Wednesday, December 10, 2008
चिंगारियाँ...
भोपाल में हुआ गैस कांड विश्व की सबसे बड़ी रासायनिक दुर्घटना मानी जाती है। इसे हुए 24 साल बीत गए है। लेकिन, जख्म आज तक ताज़ा हैं और भोपालियों ने ही इन्हें ताज़ा रख रखा हैं। और, ये जख्म वो तब तक ताज़े रखेंगे जब तक कि इस हादसे के ज़िम्मेदार लोगों को सज़ा न मिल जाए। ऐसी ही है रशीदा बी और चम्पा देवी। ये दोनों ही भोपाल गैस कांड की भुक्तभोगी है। ये दोनों ही भोपाल गैस पीड़ितों के लिए काम करती हैं। इन्हें साल कुछ सालों पहले अपने इस सामाजिक काम के लिए अमेरिका में एक अवार्ड भी मिला। अवार्ड के रूप में मिली राशि से दोनों ने मिलकर ट्रस्ट की स्थापना की जिसका नाम रखा - चिंगारी ट्रस्ट। इस ट्रस्ट ने पिछले साल से इसी नाम से एक अवार्ड की शुरुआत की। चिंगारी अवार्ड, ये किसी ऐसी महिला सामाजिक कार्यकर्ता को दिया जाता है जोकि औद्योगिकीकरण का विरोध कर रही हो। इस बार ये अवार्ड मिला झारखंड की दयामनी बरला को। दयामनी रांची और उसके आसपास के आदिवासी इलाकों में बनने वाली आर्सेलर मित्तल की फ़्रैक्ट्री का विरोध कर रही है। साथ ही दयामनी ने वहां मौजूद कोयला खानों में बच्चों से काम करवाने की बात का भी खुलासा किया था। दयामनी को ये अवार्ड दिया अरूधंति रॉय ने। सौभाग्य से मुझे ये कार्यक्रम को कवर करने का मौका मिला। दयामनी से जब बात कि तो लगाकि कितनी सरल इंसान है। इतने प्यार से वो अपनी कहानी सुनाती गई हमें... दयामनी पत्रकार भी है। वो कहती है कि उनके कामों को लोगों तक पहुंचाने की ज़िम्मेदारी मेरी ख़ुद की है। और, मैं ख़ु़द उसे करती हूँ। दयामनी इस बात से बेहद दुखी है कि आज का युवा अपनी मिट्टी अपने पानी को अनदेखा कर रहा है। इस कार्यक्रम में शामिल हुई अरूधंति ने कहा कि वो हर उस व्यक्ति वो आतंकी मानती है जो मिट्टी और पानी का शोषण करता है। ये कार्यक्रम अपने आप में बेहद अनूठा था। चारों तरफ महिलाएं ही महिलाएं। हरेक की सोच साफ, कि प्रकृति को बचाना है। ये तय करना है कि दूसरा भोपाल न बनने पाए। हरेक महिला के मुंह पर यही शब्द थे। यहाँ मौजूद हर महिला सच में एक चिंगारी-सी लग रही थी। यहाँ जाकर और इन जुझारू महिलाओं से मिलकर लगाकि अगर सोच साफ और सही दिशा में हो तो कोई आपको रोक नहीं सकता हैं। काश ऐसे कार्यक्रम भी जनता तक आसानी से पहुंच पाते। लेकिन, अगर आप इन महिलाओं के बारे में जानना चाहते हैं तो रविवार के दिन रात साढ़े आठ बजे लोकसभा टीवी देखें।
Labels:
नज़रिया
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment