नाग-नागिन, भूत प्रेत और राखी सांवत की प्रेम कहानी की ख़बरें दिखानेवाले चैनलों को आप क्या मानते हैं... शायद ऐसे न्यूज़ चैनल जिस पर ख़बरों की जगह नाग-नागिन के विशेष दिखाए जाते हैं। बताया जाता है कि जो करना हो आज ही कर लीजिए कल धरती पर प्रलय आनेवाला है। कई लोग ये मानते हैं कि ये न्यूज़ चैनल नहीं है, बल्कि नाग-नागिन चैनल या भूत प्रेत चैनल है। लेकिन, आज मुझे इस तरह के चैनलों की सटीक परिभाषा और सटीक नाम की जानकारी हुई। ये है - लो कॉस्ट इन्टरटेन्मेंट रियलिटी शो टेलीविज़न...
ये नामांकरण किया है विनोद दुआ ने। इसके साथ ही दुआ ने बताया कि कैसे वो दूरदर्शन के दिनों में कुछ सरकार विरूद्ध या नियम विरूद्ध दिखाने के लिए अधिकारियों को कार्यक्रम प्रीव्यू के दौरान उलझाते थे। जिससे कि ख़बर बिना सेंसर हुए जनता तक पहुंच सके। मीडिया अपने आप में ज़िम्मेदार है इस बात का उदाहरण उन्होंने प्रवीण तोगड़िया को बनाया। उन्होंने बताया कि जब चैनलों को लगा कि प्रवीण की बातें सीमा पार कर रही हैं, उन्होंने उसे कवर करना कम कर दिया। आज वो हर चैनल से गायब हैं। साथ ही उन्होंने इसी इलाज को राज ठाकरे के लिए भी रीफ़र किया। ये सारी बातें दुआ ने आज दिल्ली के आई.पी. (इन्द्रप्रस्थ कॉलेज) के मास कॉम विभाग में एक सम्मेलन के दौरान उन्होंने कही।
सम्मेलन का मुद्दा था - मीट द मीडिया: सेन्स ऑर सेन्सेशन...
मीडिया से जुड़े कई नामी लोगों वहां मौजूद थे। लिलिट दुबे, प्रहलाद कक्कड़, राजीव मसंद, प्रोन्जॉय गुहा ठाकुरता, कविता चौधरी और विनोद कापड़ी जैसे लोग मंच पर बैठे मीडिया के सेन्स और सेन्सेशन पर बात कर थे। सभी का एक स्वर में मानना था कि ख़बरों को सनसनी बनाकर पेश करना गलत है, हालांकि अपनी व्यवसायिक ज़िंदगी में वो सभी ये काम किसी न किसी रूप में कर रहे हैं। फिर भी हमने उन्हें सुना। प्रहलाद क्ककड़ ने विज्ञापन की दुनिया में इस्तेमाल होनेवाली भाषा को लेकर कहा कि, जिस तरह से आज के वक़्त में लोगों की भावनाएं बात-बात पर हर्ट हो रही है, जल्द ही हमें विज्ञापन की हर लाइन पर एक नोटिस मिलने लगेगा। प्रोन्जोय ने टेलीग्राफ की उस महिला पत्रकार का किस्सा सुनाया जो कि महज सनसनी फैलाने और लोगों के की आंखों को नम करने के मक़सद से मनगढ़न्त कहानियाँ लिखती थी। जिसके लिए उन्हें पुल्तिज़र भी मिल गया और असलियत पता चलने पर वापस भी ले लिया गया। सम्मेलन में मौजूद विनोद कापड़ी पर सभी की नज़रें थी। क्योंकि जो भी गरिया रहा था, उनके चैनल का रिफ़रेन्स ज़रूर दे रहा था। विनोद कापड़ी ने जब बात शुरु की तो लगा कि ये ख़ुद को या चैनल को बचा नहीं पाएगें। ऐसा हुआ भी लेकिन, इसी