टीवी पर विज्ञापन आता है कि एक बाप अपने बेटे से शारीरिक संबंधों के दौरान बरती जानेवाली सावधानियों पर कैसे बात की जाए इसकी रिहर्सल कर रहा है। ऐसा ही एक और विज्ञापन जहाँ एड्स से जुड़ा एक विज्ञापन टीवी पर आता है एक परिवार बैठकर टीवी देख रहा हैं। माँ, बाप और दो बच्चे एक लड़का एक लड़की। टीवी पर ये विज्ञापन देखते ही पिता दोनों बच्चों को बहाने से दूसरे कमरों में भेज देता है और टीवी का चैनल बदल दिया जाता है। असलियत में चैनल उन दोनों विज्ञापनों को देखकर हमारे घरों में भी बदल दिए जाते हैं। कंडोम का विज्ञापन हो या सैनिटरी नैप्किन का। चैनल हर बार बदले जाते हैं। बावजूद इसके एड्स के प्रति लोगों को जागरूक बनाने के लिए सरकारी और गैरसरकारी संस्थाएं कई मुहीम चला रही हैं। उसी में से एक थी रेड रिबिन एक्सप्रेस। लोगों में एड्स के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए पिछले साल दिल्ली के सफ़दरजंग स्टेशन से ये ट्रेन रवाना की गई थी। जिसका मक़सद पूरे देश में घूमकर लोगों के बीच इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाना था। ये ट्रेन 28 तारीख को दिल्ली वापस आ गई। ट्रेन का स्वागत भी भव्य रूप से किया गया। इस दौरान कुछ रेल्वे कर्मचारियों ने एक नुक्कड़ नाटक भी किया। कुछ एड़्स पीड़ित महिलाओं ने भी एक नाटक के ज़रिए अपनी व्यथा बताई। कई एनजीओ के लोग शामिल हुए। ट्रेन को देखकर सचमुच लगा कि ज्ञान का भंडार है ये। लेकिन, ये बात खली कि यहाँ आए नौजवान और बच्चे इसे अकेले ही देखकर समझने की कोशिश कर रहे थे। लगाकि, इनके साथ इनके माँ-बाप को खड़ा होना चाहिए था।
हमारे देश के माँ-बाप आज तक ये सोचते हैं कि उनके बच्चे शादी होने तक वरज़ीन ही रहे और यहाँ तक कि वो ये जान या समझ भी न पाए शारिरीक संबंधों के बारे में, जब तक की उनकी शादी न हो जाए। आज विश्व एड्स दिवस है। आज के दिन अखबार और इंटरनेट एड्स के भारत में ताज़ा आंकड़ों से अटे पड़े हैं। चिंता जताई जा रही है, दिनोंदिन बढ़ रही एड्स रोगियों की संख्या पर। लेकिन, ऐसे में एक और सर्वे की ज़रूरत महसूस हो रही है। ये सर्वे जो 15 से 28 साल के युवाओं के माता-पिता के बीच करवाया जाए। कितने माँ-बाप अपने बच्चों से इस बारे में खुलकर बात करते हैं। एड्स और भी तरीक़ों से फैलता है, लेकिन असुरक्षित यौन संबंध सबसे बड़ी वजह है। कितने माँ-बाप ये मानते हैं। कितने माता-पिता लड़कियों से उनकी महावारी शुरु होने पर इस बारे में बात करते है। कितने पहले से उन्हें आगाह करके रखते हैं। कितने उन्हें ये समझाते है कि ये क्यों हो रहा हैं। कितने ऐसे है जो लड़कों को उनके बदलते शरीर से एक बार फिर रू-ब-रू करवाते हैं। लड़कियों की बुरी हालत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि – स्कूल में मेरी एक टीचर ने अपने अनुभव क्लास में बाँटते हुए ये बताया था कि उन्हें उनकी शादी के एक दिन पहले ये पता लगा था कि शारीरिक संबंध कैसे स्थापित होते हैं। वो इतनी डर गई थी कि उन्होंने शादी करने से तक मनाकर दिया था...
