गालियों पर लिखी मेरी पोस्ट पर कई प्रतिक्रियाएं आई। कुछ ने इस तरह से इनके प्रयोग को गलत बताया तो कुछ ने इन्हें एन्जॉय करने की सलाह दी। मेरा विरोध गालियों के प्रति तो हैं ही। लेकिन, उससे बढ़कर गालियों में स्त्रियों के प्रयोग पर है।
एक बार इस बारे में मैत्रीय पुष्पाजी से बात हुई थी और उन्होंने कहा था कि - गालियाँ दलितों और स्त्रियों को लेकर ही तो दी जाती हैं। दलितों ने इसका विरोध किया वो बंद होने लगी, लेकिन स्त्रियाँ अभी तक विरोध करना नहीं सीख पाई हैं। इसलिए वो आज तक इसका हिस्सा हैं....
प्रतिक्रियाओं में एक अनाम की प्रतिक्रिया आप भी पढ़े -
भेन चो* यही मिला था लिखने को?
पढ़कर कर यही लगा कि न सिर्फ़ पढ़े-लिखे लोग इस तरह की भाषा का प्रयोग करते हैं। बल्कि पढ़ने-लिखनेवाले लोग भी इस भाषा का धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं।
इसके साथ ही सुजाता की प्रतिक्रिया और चोखेर बाली पर लिखे उनके लेख के ज़रिए एक महानुभाव के विचार भी जानने को मिले जो गालियों में स्त्रियों के इस्तेमाल पर तो कुछ नहीं बोल रहे हैं। लेकिन, एक लड़की के इस पर बात करने से ख़फ़ा है। आप भी इन्हें पढ़े....
और, अंत में इस सबसे इतर एक बात... आज तक मुझे यही लगता था कि अपनी कुंठित मानसिकता को छुपकर दिखाने का ज़रिया है अनाम। लेकिन, आज मेरी पोस्ट पर आई एक प्रतिक्रिया ने मेरा नज़रिया बदल दिया।
आप भी पढ़े एक अनाम की ये प्रतिक्रिया -
बचपन में कई भाइयों की इकलौती बहिन होने के कारण ये गाली अन्दर तक कहीं चीर जाती थीं (खासतौर पर जब तब वो आपस में ही लड़ते समय इसका प्रयोग करते थे) ऐसा लगता था मानो ज़मीं फट जाए और मैं उसमें समा जाऊं. उस समय उस बहिन को बड़ा मिस करती थी जो दरअसल कभी थी ही नहीं (आखिर मेरा दुःख कुछ तो बांट लेती). बहरहाल, पति से कभी कभार ज़रूर बहस हो जाती थी गाली प्रयोग पर. लेकिन तर्क है कि अपने आस पास कुछ भी मन मुताबिक न होने पर अपने दिल का गुबार निकालने के लिए गालियों का प्रयोग आवश्यक हो जाता हैं. उनकी ये आदत छुड़ाने की कोशिश अब छोड़ दी है. कभी कभी सोचती हूँ कि वो कौन सी शक्ति है जो स्त्रियों को इतनी मजबूती देती हैं कि उन्हें ऐसे कुंठित सहारों की आवश्यकता नहीं होती.
18 comments:
सावधान! हर गाली महिलाओं के अंग पर ही जाकर समाप्त होती है।
vishay bahut achcha chuna hai aapne.....
पहले गाली घर के बाहर सुनने को मिलती थी पर अब तो घर के अंदर भी है.
जो अपशब्दों का प्रयोग करे उसका बहिष्कार करें. मेरे एक दोस्त को मैंने अपने साथ ऑरकुट से निकाल दिया किया क्योंकि उसने अपने प्रोफाइल में एक लड़की की फोटो लगाकर यह कमेन्ट प्रयोग किया था. -- She that is a BI**CH. न् तो उसने कमेन्ट हटाया न् मैंने उसे अपने दोस्तों में जोड़ा.