बीच उन्होंने एक किस्सा सुनाया कि कैसे स्टार में रहते हुए उन्होंने अनिरुद्ध बहल के साथ मिलकर फ़तवों की बिक्री पर एक स्टिंग किया था। पूरे 6 महीने लगे थे इसमें उन लोगों को। और, जिस दिन उन्होंने इसे प्रसारित किया उसी समय तब के नम्बर एक चैनल ने नागिन का बदला दिखाया। विनोद ने कहा कि अगले हफ़्ते की टीआरपी में नागिन के बदले को 48 फीसदी दर्शकों ने देखा और स्टिंग ऑपरेशन को 8 फीसदी ने। उन्होंने कहा कि तब हमने सोचा कि अगली बार हम भी ऐसा ही करेंगे। यहाँ बात चैनल के बकवास कन्टेन्ट से उतरकर दर्शकों की घटिया पसंद तक आ गई थी। इस पर प्रॉन्जोय ने तर्क दिए कि 1 अरब की आबादी में टीआरपी 7500 लोग तय करते हैं। किसी गांव में कोई रेटिंग सिस्टम नहीं हैं। बिहार, झारखंड, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में तो शहरों में भी ये रेटिंग सिस्टम नहीं है। इस सब पर लिलिट का मानना था कि दर्शकों के पास ऑप्शन नहीं हैं। सभी चैनल यही परोस रहे हैं, दर्शक मजबूरी में ये देखता हैं। बहस बढ़ी मज़ेदार हो गई थी। क्योंकि ये वही लोग थे जो इस सब का सीधे या उल्टे हिस्सा है। कही न कही इस सब में इन्वॉल्व हैं। लेकिन, पर उपदेश कुशल बहु तेरे...
इस बीच मुंबई बम धमाकों के कवरेज पर भी बात हुई। सभी ने एक स्वर में कहा कि मीडिया ने मर्यादा नहीं तोड़ी (जिसकी उम्मीद भी थी), सभी का मानना था कि मीडिया को किसी गवर्निंग बॉडी की ज़रूरत नहीं है, वो ख़ुद ही खु़द को सुधार लेगी... इस बीच कई बातों पर बहस हुई, कई बातें सामने आई... लेकिन, जब सम्मेलन ख़त्म हुआ और मीडिया की पढ़ाई कर रहे युवा बाहर निकले, तो सभी ने एक ही बात कही -
अरे यार ये सब बोलने की बातें हैं, मैं भी जब इतना बड़ा हो जाऊंगा... ऐसे ही बोलूंगा। तब कौन मेरा क्या उखाड़ लेगा....
ये नामांकरण किया है विनोद दुआ ने। इसके साथ ही दुआ ने बताया कि कैसे वो दूरदर्शन के दिनों में कुछ सरकार विरूद्ध या नियम विरूद्ध दिखाने के लिए अधिकारियों को कार्यक्रम प्रीव्यू के दौरान उलझाते थे। जिससे कि ख़बर बिना सेंसर हुए जनता तक पहुंच सके। मीडिया अपने आप में ज़िम्मेदार है इस बात का उदाहरण उन्होंने प्रवीण तोगड़िया को बनाया। उन्होंने बताया कि जब चैनलों को लगा कि प्रवीण की बातें सीमा पार कर रही हैं, उन्होंने उसे कवर करना कम कर दिया। आज वो हर चैनल से गायब हैं। साथ ही उन्होंने इसी इलाज को राज ठाकरे के लिए भी रीफ़र किया। ये सारी बातें दुआ ने आज दिल्ली के आई.पी. (इन्द्रप्रस्थ कॉलेज) के मास कॉम विभाग में एक सम्मेलन के दौरान उन्होंने कही।
सम्मेलन का मुद्दा था - मीट द मीडिया: सेन्स ऑर सेन्सेशन...