आज हालत सुधरे नहीं हैं। आज भी माँ-बाप बच्चों से इस बारे में कोई बात नहीं करते हैं। हाँ, अब बच्चे ज़रूर अपने दम पर ये सब पता लगा लेते हैं। वो चाहे साथी हो, इंटरनेट हो या फ़िल्में हो। इनसे मिलनेवाला अधकचरा ज्ञान उनके मन में शारीरिक संबंधों को एक रूप देता है। और, यही से शुरु होती हैं गल्तियाँ... ये सारे आंकड़ें, ये सारी बहस, ये सारे कार्यक्रम बेमानी है जब तक की घर में बच्चों को इस बारे में प्राथमिक ज्ञान मुहैया न करवाया जाए।
हमारे देश के माँ-बाप आज तक ये सोचते हैं कि उनके बच्चे शादी होने तक वरज़ीन ही रहे और यहाँ तक कि वो ये जान या समझ भी न पाए शारिरीक संबंधों के बारे में, जब तक की उनकी शादी न हो जाए। आज विश्व एड्स दिवस है। आज के दिन अखबार और इंटरनेट एड्स के भारत में ताज़ा आंकड़ों से अटे पड़े हैं। चिंता जताई जा रही है, दिनोंदिन बढ़ रही एड्स रोगियों की संख्या पर। लेकिन, ऐसे में एक और सर्वे की ज़रूरत महसूस हो रही है। ये सर्वे जो 15 से 28 साल के युवाओं के माता-पिता के बीच करवाया जाए। कितने माँ-बाप अपने बच्चों से इस बारे में खुलकर बात करते हैं। एड्स और भी तरीक़ों से फैलता है, लेकिन असुरक्षित यौन संबंध सबसे बड़ी वजह है। कितने माँ-बाप ये मानते हैं। कितने माता-पिता लड़कियों से उनकी महावारी शुरु होने पर इस बारे में बात करते है। कितने पहले से उन्हें आगाह करके रखते हैं। कितने उन्हें ये समझाते है कि ये क्यों हो रहा हैं। कितने ऐसे है जो लड़कों को उनके बदलते शरीर से एक बार फिर रू-ब-रू करवाते हैं। लड़कियों की बुरी हालत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि – स्कूल में मेरी एक टीचर ने अपने अनुभव क्लास में बाँटते हुए ये बताया था कि उन्हें उनकी शादी के एक दिन पहले ये पता लगा था कि शारीरिक संबंध कैसे स्थापित होते हैं। वो इतनी डर गई थी कि उन्होंने शादी करने से तक मनाकर दिया था...
आज हालत सुधरे नहीं हैं। आज भी माँ-बाप बच्चों से इस बारे में कोई बात नहीं करते हैं। हाँ, अब बच्चे ज़रूर अपने दम पर ये सब पता लगा लेते हैं। वो चाहे साथी हो, इंटरनेट हो या फ़िल्में हो। इनसे मिलनेवाला अधकचरा ज्ञान उनके मन में शारीरिक संबंधों को एक रूप देता है। और, यही से शुरु होती हैं गल्तियाँ... ये सारे आंकड़ें, ये सारी बहस, ये सारे कार्यक्रम बेमानी है जब तक की घर में बच्चों को इस बारे में प्राथमिक ज्ञान मुहैया न करवाया जाए।
5 comments:
वाकई ये एक गंभीर मसला है
यदि यौन शिक्षा की जानकारी देनी है तो उसके लिए पहले एक सार्थक गोष्ठी होनी चाहिए। उस पर चर्चा के उपरांत कुछ ऐसे तरीकों को खोजा जाना चाहिए जो सटीक भी हों और अभद्र भी न हों।
सही कहा.. माता पिता को बच्चों ये जानकारी भी उपयुक्त तरिके से देनी चाहिये..
जो माता पिता अपने बच्चों से शुरु से गम्भीर मुद्दों पर बातें करते रहते हैं , जो अपने बच्चों की समझ पर विश्वास करते हें उनके लिए यह बातचीत करना कठिन नहीं होता ।
घुघूती बासूती
agreed sex education is very necessary and parents can be better friends and teachers for their kids.
pahli bar dekha aapka blog.
shubhkamnayein!
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