मैंने मेरे एक सगे से दोस्त से यह प्रार्थना की कि वह गाली देना बंद कर दे. वह बंद तो न् कर पाया पर हर समय उसके मुंह से निकलने वाली गाली कुछ हद तक कम हो गई. अब वह मेरे सामने गाली नहीं देता. स्कूल और कॉलेज में मेरा यह सिद्धांत था कि मेरे ग्रुप में वही शामिल होगा जो लड़कियों की इज्जत करे और गाली- गलौज न् करे.
आज तक यही सिद्धांत मानता आया हूँ और मुझे लगता है कि हम जैसा आचरण करते हैं, यह हमें संस्कारों में ही मिलता है. हालांकि इसमें समाज का भी योगदान होता है परन्तु हम किस समाज को चुनें या किस समाज में रहें यह सोचने और समझने की शक्ति तो परिवार के बड़े से ही पाते हैं.
ओह 73 लेख आप तो पुरानी ब्लॉगर हैं. चिट्ठाजगत ने अब जाकर आपको नोटिस किया. नहीं तो आप हम साथियों से अलग थीं. चलिए अब आप के ब्लॉग पर पाठक बढ़ जायेंगे और आप का लेखन उच्चकोटि का है. इसे जारी रखिये. यदि कोई तकनीकी सहायता चाहिए, तो मुझे याद कर लीजियेगा.
ई-गुरु राजीव
ब्लॉग्स पण्डित - ( आओ सीखें ब्लॉग बनाना, सजाना और ब्लॉग से कमाना )
कभी कभी सोचती हूँ कि वो कौन सी शक्ति है जो स्त्रियों को इतनी मजबूती देती हैं कि उन्हें ऐसे कुंठित सहारों की आवश्यकता नहीं होती.
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यह शक्ति नही ट्रेनिंग होती है।स्वयम दीप्ति की एक पोस्ट मे खुद को दबाने,ढाँपने ,छिपाने की ट्रेनिंग पर बात की गयी है।पितृसत्ता यही चाहती है कि इसे आप अपनी शक्ति माने ,उस पर गर्व करें और हमेशा इस महानता की आड़ मे वे समाज की अतिरिक्त ज़िम्मेदारियाँ वहन करती जाएँ,अस्वाभाविक जीवन जिएँ हमेशा महान और त्यागमयी बनने की कोशिश मे इंसान होने की मामूली ख्वाहिशें भी दफन कर दें।
इसके प्रति सावधान रहना चाहिए कि जिसे हम अपनी शक्ति मानते हैं वह केवल सहने की ही न हो बदल सकने (खुद को और दूसरों को)की भी हो।
इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करने वालों पर सिवाए अफसोस जताने के सिवा और क्या कर सकते हैं, सिवाए इसके कि पुरुष प्रधान समाज को इसके लिए खुद पहल करनी होगी कि वह महिलाओं को सम्मान देना सीखे। चाहे वह सामान्य बातचीत हो या विशेष बातचीत हो। महिलाओं का इस पर ऐतराज जायज है। इसका विरोध तो इसी तरह होगा। दीप्ति आपने यह मुद्दा उठाकर वाकई साहस का परिचय दिया है। जिन लोगों ने आपके दोनों लेखों को एन्ज्वाय करने के नजरिए से देखा और टिप्पणी की, वह धिक्कार के पात्र हैं। अगर इसे पुरुषों की कुंठित मानसिकता कहा जाए तो गलत नहीं होगा। इसी तरह कलम चलाती रहें।
गाली देने की प्रवर्ती से हमेशा बचना चाहिए ये सभ्य समाज की निशानी नही है !
आपके पिछली पोस्ट पर भी लिखा था, सुजाता के पोस्ट पर भी लिखा था और उन आलोचक के पोस्ट पर भी..