मीडिया से जुड़े कई नामी लोगों वहां मौजूद थे। लिलिट दुबे, प्रहलाद कक्कड़, राजीव मसंद, प्रोन्जॉय गुहा ठाकुरता, कविता चौधरी और विनोद कापड़ी जैसे लोग मंच पर बैठे मीडिया के सेन्स और सेन्सेशन पर बात कर थे। सभी का एक स्वर में मानना था कि ख़बरों को सनसनी बनाकर पेश करना गलत है, हालांकि अपनी व्यवसायिक ज़िंदगी में वो सभी ये काम किसी न किसी रूप में कर रहे हैं। फिर भी हमने उन्हें सुना। प्रहलाद क्ककड़ ने विज्ञापन की दुनिया में इस्तेमाल होनेवाली भाषा को लेकर कहा कि, जिस तरह से आज के वक़्त में लोगों की भावनाएं बात-बात पर हर्ट हो रही है, जल्द ही हमें विज्ञापन की हर लाइन पर एक नोटिस मिलने लगेगा। प्रोन्जोय ने टेलीग्राफ की उस महिला पत्रकार का किस्सा सुनाया जो कि महज सनसनी फैलाने और लोगों के की आंखों को नम करने के मक़सद से मनगढ़न्त कहानियाँ लिखती थी। जिसके लिए उन्हें पुल्तिज़र भी मिल गया और असलियत पता चलने पर वापस भी ले लिया गया। सम्मेलन में मौजूद विनोद कापड़ी पर सभी की नज़रें थी। क्योंकि जो भी गरिया रहा था, उनके चैनल का रिफ़रेन्स ज़रूर दे रहा था। विनोद कापड़ी ने जब बात शुरु की तो लगा कि ये ख़ुद को या चैनल को बचा नहीं पाएगें। ऐसा हुआ भी लेकिन, इसी बीच उन्होंने एक किस्सा सुनाया कि कैसे स्टार में रहते हुए उन्होंने अनिरुद्ध बहल के साथ मिलकर फ़तवों की बिक्री पर एक स्टिंग किया था। पूरे 6 महीने लगे थे इसमें उन लोगों को। और, जिस दिन उन्होंने इसे प्रसारित किया उसी समय तब के नम्बर एक चैनल ने नागिन का बदला दिखाया। विनोद ने कहा कि अगले हफ़्ते की टीआरपी में नागिन के बदले को 48 फीसदी दर्शकों ने देखा और स्टिंग ऑपरेशन को 8 फीसदी ने। उन्होंने कहा कि तब हमने सोचा कि अगली बार हम भी ऐसा ही करेंगे। यहाँ बात चैनल के बकवास कन्टेन्ट से उतरकर दर्शकों की घटिया पसंद तक आ गई थी। इस पर प्रॉन्जोय ने तर्क दिए कि 1 अरब की आबादी में टीआरपी 7500 लोग तय करते हैं। किसी गांव में कोई रेटिंग सिस्टम नहीं हैं। बिहार, झारखंड, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में तो शहरों में भी ये रेटिंग सिस्टम नहीं है। इस सब पर लिलिट का मानना था कि दर्शकों के पास ऑप्शन नहीं हैं। सभी चैनल यही परोस रहे हैं, दर्शक मजबूरी में ये देखता हैं। बहस बढ़ी मज़ेदार हो गई थी। क्योंकि ये वही लोग थे जो इस सब का सीधे या उल्टे हिस्सा है। कही न कही इस सब में इन्वॉल्व हैं। लेकिन, पर उपदेश कुशल बहु तेरे...
इस बीच मुंबई बम धमाकों के कवरेज पर भी बात हुई। सभी ने एक स्वर में कहा कि मीडिया ने मर्यादा नहीं तोड़ी (जिसकी उम्मीद भी थी), सभी का मानना था कि मीडिया को किसी गवर्निंग बॉडी की ज़रूरत नहीं है, वो ख़ुद ही खु़द को सुधार लेगी... इस बीच कई बातों पर बहस हुई, कई बातें सामने आई... लेकिन, जब सम्मेलन ख़त्म हुआ और मीडिया की पढ़ाई कर रहे युवा बाहर निकले, तो सभी ने एक ही बात कही -
अरे यार ये सब बोलने की बातें हैं, मैं भी जब इतना बड़ा हो जाऊंगा... ऐसे ही बोलूंगा। तब कौन मेरा क्या उखाड़ लेगा....
1 comment:
बढिया प्रस्तुति!
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