीबाड़ी में चल रही सरस्वती पूजा में गाए जा रहे गानो को सुना। मन हुआ कि काश और भी ऐसे गाने सुनने को मिल जाते। लेकिन, बस में टूटे दिल के नग्में बज रहे थे। एफ़एम पर जय हो और मसकली बज रहा था। कही कुछ ऐसा सुनने को नहीं मिला। अभी यूँ ही नेट विचरण के दौरान ये गाना सुनने को मिला।
पधारो म्हारे देस...
इसका बसंत से कोई संबंध नहीं है। फिर भी कम से कम ये कानों को सूकून पहुंचा रहा है। किसी मुसाफ़िर ने इसे कैमरे में क़ैद किया हैं। राजस्थान के किसी गांव में कुछ मज़दूर काम से आराम पाने के लिए शायद ये गाना गा रहे थे। आप भी सुने...
4 comments:
sukun mila abhi basant ko log ma sarswati ki aaradhana karate he
इस सुंदर गीत को सुनाने के लिए आभार. हमने तो इसे डाउनलोड कर भी लिया. एक दम ग्रामीण परिवेश में ही प्रस्तुति हुई है.
आप के ब्लॉग पर आकर मुझे भी सुकू मिला ...शुक्रिया .....
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