इस तरह के पोस्ट अधिक कमेंट नहीं पा पाते हैं और अगर पाते भी हैं तो अनाम द्वारा.. इसका कारण मुझे साफ नजर आता है..
1. लोग दो चेहरे लेकर जीते हैं और ये नहीं चाहते हैं कि उनका दूसरा खराब चेहरा सभी के सामने आये..
2. ऐसे पोस्ट पर आकर विचार देने वालों पर बहुत जल्द ही व्यक्तिगत आक्षेप लगने शुरू हो जाते हैं.. जैसा कि अभी फिर से मैंने पाया है चोखेरबाली पर..
खैर मेरा तो बस यही कहना है कि मैं गालियों में विश्वास नहीं रखता हूं.. ना खुद देता हूं और ना ही दूसरों से बरदास्त करता हूं.. अब चाहे यह गाली किसी पुरूष के मुंह से हो या महिला के मुंह से.. कोई बस भदेस दिखने को ऐसी गालियों का सहारा लेता है तो यह उसका दुर्भाग्य है..
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
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pata nahi log galiyo ka prayog kyo karte hai,iska prachlan khud ko padha-likha kahne bale logo me bhi dikhta hai.ek blogger ne mere blog par aakar bhi kuch galiyo se mujhe nawaja tha,khair mujhe pata nahi galiyo ka prachlan kaha se aur kab shuru huaa,parantu ye achchha nahi hai,ham apni taraf se yahi prayas kar sakte hai ki ham kisi ko galiya na de.
--------------------"VISHAL"
सावधान! गालियों में स्त्रियों का प्रयोग आवश्यक है । परन्तु स्त्रियों द्वारा गालियों का प्रयोग वर्जित है।
घुघूती बासूती
इधर से गुज़रा था सोचा सलाम करता चलूंऽऽऽऽऽऽऽ
और बधाई भी देता चलूं...
मैं भी कई बार दिल्ली गया हूँ किसी भी पढ़े लिखे व्यक्ति को तो ऐसा बोलते नही सुना -अब बस अड्डों और उजड्डों की भाषा का जिक्र यहाँ करना बिल्कुल अनुचित है -सुजाता जी अब ज्यादा औचत्य सिद्ध न करें ! यह पोस्ट ही बैड टेस्ट में है -अभी कोई वेश्यायों की भषा बोलने लग जायेगा .
मैं तो गाँव वाली औरतों को गाली देते सुना है -हे राम कई जन्म तक वे शब्द मेरे मुंह से नही निकल पायेंगे ! मैं लजा और संकोच से जैसे जमीन में गड जाता हूँ -
रही गाली को एक सुसंस्कृत और सुरुचिपूर्ण रूप देने की तो यह तो एक अनुष्ठान /रस्म ही है विवाह शादीके समय कई जगहों पर ,ख़ास तौर पर जब बाराती खाना खाने लगते हैं .पर वह बहुत ही कर्ण प्रिय और बहुधा लक्षणा और व्यंजना में होता है और एक गीत काव्य के रूप में .
पर यह दुइली वाली बात कुछ हजम नही हुयी -हजमोला दीजिये सुजाता जी ,क्योंकि आपसे ही कुछ जान पहचान है पहलेसे !
wahho achha likha hai...firstly first nav varsh ki nayi nayi shubhkamnayen.....
Jai Ho Magalmay HO.....mere blog par swagat hai...
http://gaaliyan.blogspot.com/
आपका ब्लॉग देखा, बहुत अच्छा लगा. मेरी कामना है कि आपके शब्द नयी ऊर्जा, नए अर्थ और गहन संप्रेषण के वाहक बन कर जन-सरोकारों का सार्थक व समर्थ चित्रण करें ........
कभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पधारने का कष्ट करें-
http://www.hindi-nikash.blogspot.com
शुभकामनाओं के साथ
आनंदकृष्ण, जबलपुर
सुंदर और रमणीय अभिव्यक्ति .. शुभ कामनाएं
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